।। गृहस्थ गीता के अनमोल वचन ।। ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र 941 508 7711/www.astroexpertsolutions.com जीवन में चार का महत्व ध्यान रखने योग्य बातें १. चार बातों को याद रखे :- बड़े बूढ़ो का आदर करना, छोटों की रक्षा करना एवं उनपर स्नेह करना, बुद्धिमानो से सलाह लेना और मूर्खो के साथ कभी न उलझना ! २. चार चीजें पहले दुर्बल दिखती है परन्तु परवाह न करने पर बढ़कर दुःख का कारण बनती है :- अग्नि, रोग, ऋण और पाप ! ३. चार चीजो का सदा सेवन करना चाहिए :- सत्संग, संतोष, दान और दया ! ४. चार अवस्थाओ में आदमी बिगड़ता है :- जवानी, धन, अधिकार और अविवेक ! ५. चार चीजे मनुष्य को बड़े भाग्य से मिलते है :- भगवान को याद रखने की लगन, संतो की संगती, चरित्र की निर्मलता और उदारता ! ६. चार गुण बहुत दुर्लभ है :- धन में पवित्रता, दान में विनय, वीरता में दया और अधिकार में निराभिमानता ! ७. चार चीजो पर भरोसा मत करो :- बिना जीता हुआ मन, शत्रु की प्रीति, स्वार्थी की खुशामद और बाजारू ज्योतिषियों की भविष्यवाणी ! ८. चार चीजो पर भरोसा रखो :- सत्य, पुरुषार्थ, स्वार्थहीन और मित्र ! ९. चार चीजे जाकर फिर नहीं लौटती :- मुह से निकली बात, कमान से निकला तीर, बीती हुई उम्र और मिटा हुआ ज्ञान ! १०. चार बातों को हमेशा याद रखे :- दूसरे के द्वारा अपने ऊपर किया गया उपकार, अपने द्वारा दूसरे पर किया गया अपकार, मृत्यु और भगवान ! ११. चार के संग से बचने की चेस्टा करे :- नास्तिक, अन्याय का धन, पर(परायी) नारी और परनिन्दा ! १२. चार चीजो पर मनुष्य का बस नहीं चलता :- जीवन, मरण, यश और अपयश ! १३. चार पर परिचय चार अवस्थाओं में मिलता है :- दरिद्रता में मित्र का, निर्धनता में स्त्री का, रण में शूरवीर का और मदनामी में बंधू-बान्धवो का ! १४. चार बातों में मनुष्य का कल्याण है :- वाणी के सयं में, अल्प निद्रा में, अल्प आहार में और एकांत के भवत्स्मरण में ! १५. शुद्ध साधना के लिए चार बातो का पालन आवश्यक है :- भूख से कम खाना, लोक प्रतिष्ठा का त्याग, निर्धनता का स्वीकार और ईश्वर की इच्छा में संतोष ! १६. चार प्रकार के मनुष्य होते है : (क) मक्खीचूस - न आप खाय और न दुसरो को दे ! (ख) कंजूस - आप तो खाय पर दुसरो को न दे ! (ग) उदार - आप भी खाय और दूसरे को भी दे ! (घ) दाता - आप न खाय और दूसरे को दे ! यदि सब लोग दाता नहीं बन सकते तो कम से कम उदार तो बनना ही चाहिए ! १७. मन के चार प्रकार है :- धर्म से विमुख जीव का मन मुर्दा है, पापी का मन रोगी है, लोभी तथा स्वार्थी का मन आलसी है और भजन साधना में तत्पर का मन स्वस्थ है