श्रीकृष्ण के महान चरित्र को हम अपने जीवन मे अपनाने का संकल्प लें। जुए के विरोधी वे जुए को एक बहुत ही बुरा व्यसन मानते थे। जब वे काम्यक वन में युधिष्ठिर से मिले तो उन्होनें कहा :-- (वनपर्व १३/१-२) हे राजन् ! यदि मैं पहले हस्तिनापुर में या उसके निकट होता तो आप इस भारी संकट में न पड़ते। मैं कौरवों के बिना बुलाये ही उस द्यूत-सभा में जाता और जुए के अनेक दोष दिखाकर उसे रोकने की पूरी चेष्टा करता। मदिरा(शराब) के विरोधी उन्होंने यादवों के मदिरापान पर प्रतिबन्ध लगा दिया था और उसका सेवन करने वाले के लिए मृत्युदण्ड की व्यवस्था की थी। (मौसलपर्व १/२९,३०,३१) आज से समस्त वृष्णि और अन्धकवंशी क्षत्रियों के यहाँ कोई भी नगरवासी सुरा और आसव तैयार न करे। यदि कोई मनुष्य हमलोगों से छिपकर कहीं भी मादक पेय तैयार करेगा तो वह अपराधी अपने बन्धु-बान्धवों सहित जीवित अवस्था में सूली पर चढ़ा दिया जाएगा। गोभक्ति वे गोभक्त थे। गोपों के उत्सव में हल और जुए की पूजा होती थी।श्रीकृष्ण ने गोपों को समझाया कि वे इसके स्थान पर गोपूजन करें।हमारे देवता तो गौएँ हैं, गोवर्धन पर्वत हैं। गोवर्धन पर घास होती है। उसे गौएँ खाती हैं, और दूध देती हैं। इससे हमारा गुजारा चलता है। चलो गोवर्धन और गौओं का यज्ञ करें। गोवर्धन का यज्ञ यह है कि उत्सव के दिन सारी बस्ती को वहीं ले चलें। वहाँ होम करें। ब्राह्मणों को भोजन दें। स्वयं खाएँ औरों को खिलाएँ। इससे पता चलता है कि वे परम गोभक्त थे। ब्रह्मचर्य का पालन (एक पत्नि व्रत) महाभारत का युद्ध होने से पहले श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा से कहा था :-- (सौप्तिकपर्व १२/३०,३१) मैंने १२ वर्ष तक रुक्मिणी के साथ हिमालय में ठहरकर महान घोर ब्रह्मचर्य का पालन करके सनत्कुमार के समान तेजस्वी प्रद्युम्न नाम के पुत्र को प्राप्त किया था। विवाह के पश्चात् १२ वर्ष तक घोर ब्रह्मचर्य को धारण करना उनके संयम का महान् उदाहरण है। ऐसे संयमी और जितेन्द्रिय पुरुष को पुराणकारों ने कितना बीभत्स और घृणास्पद बना दिया। उनके पवित्र व्यक्तित्व को घृणित और बीभत्स बना दिया। योगेश्वर श्री कृष्ण महाराज की जय वैदिक धर्म की जय हो Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra 9415 087 711