अरिष्ट ग्रहों की शान्ति के लिए उपयोगी रत्न (नग) एवं उपरत्न
Jyotishacharya Dr Umashankar mishr-9415087711-
*शुभ ग्रहों के प्रभाव में वृद्धि और अनिष्ट ग्रहों के कुप्रभाव के निवारण हेतु उपयुक्त ग्रह रत्न (नग) धारण करने अत्यन्त लाभदायक सिद्ध होते हैं।अपनी जन्म कुंडली में स्थित ग्रहों की स्थिति एवं अपनी राशि के अनुसार ही उपयुक्त रत्न (नग) का चयन करना चाहिए अन्यथा कई बार लाभ की अपेक्षा ग़लत नग धारण करने से हानि की सम्भावना हो जाती है।
रत्न धारण करने की विधि उपयोग आदि का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार से है:-
सूर्य रत्न माणिक (RUBY)
संस्कृत में इसे माणिक्य, पद्मराग, हिंदी में माणक, मानिक तथा अंग्रेज़ी भाषा में रूबी कहते हैं। सूर्य रत्न होने से इस ग्रह रत्न के अधिष्ठाता सूर्यदेव हैं।
पहचान विधि - असली माणिक्य लाल सुर्ख वर्ण का पारदर्शी, स्निग्ध-कान्तियुक्त और वजन में कुछ भारीपन लिए हुआ होता है। हथेली में रखने से हलकी ऊष्णता एवं सामान्य से कुछ अधिक वजन का अनुभव होता है। काँच के पात्र में रखने से इसकी हल्की लाल किरणें चारों तरफ़ से निकलती दिखाई देंगी। गाय के दूध में असली माणिक्य रखा जाये तो दूध का रंग गुलाबी दिखलाई देगा। अतएव असली एवं शुद्ध माणिक स्निग्ध, चिकना, कांतियुक्त, पानीदार, भारीपन लिए तथा कनेर पुष्प जैसे लाल वर्ण का होना चाहिए।
धारण विधि - माणिक्य रत्न रविवार को सूर्य की होरा में, कृत्तिका, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, रविपुष्य योग में सोने अथवा ताँबे की अंगूठी में जड़वा कर तथा सूर्य के बीजमंत्रों द्वारा अंगूठी अभिमंत्रित करके अनामिका ऊँगली में धारण करनी चाहिये। इसका वजन ३, ५, ७ अथवा ९ रत्ती के क्रम से होना चाहिए।
सूर्य बीज मंत्र - ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः
धारण करने के उपरान्त गायत्री मंत्र की ३ माला का पाठ, हवन एवं सूर्य भगवान को विधिपूर्वक अर्घ्य प्रदान करना तथा ताम्र बर्तन, कनक, नारियल, मानक, गुड़, लाल वस्त्रादि जैसी सूर्य से सम्बन्धित वस्तुओं का दान करना चाहिए।
विधिपूर्वक माणिक्य धारण करने से राजकीय क्षेत्रों में प्रतिष्ठा, भाग्योन्नति, पुत्र संतान लाभ, तेजबल में वृद्धि कारक तथा हृदय रोग, चक्षुरोग, रक्त विकार, शरीर दौर्बल्यादि में लाभकारी होता है।
मेष, कर्क, सिंह, तुला, वृश्चिक एवं धनु राशि अथवा इसी लग्न वालो को माणिक धारण करना शुभ लाभप्रद रहता है। जिनकी चन्द्र कुंडली में सूर्य योगकारक होता हुआ भी प्रभावी न हो रहा हो उनके लिए भी माणिक धारण करना शुभ रहता है।
चन्द्र रत्न मोती (PEARL)
संस्कृत में इसे मौक्तिक, मुक्तक, चन्द्रमणि, इत्यादि, हिंदी-पंजाबी में मोती तथा अंग्रेज़ी भाषा में पर्ल (Pearl) कहा जाता है। मोती या मुक्त रत्न का स्वामी चन्द्रमा है।
पहचान विधि - शुद्ध एवं श्रेष्ठ मोती गोल, श्वेत, उज्ज्वल, चिकना, चन्द्रमा के समान कान्तियुक्त, निर्मल एवं हल्कापन लिए होता है
