बजरंगबली हनुमान साठिका .......
ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र 9415 08 77 11
तुलसीदासरचित हनुमान साठिका
जय जय जय हनुमान अडंगी । महावीर विक्रम बजरंगी ॥
जय कपीश जय पवन कुमारा । जय जगबन्दन सील अगारा ॥
जय आदित्य अमर अबिकारी । अरि मरदन जय-जय गिरधारी ॥
अंजनि उदर जन्म तुम लीन्हा । जय-जयकार देवतन कीन्हा ॥
बाजे दुन्दुभि गगन गम्भीरा । सुर मन हर्ष असुर मन पीरा ॥
कपि के डर गढ़ लंक सकानी । छूटे बंध देवतन जानी ॥
ऋषि समूह निकट चलि आये । पवन तनय के पद सिर नाये ॥
बार-बार अस्तुति करि नाना । निर्मल नाम धरा हनुमाना ॥
सकल ऋषिन मिलि अस मत ठाना । दीन्ह बताय लाल फल खाना ॥
सुनत बचन कपि मन हर्षाना । रवि रथ उदय लाल फल जाना ॥
रथ समेत कपि कीन्ह अहारा । सूर्य बिना भए अति अंधियारा ॥
विनय तुम्हार करै अकुलाना । तब कपीस की अस्तुति ठाना ॥
सकल लोक वृतान्त सुनावा । चतुरानन तब रवि उगिलावा ॥
कहा बहोरि सुनहु बलसीला । रामचन्द्र करिहैं बहु लीला ॥
तब तुम उन्हकर करेहू सहाई । अबहिं बसहु कानन में जाई ॥
असकहि विधि निजलोक सिधारा । मिले सखा संग पवन कुमारा ॥
खेलैं खेल महा तरु तोरैं । ढेर करैं बहु पर्वत फोरैं ॥
जेहि गिरि चरण देहि कपि धाई । गिरि समेत पातालहिं जाई ॥
कपि सुग्रीव बालि की त्रासा । निरखति रहे राम मगु आसा ॥
मिले राम तहं पवन कुमारा । अति आनन्द सप्रेम दुलारा ॥
मनि मुंदरी रघुपति सों पाई । सीता खोज चले सिरु नाई ॥
सतयोजन जलनिधि विस्तारा । अगम अपार देवतन हारा ॥
जिमि सर गोखुर सरिस कपीसा । लांघि गये कपि कहि जगदीशा ॥
सीता चरण सीस तिन्ह नाये । अजर अमर के आसिस पाये ॥
रहे दनुज उपवन रखवारी । एक से एक महाभट भारी ॥
तिन्हैं मारि पुनि कहेउ कपीसा । दहेउ लंक कोप्यो भुज बीसा ॥
सिया बोध दै पुनि फिर आये । रामचन्द्र के पद सिर नाये।
मेरु उपारि आप छिन माहीं । बांधे सेतु निमिष इक मांहीं ॥
लछमन शक्ति लागी उर जबहीं । राम बुलाय कहा पुनि तबहीं ॥
भवन समेत सुषेन लै आये । तुरत सजीवन को पुनि धाये ॥
मग महं कालनेमि कहं मारा । अमित सुभट निसिचर संहारा ॥
आनि संजीवन गिरि समेता । धरि दीन्हों जहं कृपा निकेता ॥
फनपति केर सोक हरि लीन्हा । वर्षि सुमन सुर जय जय कीन्हा ॥
अहिरावण हरि अनुज समेता । लै गयो तहां पाताल निकेता ॥
जहां रहे देवि अस्थाना । दीन चहै बलि काढ़ि कृपाना ॥
पवनतनय प्रभु कीन गुहारी । कटक समेत निसाचर मारी ॥
रीछ कीसपति सबै बहोरी । राम लषन कीने यक ठोरी ॥
सब देवतन की बन्दि छुड़ाये । सो कीरति मुनि नारद गाये ॥
अछयकुमार दनुज बलवाना । कालकेतु कहं सब जग जाना ॥
कुम्भकरण रावण का भाई । ताहि निपात कीन्ह कपिराई ॥
मेघनाद पर शक्ति मारा । पवन तनय तब सो बरियारा ॥
रहा तनय नारान्तक जाना । पल में हते ताहि हनुमाना ॥
जहं लगि भान दनुज कर पावा । पवन तनय सब मारि नसावा।
जय मारुत सुत जय अनुकूला । नाम कृसानु सोक सम तूला ॥
जहं जीवन के संकट होई । रवि तम सम सो संकट खोई ॥
बन्दि परै सुमिरै हनुमाना । संकट कटै धरै जो ध्याना ॥
जाको बांध बामपद दीन्हा । मारुत सुत व्याकुल बहु कीन्हा ॥
सो भुजबल का कीन कृपाला । अच्छत तुम्हें मोर यह हाला ॥
आरत हरन नाम हनुमाना । सादर सुरपति कीन बखाना ॥
संकट रहै न एक रती को । ध्यान धरै हनुमान जती को ॥
धावहु देखि दीनता मोरी । कहौं पवनसुत जुगकर जोरी ॥
कपिपति बेगि अनुग्रह करहु । आतुर आइ दुसै दुख हरहु ॥
राम सपथ मैं तुमहिं सुनाया । जवन गुहार लाग सिय जाया ॥
यश तुम्हार सकल जग जाना । भव बन्धन भंजन हनुमाना ॥
यह बन्धन कर केतिक बाता । नाम तुम्हार जगत सुखदाता ॥
करौ कृपा जय जय जग स्वामी । बार अनेक नमामि नमामी ॥
भौमवार कर होम विधाना । धूप दीप नैवेद्य सुजाना ॥
मंगल दायक को लौ लावे । सुन नर मुनि वांछित फल पावे ॥
जयति जयति जय जय जग स्वामी । समरथ पुरुष सुअन्तरजामी ॥
अंजनि तनय नाम हनुमाना । सो तुलसी के प्राण समाना ॥
। दोहा ।
जय कपीस सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान ॥
राम लषन सीता सहित, सदा करो कल्याण ॥
बन्दौं हनुमत नाम यह, भौमवार परमान ॥
ध्यान धरै नर निश्चय, पावै पद कल्याण ॥
जो नित पढ़ै यह साठिका, तुलसी कहैं बिचारि ।
रहै न संकट ताहि को, साक्षी हैं त्रिपुरारि ॥
। सवैया ।
आरत बन पुकारत हौं कपिनाथ सुनो विनती मम भारी ।
अंगद औ नल-नील महाबलि देव सदा बल की बलिहारी ॥
जाम्बवन्त् सुग्रीव पवन-सुत दिबिद मयंद महा भटभारी ।
दुःख दोष हरो तुलसी जन-को श्री द्वादश बीरन की बलिहारी ॥
गोस्वामीतुलसीदासरचित हनुमान साठिका
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