रक्षा बंधन: भद्रा रहित सर्वार्थसिद्धि योग में भाइयों को बांधें रक्षा सूत्र
= Jyotish Aacharya Dr Umashankar Mishra 94150 8 7711 =========================
रक्षाबंधन भाई बहन के रिश्ते का प्रसिद्ध त्योहार है, रक्षा का मतलब सुरक्षा और बंधन का मतलब बाध्य है। रक्षाबंधन के दिन बहने भगवान से अपने भाइयों की तरक्की के लिए भगवान से प्रार्थना करती है।
इस वर्ष Kal ०३ अगस्त २०२० सोमवार के पावन मुहूर्त में रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाएगा। यह भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को और गहरा करने वाला पर्व है। एक ओर जहां भाई-बहन के प्रति अपने दायित्व निभाने का वचन देता है, वहीं बहन भी भाई की लंबी उम्र के लिए उपवास रखती हैं। हालांकि राखी बांधते समय बहनों को कुछ विशेष योग और समय का ध्यान भी रखना आवश्यक है।
इस बार रक्षा बंधन पर विशेष संयोग बन रहे हैं। इस बार यह पर्व भाई-बहन के पवित्र स्नेह बंधन को और प्रबलता व सुदृढ़ता प्रदान करने वाला होगा।
०३ अगस्त को सुबह ० 7: 46 बजे से ही Aayushman योग प्रारम्भ हो जाएगा। श्रावण मास का अंतिम सोमवार होने से इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। प्रातः उत्तराषाढ़ा नक्षत्र और ०७: 33 बजे से श्रवण नक्षत्र रहेगा। जो रक्षाबंधन की दृष्टि से बहुत सार्थक फल प्रदान करता है।
इसमें सिर्फ प्रातः ० 8:२८ बजे तक भद्रा काल का परित्याग अवश्य करना चाहिए। क्योंकि भद्रा में रक्षा बंधन को शास्त्रो में राजा व राष्ट्र के लिए निषिद्ध व हानिकारक बताया गया है।
अतः इस दिन प्रातः ० 8. २८ बजे के बाद संपूर्ण दिन रक्षाबंधन का सर्वार्थयोग सिद्धि सम्पन्न मूहूर्त रहेगा। जो भाई-बहन दोनों के स्नेह सूत्र को सुदृढ़ता प्रदान करने वाला होगा। साथ ही उनके जीवन में सुख समृद्धि व सुसौम्य शान्ति की श्री वृद्धि को समुन्नत बनाने में भी सहायक होगा।
वैदिक रक्षासूत्र
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रक्षासूत्र मात्र एक धागा नहीं बल्कि शुभ भावनाओं व शुभ संकल्पों का पुलिंदा है। यही सूत्र जब वैदिक रीति से बनाया जाता है और भगवन्नाम व भगवद्भाव सहित शुभ संकल्प करके बाँधा जाता है तो इसका सामर्थ्य असीम हो जाता है।
कैसे बनायें वैदिक राखी ?
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वैदिक राखी बनाने के लिए एक छोटा-सा ऊनी, सूती या रेशमी पीले कपड़े का टुकड़ा लें।
उसमें-
१- दूर्वा
२- अक्षत (साबूत चावल)
३- केसर या हल्दी
४- शुद्ध चंदन
५- सरसों के साबूत दाने
इन पाँच चीजों को मिलाकर कपड़े में बाँधकर सिलाई कर दें। फिर कलावे से जोड़कर राखी का आकार दें। सामर्थ्य हो तो उपरोक्त पाँच वस्तुओं के साथ स्वर्ण भी डाल सकते हैं।
वैदिक राखी का महत्त्व
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वैदिक राखी में डाली जानेवाली वस्तुएँ हमारे जीवन को उन्नति की ओर ले जानेवाले संकल्पों को पोषित करती हैं।
१- दूर्वा
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जैसे दूर्वा का एक अंकुर जमीन में लगाने पर वह हजारों की संख्या में फैल जाती है, वैसे ही ‘हमारे भाई या हितैषी के जीवन में भी सद्गुण फैलते जायें, बढ़ते जायें...’ इस भावना का द्योतक है दूर्वा। दूर्वा गणेशजी की प्रिय है अर्थात् हम जिनको राखी बाँध रहे हैं उनके जीवन में आनेवाले विघ्नों का नाश हो जाय।
२- अक्षत (साबूत चावल)
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हमारी भक्ति और श्रद्धा भगवान के, गुरु के चरणों में अक्षत हो, अखंड और अटूट हो, कभी क्षत-विक्षत न हो - यह अक्षत का संकेत है। अक्षत पूर्णता की भावना के प्रतीक हैं । जो कुछ अर्पित किया जाय, पूरी भावना के साथ किया जाय।
३- केसर या हल्दी
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केसरकेसर की प्रकृति तेज होती है अर्थात् हम जिनको यह रक्षासूत्र बाँध रहे हैं उनका जीवन तेजस्वी हो। उनका आध्यात्मिक तेज, भक्ति और ज्ञान का तेज बढ़ता जाय। केसर की जगह पिसी हल्दी का भी प्रयोग कर सकते हैं। हल्दी पवित्रता व शुभ का प्रतीक है। यह नजरदोष व नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है तथा उत्तम स्वास्थ्य व सम्पन्नता लाती है।
४- चंदन
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चंदनचंदन दूसरों को शीतलता और सुगंध देता है। यह इस भावना का द्योतक है कि जिनको हम राखी बाँध रहे हैं, उनके जीवन में सदैव शीतलता बनी रहे, कभी तनाव न हो। उनके द्वारा दूसरों को पवित्रता, सज्जनता व संयम आदि की सुगंध मिलती रहे। उनकी सेवा-सुवास दूर तक फैले।
५- सरसों
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सरसोंसरसों तीक्ष्ण होती है। इसी प्रकार हम अपने दुर्गुणों का विनाश करने में, समाज-द्रोहियों को सबक सिखाने में तीक्ष्ण बनें।
अतः यह वैदिक रक्षासूत्र वैदिक संकल्पों से परिपूर्ण होकर सर्व-मंगलकारी है । यह रक्षासूत्र बाँधते समय यह श्लोक बोला जाता है :
येन बद्धो बली राजा
दानवेन्द्रो महाबलः।।
तेन त्वां अभिबध्नामि।
रक्षे मा चल मा चल ।।
इस मंत्रोच्चारण व शुभ संकल्प सहित वैदिक राखी बहन अपने भाई को, माँ अपने बेटे को, दादी अपने पोते को बाँध सकती है । यही नहीं, शिष्य भी यदि इस वैदिक राखी को अपने सद्गुरु को प्रेमसहित अर्पण करता है तो उसकी सब अमंगलों से रक्षा होती है भक्ति बढ़ती है।
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