परीक्षा - (१) गोमूत्र को किसी मिट्टी के बर्तन में डालकर उसमें मोती रात भर रखें यदि वह अखण्डित रहे तो मोती को शुद्ध समझें। (२) पानी से भरे शीशे के गिलास में मोती डाल दें यदि पानी से किरणें सी निकलती दिखाई पड़े तो मोती असली जानें। शुद्ध मोती के अभाव में चन्द्रकांत मणि अथवा सफ़ेद पुखराज धारण किया जा सकता है।
असली शुद्ध मोती धारण करने से मानसिक शक्ति का विकास, शारीरिक सौंदर्य की वृद्धि, स्त्री एवं धनादि सुखों की प्राप्ति होती है। इसका प्रयोग स्मरणशक्ति में भी वृद्धिकारक होता है।
रोग शान्ति - चिकित्सा शास्त्र में भी मोती या मुक्ता भस्म का उपयोग मानसिक रोगों, मूर्छा-मिर्गी, उन्माद, रक्तचाप, उदर-विकार, पथरी तथा दन्त रोगादि में होता है।
धारण विधि - मोती चांदी की अंगूठी में शुक्ल पक्ष के सोमवार को, पूर्णिमा को, चन्द्रमा की होरा में गंगा जल, कच्चे दूध में स्नान करवाते हुए चन्द्र के बीज मंत्र - ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः का ११००० की संख्या में जाप करने के उपरान्त धारण करना चाहिए। तदुपरांत चावल, चीनी, क्षीर, श्वेत फल एवं वस्त्रादि का दान करना शुभ होगा।
मोती २, ४, ६ अथवा ११ रत्ती का अनामिका या कनिष्ठिका अंगुली में हस्त, रोहिणी अथवा श्रवण नक्षत्र में सुयोग्य ज्योतिषी द्वारा बताए गए मुहूर्त्त में धारण करनी चाहिए। मेष, वृष, मिथुन, कर्क, कन्या, तुला, वृश्चिक तथा मीन राशि/लग्न वालों को मोती शुभ रहता है।
चन्द्रमा का उपरत्न - चन्द्रकांत मणि (Moon Light Stone) - यह उपरत्न चाँदी जैसी चमक लिए हुए मोती रत्न के अभाव में उसका पूरक माना जाता है। इसको हिलाने से इस पर एक दूधिया जैसी प्रकाश रेखा चमकती है। यह रत्न भी मानसिक शान्ति, प्रेरणा, स्मरण शक्ति में वृद्धि तथा प्रेम में सफलता प्रदान करता है। लाभ की दृष्टि से चंद्रकांत मणि मलाई के रंग का (सफ़ेद और पीले के बीच का) उत्तम माना जाता है। इसे चाँदी में ही धारण करना चाहिए।
मंगल - रत्न मूंगा (CORAL)
संस्कृत में इसे प्रवाल, अंगारकमणि तथा अंग्रेज़ी भाषा में कोरल (Coral) कहा जाता है। मूंगा मुख्यत: लाल, सिंधूरी, हिंगुल एवं गेरूआ वर्ण का होता है।
पहचान विधि - गोल, चिकना, चमकदार एवं औसत से अधिक वजनी, सिंधूरी एवं शिंगरफ से मिलते जुलते रंग का मूंगा श्रेष्ठ माना जाता है। इसका स्वामी ग्रह मंगल है।
परीक्षा - (१) असली मूंगे को ख़ून में डाल दिया जाये तो इसके चारों और गाढ़ा रक्त जमा होने लगता है। (२) असली मूंगा यदि गौ के दूध में डाल दिया जाए तो उसमें लाल रंग की झाई सी दिखने लगती है।
श्रेष्ठ जाति का मूंगा धारण करने से भूमि, पुत्र, एवं भ्रातृ सुख, नीरोगता आदि की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त रक्त-विकार, भूत-प्रेत बाधा, दुर्बलता, मन्दाग्नि, हृदय रोग, वायु-कफादि विकार, पेट विकारादि में मूंगे की भस्म अथवा पिष्टी का प्रयोग किया जाता है। मेष, कर्क, सिंह, तुला, वृश्चिक, मकर, कुम्भ व मीन राशि एवं लग्न वालों को सुयोग्य ज्योतिषी के परामर्शनुसार धारण करना लाभप्रद होगा।
