श्री गणेशाय नम:
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करवा चौथ २०२३ विशेष
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करवा चौथ में चंद्रोदय का समय, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त,
=((Jyotishacharya Dr Umashankar mishr-9415087711))=
करवा चौथ का ये त्यौहार कार्तिक मास की चतुर्थी -- सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए पूरे दिन व्रत करती हैं और रात में चांद निकलने के बाद अपना व्रत खोलती है
करवा चौथ की विधि
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करवा चौथ पूजा के लिए पानी, थाली, मिट्टी का दीपक, गंगाजल, मिठाई, चांदी की थाली, और कलश शामिल होते हैं। सुहागिन महिलाएं सूर्योदय से पह स्नान करें और व्रती महिलाएं व्रत का संकल्प लें. इसके बाद दिन में पूजा करें और करवा चौथ व्रत की कथा सुनें और आरती कर पूजा को पूरा करें. कुछ देर बाद जब चंद्रमा उदय हो जाए तो विधि पूर्वक अर्घ्य दें और पूजा करें. पूजा करने के बाद महिलाएं अपने पति के चेहरे को देखने के बाद निर्जला व्रत को पूरा करें।
वहीं पति को तिलक लगाएं और पैर छूकर आशीर्वाद लें साथ ही सास और परिवार की अन्य स्त्रियों के भी पैर छूकर आशीर्वाद लें।
करवा चौथ व्रत की कथा
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किसी गांव में एक ब्राह्मण अपने ०७ पुत्रों और एक पुत्री के साथ रहता था. पुत्री का नाम वीरावती था. विवाह के बाद वीरावती ने भी करवा चौथ का व्रत किया और लेकिन भूख-प्यास के कारण वह बेहोश हो गई. बहन की ऐसी हालत देखकर भाइयों ने पेड़ के पीछे से मशाल का उजाला दिखाकर बहन से झूठ बोल दिया कि चांद निकल आया है. ये देख वीरावती ने भोजन कर लिया. इस वजह से वीरावती के पति की मृत्यु हो गई. उसी रात देवराज इंद्र की पत्नी पृथ्वी पर आई. वीरावती की हालत देखकर इंद्राणी को बहुत दुख हुआ।
उन्होंने वीरावती से अगली बार पुन: करवा चौथ व्रत करने को कहा. इस व्रत के प्रभाव से वीरावती का पति पुन: जीवित हो गया।
करवा चौथ का शुभ मुहूर्त
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करवा चौथ पर भगवान श्रीगणेश की पूजा का भी विधान है. इसके लिए शुभ मुहूर्त शाम 06:00 से 08:00 तक रहेगा यानी लगभग 02 घण्टा . करवा चौथ पर चन्द्रोदय रात 08:00 के लगभग होगा. अलग-अलग शहरों के हिसाब से इसके समय में आंशिक परिवर्तन हो सकता है।
करवा चौथ की पूजा में क्यों भरा जाता है करवा,
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ऐसी मान्यता है कि करवा चौथ के दिन पूजा में मिट्टी के करवे का प्रयोग किया जाता है. यह बहुत शुभ और पवित्र माना जाता है।
करवा चौथ व्रत की शुरुआत सूर्योदय के साथ होती है और रात को चांद को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत पूर्ण माना जाता है. करवा चौथ की पूजा में करवा का विशेष महत्व होता हैं।
करवा मिट्टी का बना एक मटका नुमा होता है. जिसके एक नलकी नुमा आकार भी होता है. इस करवे को मां देवी का प्रतीक मानकर पूजा की जाती है. मिट्टी के करवे को पूजन विधि में खास माना जाता है. शादी के समय लड़कियों को मायके से करवा दिया जाता है, जिसे महिलाएं शादी के बाद हर करवा चौथ पर उपयोग करती हैं।
पूजा का है नियम
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करवा चौथ पूजा के दौरान दो करवे रखे जाते हैं. इनमें से एक देवी मां का होता है और दूसरा सुहागिन महिला का.
करवा पूजा में करवा चौथ की व्रत कथा सुनते समय दोनों करवे पूजा के स्थान पर रखे जाते हैं और करवे को साफ करके उसमें रक्षा सूत्र बांधकर, हल्दी और आटे के मिश्रण से एक स्वस्तिक चिह्न बनाया जाता है. इसके बाद करवे पर १३ रोली की बिंदी को रखकर हाथ में गेहूं या चावल के दाने लेकर करवा चौथ की कथा सुनी जाती है।
पूजा में क्यों होते हैं दो करवे
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करवा चौथ की पूजा करते समय और करवा चौथ व्रत कथा सुनते समय दो करवा पूजा के स्थान पर जरूर होने चाहिए. एक वो जिससे महिलाएं अर्घ्य देती हैं यानी जिसे उस महिला की सास ने दिया होता है और दूसरा करवा वो होता है जिसे करवा बदलने वाली प्रक्रिया करते वक्त महिला अपनी सास को करवा देती हैं. करना को सबसे पहले अच्छे से साफ किया जाता है।
धर्म शास्त्र के मुताबिक, करवा पंच तत्वों का प्रतीक माना जाता है. मिट्टी के करवा में पांच तत्व होते हैं, जैसे कि जल, मिट्टी, अग्नि, आकाश, वायु इन सभी से व्यक्ति का शरीर भी बना है। इसलिए करवा भरने का विशेष महत्व होता है l
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