अहोई माता
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कार्तिक अष्टमी/व्रत अहोई माता
====((Jyotishacharya Dr Umashankar Mishra=9415087711))================
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त
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अहोई अष्टमी पूजन शुभ मुहूर्त: सांय 06:00 से रात्रि 08:30 बजे तक
तारों को देखने का समय सांय 07:10 मिनट से प्रारम्भ। इस वर्ष अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय रात्रि11`:45 मिनट पर होगा। अधिकतर स्थानों पर तारों को देखकर ही व्रत पूरा करने की परम्परा है।
हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन अहोई अष्टमी व्रत रखा जाता है. महिलाएं इस दिन अपने संतान की दीर्घायु और सुखी जीवन के लिए उपवास करती हैं. साथ ही अहोई देवी की पूजा करती है. अहोई माता, पार्वती माता का ही नाम है इसलिए इस दिन माँ पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है।
अहोई अष्टमी व्रत विधि
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माताएं सूर्योदय से पूर्व स्नान करके व्रत रखने का संकल्प लें. अहोई माता की पूजा के लिए दीवार पर गेरू से अहोई माता का चित्र बनाएं. साथ ही सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं।
सायंकाल के समय पूजन के लिए अहोई माता के चित्र के सामने एक चौकी रखें. उस पर जल से भरा कलश रखें. रोली-चावल से माता की पूजा करें. मीठे पुए या आटे के हलवे का भोग लगाएं।
कलश पर स्वास्तिक बना लें और हाथ में गेंहू के सात दाने लेकर अहोई माता की कथा सुनें. कहानी को कहते समय हाथ में जौ, चावल साड़ी या सूट के दुप्पटे में बाँधकर हाथ में रखें. इसके उपरान्त तारों को अर्घ्य देकर अपने से बड़ों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें।
अहोई अष्टमी के दिन व्रत रखने से संतान के कष्टों का निवारण होता है एवं उनके जीवन में सुख-समृद्धि व तरक्की आती है. ऐसा माना जाता है कि जिन माताओं की संतान को शारीरिक कष्ट हो, स्वास्थ्य ठीक न रहता हो या बार-बार बीमार पड़ते हों अथवा किसी भी कारण से माता-पिता को अपनी संतान की ओर से चिंता बनी रहती हो तो माता द्वारा विधि-विधान से अहोई माता की पूजा-अर्चना व व्रत करने से संतान को विशेष लाभ होता है।
अहोई, अनहोनी शब्द का अपभ्रंश है. अनहोनी को टालने वाली माता देवी पार्वती हैं. इसलिए इस दिन मां पार्वती की पूजा-अर्चना का भी विधान है. जिस प्रकार माता पार्वती ने कार्तिकेय एवं श्रीगणेश की रक्षा की थी, उसी प्रकारअपनी संतानों की दीर्घायु और अनहोनी से रक्षा के लिए महिलाएं ये व्रत रखकर साही माता एवं भगवती पार्वती से आशीष मांगती
हैं।
अहोई माता की आरती
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जय अहोई माता,
जय अहोई माता।
तुमको निसदिन ध्यावत
हर विष्णु विधाता।
टेक।।
ब्राहमणी, रुद्राणी, कमला
तू ही है जगमाता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद
ऋषि गाता।। जय।।
माता रूप निरंजन
सुख-सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत
नित मंगल पाता।। जय।।
तू ही पाताल बसंती,
तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक
जगनिधि से त्राता।। जय।।
जिस घर थारो वासा
वाहि में गुण आता।
कर न सके सोई कर ले
मन नहीं धड़काता।। जय।।
तुम बिन सुख न होवे
न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम
बिन नहीं आता।। जय।।
शुभ गुण सुंदर युक्ता
क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू
कोई नहीं पाता।। जय।।
श्री अहोई माँ की
आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे
पाप उतर जाता।।
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