धारण विधि - शुक्ल पक्ष के मंगलवार को प्रातः मंगल की होरा में मृगशिर, चित्रा या घनिष्ठा नक्षत्र एवं मेष, मकर या वृश्चिक के चन्द्रमा कालीन सोने या ताँबे की अंगूठी में जड़वा कर बीज मंत्र द्वारा अभिमंत्रित करके अनामिका अंगुली में ६, ८, १० या १२ रत्ती के वजन में धारण करना शुभ रहता है। धारण करने के उपरान्त मंगल स्तोत्र एवं मंगल ग्रह का दान शुभ होता है।
भौम बीज मंत्र - ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः
शारीरिक स्वास्थ्य एवं कुंडली में मंगल नीच राशिस्थ हो तो सफ़ेद मूँगा भी धारण किया जा सकता है।
बुध रत्न पन्ना (EMERALD)
पन्ना बुध तरह का मुख्य रत्न है। संस्कृत में इसे मरकतमणि, अशमगर्भ, सौपर्णी हरितमणि, फ़ारसी ज़बान में जमरूद व अंग्रेज़ी भाषा में इमराल्ड (Emerald) कहा जाता है। पन्ना हरे रंग, स्वच्छ, पारदर्शी, कोमल, चिकना व चमकदार होता है।
परीक्षा - (१) शीशे के गिलास में साफ़ पानी और पन्ना डाल दिया जाये तो हरी किरणें निकलती दिखाई देंगी। (२) असली पन्ने को हाथ में लेने पर वह हल्का, कोमल व आँखों को शीतलता प्रदान करता है।
गुण - पन्ना धारण करने से बुद्धि तीव्र एवं स्मरण शक्ति बढ़ती है। विद्या, बुद्धि, धन एवं व्यापर में वृद्धि के लिए लाभप्रद माना जाता है। पन्ना सुख एवं आरोग्यदायक भी है। यह रत्न जादू टोने, रक्त विकार, पथरी, बहुमूत्र, नेत्र रोग, दमा, गुर्दे के विकार, पाण्डु, मानसिक विकलतादि रोगों में लाभकारी माना जाता है।
धारण विधि - यह नग शुक्ल पक्ष के बुधवार को अश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती, पू.फा. अथवा पुष्य नक्षत्रों में अथवा बुध की होरा में सोने की अंगूठी में दाएं हाथ की कनिष्ठिका (छोटी) अंगुली में बुध ग्रह के बीज मंत्र से अभिमंत्रित करते हुए धारण करना चाहिए। इसका वजन ३, ६, ७ रत्ती होना चाहिए।
बुध बीज मंत्र - ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः
वृष, मिथुन, सिंह, कन्या, मकर व मीन राशि वालों को विशेष लाभप्रद रहता है।
गुरु रत्न पुखराज (TOPAZ)
पुखराज गुरु (बृहस्पति) ग्रह का मुख्या रत्न है। संस्कृत में इसे पुष्प राजा, पीतस्फटिक, पीतमणि, हिंदी में पुखराज तथा अंग्रेज़ी भाषा में टोपाज़ (Topaz) कहते हैं।
पहचान विधि - जो पुखराज स्पर्श में चिकना, हाथ में लेने पर कुछ भारी लगे, पारदर्शी, प्राकृतिक चमक से युक्त हो वह उत्तम कोटि का माना जाता है।
परीक्षा - (१) जहाँ किसी विषैले कीड़े ने काटा हो, वहां पर असली पुखराज घिस कर लगाने से विष उतर जाता है। (२) कसौटी पर घिसने से इसकी चमक और अधिक बढ़ जाती है। (३) २४ घंटे दूध में रखने के बाद यदि चमक में अंतर न पड़े तो पुखराज असली होगा। इत्यादि
गुण - पुखराज धारण करने से बल, बुद्धि, स्वास्थ्य एवं आयु की वृद्धि होती है। वैवाहिक सुख, पुत्र संतान कारक एवं धर्म-कर्म में प्रेरक होता है। प्रेत- बाधा का निवारण एवं स्त्री के विवाहसुख की बाधा को दूर करने में सहायक होता है।
औषधि प्रयोग - इसको वैद्य के परामर्शनुसार केवड़ा एवं शहदादि के साथ देने से पीलिया, तिल्ली, पाण्डु रोग, खांसी, दंतरोग, मुख की दुर्गन्ध, बवासीर, मन्दाग्नि, पित्त-ज्वरादि में लाभदायक होता है।
