ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र 94150 87711 ‘संतान’… यह एक ऐसा शब्द है जिसका महत्व माता-पिता से अधिक ना कोई समझ सकता है और ना ही इस एहसास को समझा सकता है। संतान पाने की खुशी व्यक्त कर पाना उस माता-पिता के लिए भी मुश्किल है जो हाल ही में इस खूबसूरत पल के हकदार बने हैं। संतान सुख कहते हैं संतान देना और ना देना, दोनों ही ईश्वर के हाथ है। इंसान तो केवल एक अर्ज कर सकता है, लेकिन भगवान की इच्छा हो तभी उसे संतान सुख प्राप्त होता है। किंतु संतान होगी या नहीं और संतान में क्या मिलेगा, इसके बारे में जाना जरूर जा सकता है। इस जानकारी को प्राप्त करने में ज्योतिष शास्त्र हमारी मदद करता है। दरअसल जन्म के समय, दिन के हिसाब से ग्रहों और नक्षत्रों की गणना करने के बाद जो जन्म पत्रिका तैयार की जाती है, उसमें व्यक्ति विशेष से जुड़ी सारी जानकारी होती है। उसका स्वभाव, उसका जीवन कैसा रहेगा और पल-पल उसे उसका भविष्य क्या दे सकता है इसकी जानकारी पत्रिका में मौजूद होती है। बस जरूरत है तो एक अच्छे ज्योतिषी की जो सही गणना कर सटीक जानकारी प्रदान कर सके। ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा के अनुसार यदि जन्म कुण्डली में ‘संतान योग’ हो, तभी संतान की प्राप्ति होती है। लेकिन संतान के रूप में पुत्र होगा या पुत्री मिलेगी, इसकी जानकारी भी कुण्डली में उस समय पर मौजूद ग्रह-नक्षत्र बता सकते हैं। आज के माडर्न जमाने में लोग पुत्र और पुत्री में फर्क नहीं करते और यह सही भी है। हमारे शास्त्रों में भी पुत्र एवं पुत्री दोनों को समान दर्जा दिया गया है। पुत्र के संदर्भ में यह कहा जाता है कि जिस व्यक्ति को पुत्र होता है, उसके पितृ उससे प्रसन्न रहते हैं। पुत्र सुख हमारे शास्त्रों में कहा गया है– “अपुत्रस्य गति नास्ति शास्त्रेषु श्रुयते मुने” (पाराशर होरा शास्त्र) अर्थात् पुत्रहीन व्यक्ति को सद्गति नहीं मिलती। प्रत्येक व्यक्ति अपने पितृगणों को पुत्र ऋण चुकाए, यह आवश्यक माना गया है। दूसरी ओर पुत्री मां लक्ष्मी का रूप मानी गई है। पुत्री का सुख जिस घर में लक्ष्मी पधारे और वहां खुशहाली से रहे, ऐसा घर सौभाग्य एवं धन से भरा-पूरा रहता है। किंतु जिस घर में पुत्री के आने पर रोक लगा दी जाए या आने के बाद उसे अपनाया ना जाए, ऐसे घर में मां लक्ष्मी वास नहीं करती। ऐसे परिवार का पतन दूर नहीं होता। कैसे जानें की जन्म कुंडली में संतान योग है या नहीं किस मनुष्य को कितनी या कैसी सन्तान होगी, इसका पता उसकी जन्म कुन्डली में चल रहे नवमांश, कारकांश को देखकर लगाया जाता है। कैसे जानें संतान योग है या नहीं ?? यह नवमांश बताता है कि जातक (पुरुष या स्त्री) की कुण्डली में जन्म योग है या नहीं। लोगों में यह मत प्रचलित है कि संतान योग देखने के लिए केवल माता की कुण्डली ही देखनी काफी होती है, किंतु ऐसा नहीं है। इसके लिए दोनों पति-पत्नी की कुण्डली देखना जरूरी है। क्योंकि किसी भी एक कुंण्डली का योग संतान की प्राप्ति करा सकता है, भले ही दूसरी कुण्डली में संतान योग मौजूद ना हो। कुण्डली के भाव और संतान योग जन्म लग्न और चन्द्र लग्न में जो बली हो, उससे पांचवें भाव से संतान सुख का विचार किया जाता है। भाव, भाव स्थित राशि व उसका स्वामी, भाव कारक बृहस्पति और उस से