आन्तरिक बल -शराब और अन्य नशे ((Jyotishacharya. Dr Umashankar mishr-9415087711)) सभी नशो का मूल नकारात्मक और विनाशकारी सोच है ! जब हीन भावना, अक्षमता, पराजय और कुंठा का गहरा अहसास होता है तो उस से बचने के लिये व्यक्ति शराब पीने लगता है ! नशे का कारण गहरी आंतरिक दुश्मनी भी होती है ! शराबी के नजदीकी और आसपास के लोग उसके प्रति नकारत्मक भाव रखते हैं जिस से वह और कमजोर होता जाता है ! उसे मानसिक दुःख होता है ! उस दुःख से बचने के लिये व्यक्ति नशेडी बनता जाता है ! नजदीकी व्यक्ति भगवान को याद करते हुए उस के प्रति अच्छा सोचें, तुम शांत हो, तुम स्नेही हो आदि आदि तो वह व्यक्ति धीरे धीरे ठीक होता जाएगा ! भगवान प्यार के सागर हैं अगर आप सोचते हैं कि ईश्वर आपको सजा दे रहा है या आपका इम्तहान ले रहा है, तो आपके अवचेतन मन में जिस नकारात्मक विचार और चित्रों की छाप छोड़ी गई है, उसकी बदौलत आप कष्ट उठाएगें ! आप दरअसल खुद को सजा दे रहे हैं ! मनुष्य का विचार अभौतिक या अदृशय शक्ति है ! इसी शक्ति से वह वरदान पाने, प्रेरित होने और शांति पाने का चुनाव करता है ! भगवान प्यार के सागर हैं ! ईश्वर की शक्ति पर उसी तरह विश्वास करें , जिस तरह आप ने अपनी मां पर विश्वास किया था, जब वह आपको अपनी बांहों में लेती थी और अब भी लेती है ! भगवान हमारी मां है ! मां सदा अपने बच्चों का कल्याण करती है ! भगवान आप प्यार के सागर हैं ! जब भी खाली हों, चलते फिरते, पूजा पाठ, सत्संग में बैठे हैं, इस शब्द का सिमरण करते रहें ! आप को हर पल प्रेम की अनुभूति होती रहेगी !