नागपंचमी 25 जुलाई को, कैसे करें पूजन, जानिए शुभ मंत्र ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा ज्योतिषाचार्य आकांक्षा श्रीवास्तव के माध्यम से ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा ज्योतिषाचार्य आकांक्षा श्रीवास्तव ने बताया की नागपंचमी पर सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर सबसे पहले भगवान शंकर का ध्यान करें इसके बाद नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा (सोने, चांदी या तांबे से निर्मित) के सामने यह मंत्र बोलें- अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्। शंखपाल धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।। एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्। सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।। तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।। - इसके बाद व्रत-उपवास एवं पूजा-उपासना का संकल्प लें। नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा को दूध से स्नान करवाएं। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर गंध, पुष्प, धूप, दीप से पूजन करें तथा सफेद मिठाई का भोग लगाएं। सफेद कमल का फूल पूजा मे रखें और यह प्रार्थना करें- सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।। ये च हेलिमरीचिस्था येन्तरे दिवि संस्थिता। ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:। ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।। प्रार्थना के बाद नाग गायत्री मंत्र का जाप करें- ॐ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्। इसके बाद सर्प सूक्त का पाठ करें- कलयुग में यह पूजा जीवन के हर क्षेत्र में( आर्थिक,पारिवारिक,शारीरिक,सामाजिक, वैवाहिक, व्यावसायिक, नौकरी इत्यादि) श्रेष्ठ एवं शुभ फल प्रदान करती है। आज के दिन शिव मंदिर या अपने निवास स्थान पर रुद्राभिषेक करवाना, शिव अमोघ कवच का पाठ करना अत्यंत ही लाभप्रद सिद्ध होता है। पौराणिक पूजन विधि नाग पंचमी के दिन घर के सभी दरवाजों पर खड़िया (पाण्डु/सफेदे) से छोटी-छोटी चौकोर जगह की पुताई की जाती है और कोयले को दूध में घिसकर मुख्‍यत दरवारों बाहर दोनों तरफ, मंदिर के दरवाजे पर और रसोई में नाग देवता के चिन्ह बनाए जाते हैं। आजकल यह फोटो बाजारों में मिलते हैं, जिन्‍हें आप इस्‍तेमाल कर सकते हैं, नागों की पूजा मीठी सेंवई खीर से की जाती हैं और इस दिन नागों को दूध पिलाने की परंपरा है, जिसके लिए खेतों में या किसी ऐसे स्‍थान पर जहां सर्प होने की संभावना हो वहां एक कटोरी में दूध रखा जाता है। सबसे पहले प्रात: घर की सफाई कर स्नान कर लें। इसके बाद प्रसाद के लिए सेवई और चावल बना लें। इसके बाद एक लकड़ी के तख्त पर नया कपड़ा बिछाकर उस पर नागदेवता की मूर्ति या तस्वीर रख दें। फिर जल, सुगंधित फूल, चंदन से अर्ध्य दें। नाग प्रतिमा का दूध, दही, घृ्त, मधु ओर शर्कर का पंचामृत बनाकर स्नान कराएं। प्रतिमा पर चंदन, गंध से युक्त जल अर्पित करें। वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, हरिद्रा, चूर्ण, कुमकुम, सिंदूर, बेलपत्र, आभूषण और पुष्प माला, सौभाग्य द्र्व्य, धूप दीप, नैवेद्य, ऋतु फल, तांबूल चढ़ाएं। आरती करें। अगर काल सर्पदोष है तो इस मंत्र का जाप करें: ॐ कुरुकुल्ये हुं फट स्वाहा पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी है और भगवान शिव जी भी सर्प माला को पहने रहते हैं इसलिये सर्प को देवता के रूप में पूजा जाता है। ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा ज्योतिषाचार्य आकांक्षा श्रीवास्तव बताते हैं कि भारत में नागों की पूजा करने का एक वैज्ञानिक कारण भी है, खेतों में फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले चूहे आदि जीवों का सर्प नष्‍ट कर देता है, जिससे किसानों की फसल सुरक्षित रहती है। एक सर्प ने भाई बनकर अपनी बहन की सुरक्षा की थी और भाई का फर्ज निभाया था, इसलिए इस दिन महिलाएं नागों को दूध पिलाती हैं और उसमें प्रार्थना करती हैं उनकी और उनके परिवार की सुरक्षा करें। सर्प ही धन की रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं और इन्हें गुप्त, छुपे और गड़े धन की रक्षा करने वाला माना जाता है। नाग, मां लक्ष्मी की रक्षा करते हैं। जो हमारे धन की रक्षा में हमेशा तत्पर रहते हैं इसलिए धन-संपदा व समृद्धि की प्राप्ति के लिए नाग पंचमी मनाई जाती है। इस दिन श्रीया, नाग और ब्रह्म अर्थात शिवलिंग स्वरुप की आराधना से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है और साधक को धनलक्ष्मी का आशिर्वाद मिलता है। 288 कालसर्प योग होते हैं कुंडली में, इसलिए हर किसी के लिए जरूरी है नागपंचमी पूजन... यदि आपकी कुंडली में कालसर्प दोष, अंगारक दोष, चांडाल दोष एवं ग्रहण दोष अथवा पितृ दोष है और उसके कारण आपके जीवन के कई कामों में विघ्न आ रहा है तो नाग पंचमी का दिन इन सब दोषों की शांति के लिए बेहद फलदायी होता है। अतः राहू-केतु के जन्म नक्षत्र देवताओं के नामों को जोड़कर कालसर्प योग कहा जाता है। राशि चक्र में 12 राशियां हैं, जन्म पत्रिका में 12 भाव हैं एवं 12 लग्न हैं। इस तरह कुल 144+144 = 288 कालसर्प योग घटित होते हैं। नाग पंचमी के दिन कालसर्प योग/दोष, अंगारक दोष, चाण्डाल दोष या ग्रहण दोष अथवा पितृदोष आदि की शांति कराकर विघ्नों को दूर किया जा सकता है। जानिए कैसे करें शांति विधान पूजन ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा ज्योतिषाचार्य आकांक्षा श्रीवास्तव के द्वारा प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा के स्थान पर कुश का आसन स्थापित करके सर्व प्रथम हाथ में जल लेकर अपने ऊपर व पूजन सामग्री पर छिड़कें, फिर संकल्प लेकर कि मैं कालसर्प दोष शांति हेतु यह पूजा कर रहा हूं। अतः मेरे सभी कष्टों का निवारण कर मुझे कालसर्प दोष (पितृदोष/अंगारक दोष/चाण्डाल दोष/ग्रहण दोष) से मुक्त करें। तत्पश्चात् अपने सामने चौकी पर एक कलश स्थापित कर पूजा आरंभ करें। कलश पर एक पात्र में नाग-नागिन यंत्र एवं कालसर्प यंत्र स्थापित करें, साथ ही कलश पर तीन तांबे के सिक्के एवं तीन कौड़ियां सर्प-सर्पनी के जोड़े के साथ रखें। उस पर केसर का तिलक लगाएं अक्षत चढ़ाएं, पुष्प चढ़ाएं तथा काले तिल, चावल व उड़द को पकाकर शक्कर मिश्रित कर उसका भोग लगाएं, फिर घी का दीपक जला कर निम्न मंत्र का उच्चारण करें। ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु। ये अंतरिक्षे ये दिवितेभ्यः सर्पेभ्यो नमः स्वाहा।। राहु का मंत्र- ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः। इसके बाद सर्वप्रथम गणपति जी का पूजन करें, नवग्रह पूजन करें, कलश पर रखी समस्त नाग-नागिन की प्रतिमा का पूजन करें व रूद्राक्ष माला से उपरोक्त कालसर्प शांति मंत्र अथवा राहू के मंत्र का उच्चारण एक माला जाप करें। उसके पश्चात् कलश में रखा जल शिवलिंग पर किसी मंदिर में चढ़ा दें, प्रसाद नंदी (बैल) को खिला दें, दान-दक्षिणा व नये वस्त्र ब्राह्मणों को दान करें। कालसर्प दोष वाले जातक को इस दिन व्रत अवश्य करना चाहिए। अग्नि पुराण में लगभग 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन मिलता है, जिसमें अनन्त, वासुकी, पदम, महापद्म, तक्षक, कुलिक, कर्कोटक और शंखपाल यह प्रमुख माने गए हैं। स्कन्दपुराण, भविष्यपुराण तथा कर्मपुराण में भी इनका उल्लेख मिलता है। ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा ज्योतिषाचार्य आकांक्षा श्रीवास्तव 9415087711 Astrovinayakam.Com