नवार्ण मंत्र का महत्व एव नवार्ण मंत्र जप का विधान:-- ((-jyotishacharya. Dr Umashankar mishr-9415087711-))- माता भगवती जगत् जननी दुर्गा जी की साधना-उपासना के क्रम में, नवार्ण मंत्र एक महत्त्वपूर्ण महामंत्र है । नवार्ण अर्थात नौ अक्षरों का इस नौ अक्षर के महामंत्र में नौ ग्रहों को नियंत्रित करने की शक्ति है, जिसके माध्यम से सभी क्षेत्रों में पूर्ण सफलता प्राप्त की जा सकती है और भगवती दुर्गा का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है यह महामंत्र शक्ति साधना में सर्वोपरि तथा सभी मंत्रों-स्तोत्रों में से एक महत्त्वपूर्ण महामंत्र है। यह भगवती दुर्गा जी के तीनों स्वरूपों महाकाली,महालक्ष्मी एवं महासरस्वती की एक साथ साधना का पूर्ण प्रभावक बीज मंत्र है और साथ ही दुर्गा के नौ रूपों का संयुक्त मंत्र है और इसी महामंत्र से नौ ग्रहों को भी शांत किया जा सकता है । नवार्ण मंत्र------ "ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे" नौ अक्षर वाले इस अद्भुत नवार्ण मंत्र में देवी दुर्गा की नौ शक्तियां समायी हुई है,जिसका सम्बन्ध नौ ग्रहों से भी है--- ऐं = सरस्वती का बीज मन्त्र है। ह्रीं = महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है। क्लीं = महाकाली का बीज मन्त्र है। 1-” ऐं “ ----- से माता दुर्गा की प्रथम शक्ति माता शैलपुत्री की उपासना की जाती है, जिस में सूर्य ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है | 2-” ह्रीं “----- से माता दुर्गा की द्वितीय शक्ति माता ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है, जिस में चन्द्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है| 3- ” क्लीं “------ से माता दुर्गा की तृतीय शक्ति माता चंद्रघंटा की उपासना की जाती है, जिस में मंगल ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है| 4- ” चा“----- से माता दुर्गा की चतुर्थ शक्ति माता कुष्मांडा की उपासना की जाती है, जिस में बुध ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है। 5- ” मुं “------ से माता दुर्गा की पंचम शक्ति माँ स्कंदमाता की उपासना की जाती है, जिस में बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है। 6-” डा “----- से माता दुर्गा की षष्ठ शक्ति माता कात्यायनी की उपासना की जाती है, जिस में शुक्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है। 7- ” यै “ ------से माता दुर्गा की सप्तम शक्ति माता कालरात्रि की उपासना की जाती है, जिस में शनि ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है। 8- ” वि “----- से माता दुर्गा की अष्टम शक्ति माता महागौरी की उपासना की जाती है, जिस में राहु ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है। 9- ” चै “------से माता दुर्गा की नवम शक्ति माता सिद्धीदात्री की उपासना की जाती है, जिस में केतु ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है। अत: प्रतिदिन 108 बार "ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे" नवार्ण मंत्र का जप करें। जप विधि--- विनियोग :---- ॐ अस्य श्रीनवार्ण मंत्रस्य ब्रह्म-विष्णु-रुद्रा ऋषयः, गायत्र्युष्णिगनुष्टुप् छन्दांसि, श्रीमहाकाली -महालक्ष्मी -महासरस्वतयो देवताः, रक्त-दन्तिका-दुर्गा भ्रामर्यो बीजानि, नन्दा शाकम्भरी भीमाः शक्त्यः, अग्नि- वायुसूर्यास्तत्त्वानि, ऋग्-यजुः-सामानि स्वरुपाणि, ऐं बीजं, ह्रीं शक्तिः, क्लीं कीलकं, श्रीमहाकाली -महालक्ष्मी -महासरस्वती स्वरुपा त्रिगुणात्मिका श्री महादुर्गा देव्या प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः। ऋष्यादि-न्यास :--- ब्रह्म-विष्णु-रुद्रा ऋषिभ्यो नमः शिरसि। गायत्र्युष्णिगनुष्टुप् छन्देभ्यो नमः मुखे। श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतयो देवताभ्यो नमः हृदिः। ह्रीं शक्ति सहितायै नन्दा-शाकम्भरी-भीमा देवताभ्यो नमः नाभौ। क्लीं कीलक सहितायै अग्नि-वायु-सूर्य तत्त्वेभ्यो नमः गुह्ये। ऋग्-यजुः-साम स्वरुपिणी श्रीमहाकाली -महालक्ष्मी-महासरस्वती देवताभ्यो नमः पादौ। श्री महादुर्गा प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे । “ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे" पढ़कर शुद्धि करें । षडङ्ग-न्यास कर-न्यास :---- ॐ ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः। ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां नमः। ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां हुम्। ॐ विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट्। अंग-न्यास :---- ॐ ऐं हृदयाय नमः। ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा। ॐ क्लीं शिखायै वषट्। ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम्। ॐ विच्चे नेत्र-त्रयाय वौषट्। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अस्त्राय फट्। अक्षर-न्यास :----- ॐ ऐं नमः शिखायां। ॐ ह्रीं नमः दक्षिण-नेत्रे। ॐ क्लीं नमः वाम-नेत्रे। ॐ चां नमः दक्षिण-कर्णे। ॐ मुं नमः वाम-कर्णे। ॐ डां नमः दक्षिण-नासा-पुटे। ॐ यैं नमः वाम-नासा-पुटे। ॐ विं नमः मुखे। ॐ च्चें नमः गुह्ये । मूल मंत्र से चार बार सम्मुख दो-दो बार दोनों कुक्षि की ओर कुल आठ बार (दोनों हाथों से सिर से पैर तक) न्यास करें । दिङ्ग-न्यास :---- ॐ ऐं प्राच्यै नमः। ॐ ऐं आग्नेय्यै नमः। ॐ ह्रीं दक्षिणायै नमः। ॐ ह्रीं नैर्ऋत्यै नमः। ॐ क्लीं प्रतीच्यै नमः। ॐ क्लीं वायव्यै नमः। ॐ चामुण्डायै उदीच्यै नमः। ॐ चामुण्डायै ऐशान्यै नमः। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊर्ध्वायै नमः। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे भूम्यै नमः। ध्यानम् ॐ खड्गं चक्रगदेषुचाप परिघाञ्छूलं भुशुण्डीं शिरः, शङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम्।नीलाश्मद्युतिमास्य पाददशकां सेवे महाकालिकाम्, यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम्।। ॐ अक्षस्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनुष्कुण्डिकां, दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम्। शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम्।। घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं, हस्ताब्जैर्दशतीं घनान्तविलसच्छितांशुतुल्य प्रभाम्।गौरीदेहसमुद्भुवां त्रिजगतामाधारभूतां महा- पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम्।। माला-पूजन ---- माला स्फटिक की हो ,लाल मुंगे की या रुद्राक्ष की माला के गन्धाक्षत करें तथा “ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः” इस मंत्र से पूजा करके प्रार्थना करें :--- ॐ मां माले महामाये सर्वशक्ति स्वरुपिणि। चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तः तस्मान्मे सिद्धिदाभव ।। ॐ अविघ्नं कुरुमाले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे। जपकाले च सिद्धयर्थं प्रसीद मम सिद्धये।। ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्व मंत्रार्थ साधिनि साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा। नवार्ण मंत्र का जप करें----- “ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे" जप समर्पण ---- "गुह्याति-गुह्य-गोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्-कृतं जपम्। सिद्धिर्मे भवतु देवि ! त्वत्-प्रसादान्महेश्वरि।।" उक्त श्लोक पढ़कर देवी के वाम हस्त में जप समर्पित करें। इस प्रकार “ऐ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” इस मंत्र का 1,25000 बार जप करके,जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन, मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोज कराना चाहिए।