भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष
((Jyotishacharya Dr Umashankar Mishra--9415087711))
--श्री कृष्ण जन्माष्टमी--
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पुराणों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्य रात्रि में हुआ था जब रोहिणी नक्षत्र और वृषभ लग्न था।
इसलिये हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की रात्रि 12 बजे की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है जो स्मार्त सम्प्रदाय मनाता है
और
उदया तिथि की भाद्रपद अष्टमी के दिन भगवान का प्राकट्योत्सव मनाते हैं जो वैष्णव सम्प्रदाय मनाता है
***** जन्माष्टमी-*******
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि Aaj-06 सितंबर को Sandhya samay 07 बजकर 57 मिनट से प्रारंभ होगी और 07 सितंबर 2023 को शाम 07 बजकर 51 मिनट पर समाप्त होगी।
रोहिणी नक्षत्र -Aaj -6 सितम्बर को dopahar-2 बजकर 39 पर आरम्भ होकर 7 सितम्बर को- sayam-03 बजकर 07 मिनट पर समाप्त होगा
*यानिकि स्मार्त लोगों की जन्माष्टमी बुधवार Aaj 6 सितम्बर को *
और वैष्णव लोगों की जन्माष्टमी गुरुवार 7 सितम्बर को मनायी जायेगी
जानिए जन्माष्टमी को दो दिन मनाने का कारण और गृहस्थों को कब मनाना चाहिए
श्री कृष्ण जन्माष्टमी ऐसा व्रत व पर्व जो प्रायः हर वर्ष दो दिन रहता है और स्पष्ट सँकेत दिया रहता है प्रथम दिवस श्री कृष्ण जन्माष्टमी "स्मार्त" द्वितीय दिवस श्री कृष्ण जन्माष्टमी "वैष्णव" का विधान है।
जानिये स्मार्त व वैष्णव के बारे में
सनातन धर्म में अनुयाइयों को उनकी ईश्वर में अपने ईष्ट के अनुसार विस्वास और पूजन विधि के अनुसार 5 संप्रदायों में विभाजित किया गया है:
जिसमें 1-वैष्णव, 2-शैव, 3- शाक्त, 4- वैदिक और 5-स्मार्त संप्रदाय आता है
वैष्णव सम्प्रदाय जो विष्णु को ही परमेश्वर मानते हैं
शैव सम्प्रदाय जो शिव को ही परमेश्वर मानते हैं
शाक्त सम्प्रदाय जो देवी को ही परमशक्ति मानते हैं
वैदिक सम्प्रदाय जो ब्रह्म को निराकार रूप जानकर उसे ही सर्वोपरि मानते हैं अर्थात वेदों को ही मानते हैं और पुराणों को नहीं मानते है
स्मार्त सम्प्रदाय जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं और सभी देवताओं की पूजा करते हैं, जिसमें अधिकतर लोग आते हैं,इसको स्वीकार करने वाला व्यक्ति स्मार्त है क्योंकि वो सभी की पूजा करता है तथा गृहस्थ जीवन व्यतीत करने वाला हर कोई स्मार्त सम्प्रदाय से ही आच्छादित होता है यह स्पष्टतया समझ लें
जानिए जन्माष्टमी को दो दिन मनाने का कारण और गृहस्थों को कब मनाना चाहिए
भगवान श्री कृष्ण के जन्म को लेकर वैष्णव और स्मार्त के दृष्टिकोण ...
स्मार्त लोग भगवान् का जन्मोत्सव मनाते हैं,इसलिये जन्म के समय से पूर्व व्रत रखते हैं और मध्य रात्रि में भगवान के कृष्ण स्वरूप जन्म समय के अनुसार जन्माष्टमी का आयोजन व पूजन, आरती के उपरांत ही व्रत का पारण करते हैं।
इसलिए स्मार्त लोगों को कृष्ण जन्माष्टमी उस दिन मनानी चाहिए जिस दिन रात्रि में अष्टमी तिथि हो।
वैष्णव संप्रदाय के अनुयाई भगवान् के जन्म के उपरांत भगवान का प्राकट्योत्सव मनाते हैं क्योंकि भगवान के जन्म के बाद भगवान रात में ही गोकुल पहुंच गए तो सुबह जब सबको पता चला कि भगवानका जन्म हो चुका है और भगवान सकुशल हैं तो सभी वैष्णवों और गोकुल वासियों ने भगवान का प्राकट्योत्सव मनाया
इसीलिए वैष्णव भगवान का प्राकट्योत्सव आज भी उसी परंपरा के अनुसार मनाते हैं जब अष्टमी उदय तिथि हो अर्थात सूर्य उदय के समय जब अष्टमी तिथि हो।
धर्मसिंधु भी इस तथ्य को प्रमाणित करता है कि स्मार्त व वैष्णव लोगों में इस पर्व के निर्णायक तत्त्व पृथक हैं:-
“स्मार्तानां गृहिणी पूर्वा पोष्या, निष्काम वनस्थेविधवाभिः वैष्णवैश्च परै वा पोष्या। वैष्णव वास्तु अर्धरात्रिव्यापिनीमपि रोहिणीयुतामपि सप्तमी विद्धां अष्टमी परित्यज्य नवमी युतैव ग्राह्या॥” (धर्मसिन्धु)
इसी को आधार मानते हुए स्मार्त संप्रदाय यानी गृहस्थों के लिए- Aaj- बुधवार 6 सितम्बर को श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत और पर्व होगा क्योंकि इसी दिन मध्यरात्रि को अष्टमी तिथि व रोहिणी नक्षत्र है
भाद्रपद अष्टमी तिथि गुरुवार 7 सितम्बर को सांयकाल 07 बजकर 51 मिनट तक ही है व रोहिणी नक्षत्र saym 03 बजकर 07 मिनट तक है, इसलिये वैष्णव संप्रदाय के लिए 7 सितम्बर को भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्योत्सव मनाया जाना शास्त्र के अनुसार है।
********************* ग्रहस्थ हिन्दू जैसे कि हम आप हैं श्री कृष्ण जन्माष्टमी पहले ही दिन यानीकि आज 6 सितम्बर 2023 को ही मनायेगा*
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🕉️ ।।जय श्री कृष्ण।।🕉️
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