विक्रम संवत् 2076 में इस भूमण्डल पर कंकण सूर्यग्रहण : आज अर्थात 26 दिसम्बर, 2019(भारत में दृश्य) को दृश्य होगा। ग्रहण प्रारम्भ : 8: 21 AM (26 दिसम्बर) ग्रहण समाप्ति : 11: 14 AM (26 दिसम्बर) ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र 94150 87711 /www.astroexpertsolutions.com मन्दिरों के कपाट आज 26 दिसम्बर 2019 को 11:14 AM के बाद सचैल (पहने हुये वस्त्र सहित स्नान) स्नानादि से निवृत होकर ही खोलना चाहिये। बिना स्नान किये मन्दिर में प्रवेश न करें। विशेष : जहाँ ग्रहण दृश्य नहीं होता है वहाँ उसका पुण्यकाल, सूतक तथा अन्य नियम भी मान्य नहीं होते हैं। ग्रहण सूतक में कर्तव्याकर्त्तव्य : ग्रहण के प्रारम्भ में स्नान करके जप-हवन, ग्रहण के मध्य में दान एवं समाप्ति पर सचैल स्नान करना चाहिये। ग्रहण के समय तीर्थस्नान विशेषकर गंगा, कनखल (हरिद्वार में), प्रयाग (त्रिवेणी), पुष्कर और कुरुक्षेत्र में स्नान से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। ग्रहण के समय सौभाग्यवती स्त्रियाँ अशिरः(सिर पर से स्नान न करें) स्नान करें। रजस्वला स्त्री तीर्थ में स्नान न करें (केवल तीर्थ का स्मरण करें) या पात्र द्वारा पानी अलग लेकर स्नान करें। ग्रहण के समय ऊष्णोदक (गर्म पानी) से स्नान का निषेध है। ग्रहण के पर्वकाल में सोना, खाना, पीना, तैलमर्दन, मैथुन, शौचादि निषिद्ध है। सूतक निर्णय : सूर्यग्रहण का चार प्रहर एवं चन्द्रग्रहण का तीन प्रहर पहले सूतक प्रारम्भ हो जाता है। लेकिन ग्रस्तोदय ग्रहण में उदयकाल (सूर्योदय, चन्द्रोदय) को ही ग्रहण का स्पर्शकाल मानकर देवार्चन होम, जप, दानादि करना चाहिये। ग्रस्तास्त ग्रहण में अस्तकाल (सूर्यास्त, चन्द्रास्त) ही ग्रहण पर्व का समाप्ति काल होता है। लेकिन अगले दिन शुद्ध बिम्ब को देखकर ही भोजनादि करें। ग्रस्तोदय एवं ग्रस्तास्त में उदय एवं अस्त से चार प्रहर पहले ही (सूर्य-चन्द्रग्रहण) का सूतक प्रारम्भ हो जाता है। ग्रहण में पका हुआ अन्न, कटी हुई सब्जी व फल दूषित हो जाते हैं, इन्हें नहीं खाना चाहिये। लेकिन तेल या घी में पका अन्न, घी, तेल, दूध, दही, लस्सी, पनीर, अचार, चटनी, कांजी, सिरका, मरब्बा में तिल या कुशा रख देने से ये ग्रहण काल में दूषित नहीं होते हैं। सूखे खाद्य-पदार्थों में तिल या कुशा डालने की जरूरत नहीं है। ग्रहण में व्रत पर्वो का अनुष्ठान कैसे करें ? उपाकर्म को छोड़कर शेष (सत्यनारायण व्रत , अमावस्या, पूर्णिमा का स्नान-दान, वटसावित्री व्रत, गुरुपूर्णिमा, रक्षाबंधन, नवरात्रारम्भ, घट स्थापना, दीपावली, होलिका दहन आदि किसी भी व्रत-पर्व से संबंधित अनुष्ठान पर सूर्य या चन्द्रग्रहण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इन व्रत पर्वो से संबद्ध अनुष्ठान ग्रहणकाल एवं ग्रहण सूतक में भी करना चाहिये। यहाँ पर शास्त्र निर्देश यह है कि व्रत पर्वो से संबधित पूजादि के अनुष्ठान काल में यदि ग्रहण या सूतक लगा हुआ हो तो स्नान करके पूजा करनी चाहिये और पकवान का वहाँ प्रयोग न किया जाये। ग्रहण के सूतक एवं ग्रहण काल में व्रत का पारणा नहीं करना चाहिये। ग्रस्त चन्द्रमा के अस्त होने पर प्रातः कालीन और ग्रस्त सूर्य के अस्त होने पर सायं कालीन नित्यकर्म (सन्ध्या-वन्दनादि) स्नान करके कर लेना चाहिये- ऐसा शास्त्र निर्णय है। ग्रहण में श्राद्ध : श्राद्ध के दिन यदि ग्रहण आ पड़े तो श्राद्ध के लिए आमन्त्रित ब्राह्मण को श्राद्ध के विहित काल (मध्याह्न या अपराह्न) में दक्षिणा सहित अपक्वान्न (बिना पका अन्न) ही दें। यह देने से पहले श्राद्धकर्ता को स्नान अवश्य कर लेना चाहिये। विशेष : गर्भिणी स्त्रियों को सूर्य एवं चन्द्र दोनों ग्रहण नहीं देखने चाहिये। रात्रि, सन्ध्या, सूतक (जन्म एवं मृत्यु) में भी ग्रहण के समय स्नान, दान, जप, श्राद्ध विहित है। गृहस्थी को ग्रहण वाले दिन व्रताचरण एवं उपवास का निषेध है फिर भी यदि व्रत रखना चाहे तो उस दिन व्रत संकल्प से पहले थोड़ा सा तिल या फल खा लें या फिर जल या दूध पी लें। ऐसा करने से उपवास निषेध का दोष नहीं रहता और उपवास का पूर्ण फल भी प्राप्त हो जाता है। उपवासनिषेधे तु भक्ष्यं किंचित्प्रकल्पयेत्। न दुष्यत्युपवासेन उपवासफलं लभेत् ।।'' ग्रहण सूतक एवं पर्वकाल में नये व्रत का व्रतारम्भ एवं उद्यापन भी निषिद्ध है। ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र 94150 87711 ज्योतिषाचार्य आकांक्षा श्रीवास्तव ज्योतिषाचार्य श्रुति कृति ज्योतिष आचार्य मनोज शुक्ला