धारण विधि - पुखराज रत्न ३, ५, ७, ९ या १२ रत्ती के वजन का सोने की अंगूठी में जड़वा कर तर्जनी अंगुली में धारण करें, स्वर्ण या ताम्र बर्तन में कच्चा दूध, गंगा जल, पीले पुष्पों से एवं "ॐ ऐं क्लीं बृहस्पतये नमः " के बीज मंत्र द्वारा अभिमंत्रित करके धारण करना चाहिए। मंत्र संख्या १९ हज़ार रहेगी।
यह नग शुक्ल पक्ष के गुरुवार की होरा में अथवा गुरुपुष्य योग में या पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वाभाद्र नक्षत्र में एवं कर्क, धनु या मीन के चन्द्रमा कालीन मुहूर्त्त में धारण करना चाहिए।
पुखराज धनु, मीन राशि के अतिरिक्त मेष, कर्क, वृश्चिक राशि वालों को लाभप्रद रहता है। धारण करने के बाद गुरु से सम्बंधित वस्तुओं का दान करना शुभ होता है।
गुरु का उपरत्न - सुनैला - इसे पुखराज का उपरत्न माना जाता है। पुखराज मूल्यवान होने के कारण सुनैला को उसके पूरक के रूप में धारण किया जा सकता है। श्रेष्ठ सुनैला हल्के पीले रंग (सरसों के जैसा पीलापन) का होता है। कई बार पुखराज से अधिक पीलापन लिए होता है। धारण विधि पुखराज के समान ही होगी।
शुक्र रत्न हीरा (DIAMOND)
शुक्र ग्रह का मुख्य प्रतिनिधित्व "हीरा" है। संस्कृत में इसे वज्रमणि हिंदी में हीरा तथा अंग्रेज़ी भाषा में डायमंड (Diamond) कहते हैं। हीरा अत्यन्त चमकदार प्रायः श्वेत वर्ण का होता है।
पहचान विधि - अत्यन्त चमकदार, चिकना, कठोर, पारदर्शी एवं किरणों से युक्त हीरा असली होता है।
परीक्षा - (१) हीरा गर्म पिघले हुए घी में डाल दिया जाए तो घी तुरंत जमने लगता है। (२) धूप में यदि हीरा रखा जाये तो उसमें से इंद्रधनुष जैसी किरणें दिखाई देती हैं। (३) तोतले बच्चे के मुंह में रखने से बच्चा ठीक से बोलने लगता है। (४) अँधेरे में जुगनू की भांति चमकता है।
गुण - हीरे में वशीकरण करने की विशेष शक्ति होती है। इसके पहनने से वंश-वृद्धि, धन-लक्ष्मी व संपत्ति की वृद्धि, स्त्री व संतान सुख की प्राप्ति व स्वास्थ्य में लाभ होता है। वैवाहिक सुख में भी वृद्धिकारक माना जाता है।
अौषधीय गुण - हीरे की भस्म शहद-मलाई आदि के साथ ग्रहण करने से अनेक रोगों में लाभ होता है। जैसे - दौर्बल्यता, नपुंसकता, वायु प्रकोप, मन्दाग्नि, वीर्य विकार, प्रमेह दोष, हृदय रोग, श्वेत प्रदर, विषैला व्रण, बच्चों में सुखा रोग, मानसिक कमज़ोरी इत्यादि अौषधि का सेवन वैद्य के परामर्शनुसार करना चाहिए।
धारण विधि - शुक्लपक्ष के शुक्रवार वाले दिन, शुक्र की होरा में, भरणी, पुष्य, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र एवं शुक्र, वृष, तुला या मीन राशिगत हो तो, एक रत्ती या इससे अधिक वजन का हीरा सोने की अंगूठी में जड़वा कर शुक्र के बीज मंत्र "ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः" का १६ हज़ार की संख्या में जाप करके शुभ मुहूर्त्त में धारण करना चाहिये। हीरा मध्यमा अंगुली में धारण करना चाहिए। धारण करने के दिन शुक्र ग्रह से सम्बंधित वस्तुएँ जैसे दूध, चांदी, दही, मिश्री, चावल, श्वेत वस्त्र, चंदनादि का दान यथाशक्ति करना चाहिए।
