यह तो आप सब जानते है की छिन्नमस्ता महाविद्या दस महाविद्याओं में पांचवें स्थान की साधना मानी जाती हैं ! छिन्नमस्ता अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र पढ़ने से साधक जीवन में सभी दृष्टियों से सुखी रहता है । साधक का शरीर स्वस्थ, सुन्दर और आकर्षक बन जाता है ! साधक को जीवन में धन, धान्य, पृथ्वी, विलासमय भवन, कीर्ति, दीर्घायु ख्याति, यश, वाहन, पुत्र, पौत्र और अन्य सभी भौतिक सुख स्वत: ही प्राप्त होते रहते हैं तथा जीवन में किसी प्रकार का अभाव देखने को नहीं मिलता !! छिन्नमस्ता अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Chinnamasta Ashtottara Shatanama Stotram
पार्वत्युवाच
नाम्नां सहस्रमं परमं छिन्नमस्ता-प्रियं शुभम्।
कथितं भवता शम्भो सद्यः शत्रु-निकृन्तनम्।।1।।
पुनः पृच्छाम्यहं देव कृपां कुरु ममोपरि।
सहस्र-नाम-पाठे च अशक्तो यः पुमान् भवेत्।।2।।
तेन किं पठ्यते नाथ तन्मे ब्रूहि कृपामय।
श्री सदाशिव उवाच
अष्टोत्तर-शतं नाम्नां पठ्यते तेन सर्वदा।
सहस्र्-नाम-पाठस्य फलं प्राप्नोति निश्चितम् .
ॐ अस्य श्रीछिन्नमस्ताष्टोत्तर-शत-नाअम-स्तोत्रस्य सदाशिव
ऋषिरनुष्टुप् छन्दः श्रीछिन्नमस्ता देवता
मम-सकल-सिद्धि-प्राप्तये जपे विनियोगः।
ॐ छिन्नमस्ता महाविद्या महाभीमा महोदरी .
चण्डेश्वरी चण्ड-माता चण्ड-मुण्ड्-प्रभञ्जिनी।।4।।
महाचण्डा चण्ड-रूपा चण्डिका चण्ड-खण्डिनी।
क्रोधिनी क्रोध-जननी क्रोध-रूपा कुहू कला ।।5।।
कोपातुरा कोपयुता जोप-संहार-कारिणी ।
वज्र-वैरोचनी वज्रा वज्र-कल्पा च डाकिनी।।6।।
डाकिनी कर्म्म-निरता डाकिनी कर्म-पूजिता।
डाकिनी सङ्ग-निरता डाकिनी प्रेम-पूरिता।।7।।
खट्वाङ्ग-धारिणी खर्वा खड्ग-खप्पर-धारिणी ।
प्रेतासना प्रेत-युता प्रेत-सङ्ग-विहारिणी ।।8।।
छिन्न-मुण्ड-धरा छिन्न-चण्ड-विद्या च चित्रिणी ।
घोर-रूपा घोर-दृष्टर्घोर-रावा घनोवरी ।।9।।
योगिनी योग-निरता जप-यज्ञ-परायणा।
योनि-चक्र-मयी योनिर्योनि-चक्र-प्रवर्तिनी ।।10।।
योनि-मुद्रा-योनि-गम्या योनि-यन्त्र-निवासिनी ।
यन्त्र-रूपा यन्त्र-मयी यन्त्रेशी यन्त्र-पूजिता ।।11।।
कीर्त्या कपर्दिनी: काली कङ्काली कल-कारिणी।
आरक्ता रक्त-नयना रक्त-पान-परायणा ।।12।।
भवानी भूतिदा भूतिर्भूति-दात्री च भैरवी ।
भैरवाचार-निरता भूत-भैरव-सेविता।।13।।
भीमा भीमेश्वरी देवी भीम-नाद-परायणा ।
भवाराध्या भव-नुता भव-सागर-तारिणी ।।14।।
भद्रकाली भद्र तनुर्भद्र-रूपा च भद्रिका।
भद्ररूपा महाभद्रा सुभद्रा भद्रपालिनी।।15।।
सुभव्या भव्य-वदना सुमुखी सिद्ध-सेविता ।
सिद्धिदा सिद्धि-निवहा सिद्धासिद्ध-निषेविता।।16।।
शुभदा शुभगा शुद्धा शुद्ध-सत्वा-शुभावहा ।
श्रेष्ठा दृष्टिमयी देवी दृष्ठि-संहार-कारिणी।।17।।
शर्वाणी सर्वगा सर्वा सर्व-मङ्गल-कारिणी ।
शिवा शान्ता शान्ति-रूपा मृडानी मदनातुरा ।।18।।
इति ते कथितं देवि स्तोत्रं परम-दुर्लभम्।
गुह्याद्-गुह्यतरं गोप्यं गोपनीयं प्रयत्नतः ।।19।।
किमत्र बहुनोक्तेन त्वदग्रं प्राण-वल्लभे।
मारणं मोहनं देवि ह्युच्चाटनमतः परमं .।।20।।
स्तम्भनादिक-कर्म्माणि ऋद्धयः सिद्धयोऽपि च।
त्रिकाल-पठनादस्य सर्वे सिध्यन्त्यसंशयः ।।21।।
महोत्तमं स्तोत्रमिदं वरानने मयेरितं नित्य मनन्य-बुद्धयः।
पठन्ति ये भक्ति-युता नरोत्तमा भवेन्न तेषां रिपुभिः पराजयः ।।22।।
!! इति श्रीछिन्नमस्तका अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् !!
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