पांचवां भाव तथा सप्तमांश कुंडली, इन सभी का विचार संतान सुख के विषय में किया जाना आवश्यक है। पति एवम पत्नी दोनों की कुंडलियों का अध्ययन करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए। पंचम भाव से प्रथम संतान का, उससे तीसरे भाव से दूसरी संतान का और उससे तीसरे भाव से तीसरी संतान का विचार करना चाहिए। उससे आगे की संतान का विचार भी इसी क्रम से किया जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र में कुछ विशेष ग्रह संयोग बताए गए हैं, जिनसे संतान योग उत्पन्न होता है| जैसे यदि लग्नेश और पंचमेश का या पंचमेश और नवमेश का युति, दृष्टि या राशि सम्बन्ध शुभ भावों में हो तो संतान सुख की प्राप्ति होती है। यदि लग्नेश पंचम भाव में मित्र, उच्च राशि नवांश का हो, तो यह संतान योग बनाता है। अगर पंचमेश पंचम भाव में ही स्थित हो, तो यह भी संतान सुख देता है। पंचम भाव पर बलवान शुभ ग्रहों की पूर्ण दृष्टि हो, तो यह संतान देता है। कुण्डली के भाव और संतान योग केवल शुभ ही नहीं, जब कुछ अशुभ ग्रह मिल जाएं तो भी संतान सुख मिल जाता है। उदाहरण के लिए अगर शनि मंगल आदि पाप ग्रह पंचम भाव में स्व, मित्र, उच्च राशि नवांश के हों तो संतान प्राप्ति कराते हैं। लेकिन संतान योग बनते ही कैसी संतान होगी, अर्थात् पुत्र की प्राप्ति होगी या पुत्री होगी इसके बारे में भी ज्योतिष शास्त्र ने कुछ खास ग्रहीय संयोग बताए हैं। जातक इन संयोगों का इस्तेमाल करके मनचाही संतान पा सकता है। संतान पुत्र होगा या पुत्री भारतीय वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य मंगल गुरु पुत्र के ग्रह होते हैं और चन्द्र स्त्री ग्रह है। अगर जातक की कुण्डली में बुध शुक्र शनि कुन्डली में बलवान होने पर पुत्र या पुत्री का अपने बल के अनुसार फ़ल देते है। पुत्र संतान प्राप्ति के योग यदि जन्म कुण्डली में लग्नेश पंचम में हो तथा उस पर चंद्र की पूर्ण दृष्टि हो तो पुत्र संतान होती है। लग्नेश जब गोचरवश- पंचमेश से योग करे, अपनी उच्च राशि में आए, अपनी स्वराशि में आए तब पुत्र प्राप्ति हो सकती है। पुरुष जातक की कुंडली में सूर्य स्पष्ट, शुक्र स्पष्ट और गुरु स्पष्ट, सूर्य, गुरु और शुक्र तीनों ग्रहों की राशि, अंश, कला और विकला जोड़ लें। जोड़ने पर यदि विषम राशि और विषम नवांश आए तो समझें कि इस पुरुष में पुत्र उत्पन्न करने की पूर्ण क्षमता है। जब कर्क राशि में शनि पंचम में हो, तो अनेक संतानें होती हैं। जितने पुरुष ग्रह पंचम को देखते हों उतने पुत्र और जितने स्त्री ग्रह को देखते हों उतनी पुत्रियां होती हैं। यदि शनि कुंभ राशि में पंचम भाव में हो, तो पांच संतान होती हैं। यदि पाप ग्रह पंचमेश होकर पंचम में हो तथा पंचम में अन्य पाप ग्रह हों, तो पुत्र अधिक होते हैं। पुत्री संतान के योग जब किसी जातक की जन्म कुंडली में शनि और बुध योग कारक हो कर विषम राशि में हों तो पुत्र व सम राशि में हो तो पुत्री प्रदान करते हैं। सप्तमांशेष पुरुष ग्रह हो तो पुत्र तथा स्त्री ग्रह हो तो कन्या सन्तति का सुख मिलता है। यदि एकादश में बुध, चंद्र या शुक्र हो, तो पुत्रियां अधिक होती हैं। चंद्र और बुध पंचम में हो, तो अनेक पुत्रियां होती हैं। लग्न या चंद्र मंगल की राशि में तथा शुक्र के त्रिशांश में हो तो कई पुत्रियां होती हैं।