हीरा धारण करने की तिथि से ७ वर्ष पर्यन्त प्रभावकारी बन रहता है। हीरा वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर, कुम्भ राशि वालों को लाभदायक रहता है।
शुक्र के उपरत्न -
फ़िरोज़ा - नीले आकाशीय रंग जैसा यह नग शुक्र का उपरत्न माना गया है। यह रत्न भूत, प्रेत, दैवी आपदा तथा आने वाले कष्टों से धारक की रक्षा करता है। यदि इस रत्न को कोई भेंट स्वरूप प्राप्त करके पहनेगा तो अधिक प्रभावशाली रहेगा। हल्के-प्रखर चमकदार रंग वाला रत्न उत्तम होता है। कोई भी कष्ट या रोग आने से पहले यह रत्न अपना रंग बदल लेता है। नेत्र रोग, सौंदर्य, सिर दर्द, विषादि रोगों में विशेष लाभकारी रहता है।
ओपल - यह भी शुक्र का अन्य उपरत्न है, इसको धारण करने से सदाचार, सद्चिंतन तथा धार्मिक कार्यों की ओर रुचि रहती है। अधिक लोकप्रिय नहीं है।
इनके अतिरिक्त शुक्र के अन्य भी बहुत से उपरत्न प्रचलित हैं।
शनि रत्न नीलम (SAPPHIRE)
नीलम शनि ग्रह का मुख्य रत्न है। संस्कृत भाषा में इसे नील, नीलमणि, इंद्रनील हिंदी में नीलम तथा अंग्रेज़ी भाषा में सैफायर (Sapphire) कहते हैं।
पहचान विधि - असली नीलम चमकीला, चमकीला, चिकना, मोरपंख के समान वर्ण वाला, नीली किरणों से युक्त एवं पारदर्शी होगा।
परीक्षा - (१) असली नीलम को दूध में डाल दिया जाये तो दूध का रंग नीला लगता है। (२) पानी से भरे कांच के गिलास में डाला जाये तो नीली किरणें दिखाई देंगी। (३) सूर्य की धूप में रखने से नीले रंग की किरणें दिखाई देंगी।
गुण - नीलम धारण करने से धन-धान्य, यश-कीर्ति, बुद्धि चातुर्य, सर्विस एवं व्यवसाय तथा वंश में वृद्धि होती है। स्वास्थ्य सुख का लाभ होता है।
नीलम शनि साढ़े साती के अनिष्ट प्रभाव का निवारण करता है। बहुधा नीलम चौबीस घंटे के भीतर ही प्रभाव करना शुरू कर देता है। यदि नीलम अनुकूल न बैठे तो भारी नुकसान की आशंका होती है। अतएव परीक्षा के तौर पर कम से कम ३ दिन तक पास रखने पर यदि बुरे स्वप्न आएं, रोग उत्पन्न हो या चेहरे की बनावट में अंतर आ जाये तो नीलम मत पहने।
रोग शान्ति - नीलम धारण करने या अौषधि रूप में ग्रहण करने से दमा, क्षय, कुष्ट रोग, हृदय रोग, अजीर्ण, ज्वर, खांसी, नेत्र रोग, मस्तिष्क विकार, कुष्ठ रोग, मूत्राशय सम्बन्धी रोगों में लाभकारी रहता है।
धारण विधि - नीलम ५, ७, ९, १२ अथवा अधिक रत्ती के वजन का पंचधातु, लोहे अथवा सोने की अंगूठी में शनिवार को शनि की होरा में एवं पुष्य, उभा, चित्र, स्वा, धनि या शतभिषा नक्षत्रों में शनि के बीज मंत्र "ॐ प्रां प्रीं प्रों सः शनये नमः" मन्त्र से २३००० की संख्या में अभिमंत्रित करके धारण करें। तत्पश्चात शनि की वस्तओं का दान दक्षिणा सहित करना कल्याणकारी होगा।
राहु रत्न गोमेद (HESSONITE)
गोमेद राहु ग्रह का मुख्य रत्न है। संस्कृत भाषा में इसे गोमेदक, पिगस्फटिक, पीतरक्तमणि, तमोमणि हिंदी में गोमेद तथा अंग्रेज़ी भाषा में हेसोनायट (Hessonite) कहते हैं।
गोमेद का रंग गोमूत्र के समान हल्के पीले रंग का, कुछ लालिमा तथा श्यामवर्ण होता है। स्वच्छ, भारी, गोमेद उत्तम होता है तथा उसमें शहद के रंग की झाई भी दिखाई देती है।
