नवरात्रि पर्व 15 अक्टूबर से, हाथी पर आएगी माँ भगवती
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✍🏻संपूर्ण भारत में नवरात्रि का पर्व बहुत ही खास माना जाता है, नवरात्रि के नौ दिनों में माता के 9 रूपों की पूजा की जाती है इस बार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 15 अक्टूबर से प्रारंभ होने जा रही है -((Kalash sthapna ka muhurt subah se lekar ratri paryantra hai--ATI vishisht Shubh muhurt subah Kalash sthapna ka samay 6:27 baje se subah 10:14 Tak ATI Uttam muhurt hai ))-और समापन 23 अक्टूबर को होगा, हिंदू पंचांग के अनुसार, अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होती है।
शारदीय नवरात्रि महत्व
नवरात्रि साल में 4 बार पड़ती है- माघ, चैत्र, आषाढ़ और आश्विन. आश्विन की नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है, नवरात्रि के वातावरण से तमस का अंत होता है, नकारात्मक माहौल की समाप्ति होती है, शारदीय नवरात्रि से मन में उमंग और उल्लास की वृद्धि होती है, दुनिया में सारी शक्ति नारी या स्त्री स्वरूप के पास ही है इसलिए नवरात्रि में देवी की उपासना ही की जाती है और देवी शक्ति का एक स्वरूप कहलाती है, इसलिए इसे शक्ति नवरात्रि भी कहा जाता है।
नवरात्रि के नौ दिनों में देवी के अलग अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है, जिसे नवदुर्गा का स्वरूप कहा जाता है, हर स्वरूप से विशेष तरह का आशीर्वाद और वरदान प्राप्त होता है, साथ ही साथ आपके अशुभ ग्रहों की अनिष्ठा का समापन भी होता है, इस बार शारदीय नवरात्रि 15 अक्टूबर से आरंभ होने जा रही है और समापन 23 अक्टूबर को होगा और दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है।
इस बार मां दुर्गा जी की हाथी है सवारी
इस वर्ष मां हाथी पर सवार होकर आ रही हैं ऐसे में इस बात के प्रबल संकेत मिल रहे हैं कि, इससे सर्वत्र सुख संपन्नता बढ़ेगी, इसके साथ ही देश भर में शांति के लिए किए जा रहे प्रयासों में सफलता मिलेगी, यानी कि पूरे देश के लिए यह नवरात्रि शुभ साबित होने वाली है। लंका-युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल की व्यवस्था की गई। वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया। यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुँचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासभंव पूर्ण होने दिया जाए। इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा। भय इस बात का था कि देवी माँ रुष्ट न हो जाएँ। दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग 'कमलनयन नवकंच लोचन' कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और प्रभु राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी प्रकट हुई, हाथ पकड़कर कहा- राम मैं प्रसन्न हूँ और विजयश्री का आशीर्वाद दिया। वहीं रावण के चंडी पाठ में यज्ञ में बालक का रूप धर कर हनुमानजी सेवा में जुट गए। निःस्वार्थ सेवा देखकर हनुमानजी से वर माँगने को कहा। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए। ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया। मंत्र में जयादेवी... भूर्तिहरिणी में 'ह' के स्थान पर 'क' उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है।भूर्तिहरिणी यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और 'करिणी' का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया। हनुमानजी महाराज ने श्लोक में 'ह' की जगह 'क' करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी। इसमें कहने का अर्थ ये है की पाठ की जैसी विधि लिखा वैसा करें गलत न करें रावण का यज्ञ जैसा खंडित हुआ आप का खंडित न हो किसी योग्य विद्वान् से करवाये जो संध्या युक्त हो जनेऊ धारी हो वही पाठ करें क्योंकि इसमें ऋगवेद से मन्त्र है वैदिक मन्त्र वही कर सकता है जो जनेऊ धारी हो तभी पाठ का फल मिलता है, नौवा दिन नवरात्रि का अंतिम दिन है। यह महानवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन कन्या पूजन होता है। जिसमें नौ कन्याओं की पूजा होती है जो अभी तक यौवन की अवस्था तक नहीं पहुँची है। इन नौ कन्याओं को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है। कन्याओं का सम्मान तथा स्वागत करने के लिए उनके पैर धोए जाते हैं। पूजा के अंत में कन्याओं को उपहार के रूप में नए कपड़े प्रदान किए जाते हैं।
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