मंगल। मंगल सेनापति है। एक वीर योद्धा है।
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राजा भी सेनापति पे निर्भर रहता है। सेनापति सम्पूर्ण राज्य की रक्षया करता है। सिर्फ पराक्रम से ही नही उसको दुश्मन सेना को हराने के लिए दिमाग भी लगाना पड़ता है। षड्यंत्र रचने भी पड़ते है ओर षड्यंत्रों का सामना भी करना पड़ता है। हराने के लिए।
इसीलिए तो मंगल तर्क भी तो है आक्रामकता के साथ साथ। जब इतना साहस चाहिए तो फिर मंगल अग्निकारक ग्रहः क्यों नही होगा। दुश्मन सेना को तहस नहस करने की काबिलियत जो होती है उसके अंदर।
आपके जननांग भी तो मंगल ही है । लेकिन अपने राजा के घर(सिंह) में तो चुप बैठना ही पड़ेगा न। राजा का तो सम्मान करना ही पड़ेगा।
माथे की बिंदिया मंगल ही तो है।
सिंदूर मंगल ही तो है।
लाल साड़ी क्या है मंगल। लाल चुनरी क्या है मंगल।
लाल और लाली मंगल ही तो है।
लाल की ताकत चीन। रूस। बंगाल। केरल में देख चुके है। कितनी ताकत लाल में। इसी पिये तो तिलक भी लाल। मोली भी लाओ।
सब जगह मंगल ही तो है। मंगल है भाई मंगल है।
अब मंगल में इतना बल है तो उसको झेलने वाला भी तो मंगल ही चाहिए। इसीलिए तो मंगली की मंगली से शादी।
अब मंगल 1 4 7 8 12 में बैठ के सभी को मंगली थोड़ी बनाएगा। मंगल का बल भी तो देख ले जरा। कितना बल है। मित्र राशि मे है कि शत्रु राशि मे। उच्च का है। नीच का है। पाप ग्रह से उसका वेध हो रहा है कि नही। सीधा ही मंगली मत बोलो किसी को। ख़ामोखा मंगल बदनाम हो जाता है।
अपने शौर्य का बल शत्रु क्षेत्र में दिखायेगा इसीलिए तो मकर शनि में उच्च का। मकर कर्म स्थान भी तो है। उधर 3 पराक्रम। उधर 6 शत्रु स्थान। इन भावों का कारक अपने आप हो गया न।
फिर मंगल अमंगल कैसे हो गया। भोहे मंगल ही तो है। भोहे तन जाए तो समझो मंगल का बहुत आ गया।
आंखे लाल हो जाये तो समझो मंगल आ गया।
शरीर मे आक्रामकता आ जाये तो समझो मंगल जी पधार गए है।
अब अग्नि को शांत कौन करेगा। उसका विपरीत जहा वो नीच का मतलब चन्द्र। मतलब चन्द्र मंगल से बलि हुआ तो वही आक्रामकता दिखाओगे जहा जरूरत होगी। अन्यथा शांत ही रहोगे।
लग्न लग्नेश के साथ साथ जरा मंगल पे भी नज़र डाल लिया करो देह सुख के लिए। काल पुरुष में लग्न वही तो है नोजवानो।
जिसके साथ बैठ जाये उस ग्रहः मे इतना साहस भर दे।
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