पहचान विधि - सामान्यतः गोमेद उल्लू अथवा बाज की आँख के समान होता है तथा गोमूत्र के समान, दल रहित यानि जो परतदार न होआ, ऐसे गोमेद उत्तम होंगे।
परीक्षा - (१) शुद्ध गोमेद को २४ घंटे तक गोमूत्र में रखने से गोमूत्र का रंग बदल जायेगा।
धारण विधि - गोमेद रत्न शनिवार को शनि की होरा में, स्वाति, शतभिषा, आद्रा अथवा रविपुष्य योग में पंचधातु अथवा लोहे की अंगुठी में जड़वाकर तथा राहु के बीज मंत्र द्वारा अंगुठी अभिमंत्रित करके दाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करनी चाहिए। इसका वजन ५, ७, ९ रत्ती का होना चाहिए।
राहु का बीज मंत्र - ॐ भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः
धारण करने के उपरान्त बीज मंत्र का पाठ, हवन एवं सूर्य भगवान को अर्घ्य प्रदान कर नीले रंग का वस्त्र, कम्बल, तिल, बाजरा आदि दक्षिणा सहित दान करें।
विधिपूर्वक गोमेद धारण करने से अनेक प्रकार की बीमारियां नष्ट होती है, धन-संपत्ति-सुख-संतान वृद्धि, वकालत व राजपक्ष आदि की उन्नति के लिए अत्यन्त लाभकारी है। शत्रु-नाश हेतु भी इसका प्रयोग प्रभावी रहता है।
जिनकी जन्मकुंडली में राहु १, ४, ५, ७, ९, १०वें भाव में हो, उन्हें गोमेद रत्न पहनना चाहिए। मकर लग्न वालों के लिए गोमेद शुभ होता है।
केतु रत्न लहसुनिया (CATS EYE)
केतु-रत्न लहसुनिया को संस्कृत भाषा में वैदूर्य, विडालाक्ष तथा अंग्रेज़ी भाषा में केट्स ऑय स्टोन (Cats Eye Stone) कहते हैं।
यह नग अँधेरे में बिल्ली की आँखों के समान चमकता है। लहसुनिया ४ रंगों में पाया जाता है। काली तथा श्वेत आभा युक्त लहसुनिया जिस पर यज्ञोपवीत के समान तीन धारियाँ खिंची हों, स्वच्छ औसत से कुछ अधिक वजनी वह वैदूर्य ही उत्तम होता है। इसे सूत्रमणि भी कहते हैं।
पहचान विधि - (१) असली लहसुनिया को यदि हड्डी के ऊपर रख दिया जाए तो वह २४ घंटे के भीतर हड्डी के आर-पार छेद कर देता है। (२) असली वैदूर्य में ढाई या तीन सफ़ेद सूत्र होते हैं, जो बीच में इधर-उधर घूमते हिलते रहते हैं।
धारण विधि - लहसुनिया रत्न बुधवार के दिन अश्विनी, मघा, मुला नक्षत्रों में रविपुष्य योग में पंचधातु की अंगुठी में कनिष्ठका अंगुली में धारण करें। धारण करने से पूर्व केतु के बीज मंत्र द्वारा अंगुठी अभिमंत्रित करें। ५ रत्ती से कम वजन का नहीं होना चाहिए। प्रत्येक ३ वर्ष के बाद नई अंगूठी में लहसुनिया जड़वाकर उसे अभिमंत्रित कर धारण करना चाहिए।
केतु का बीज मंत्र - ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः
रत्न धारण करने बाद बुधवार को ही किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को तिल, तेल, कम्बल, धूम्रवर्ण का वस्त्र, सप्तधान्य (अलग-अलग रूप में ) यथशक्ति दक्षिणा सहित दान करें।
विधिपूर्वक लहसुनिया धारण करने से भूत प्रेतादि की बाधा नहीं रहती है। संतान सुख, धन की वृद्धि एवं शत्रु व रोग नाश में सहायता प्रदान करता है।
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