परालौकिक शक्ति – भूत-प्रेत, पिशाच, आत्माएं Shabar Mantra Specialist Guruji 3:20 am परालौकिक शक्ति – भूत-प्रेत, पिशाच, आत्माएं ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र सिद्धिविनायक ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र विभव खंड 2 गोमती नगर लखनऊ 94150 87711 जरा सोचिए एक ऐसी ताकत जो आपको ना तो नुकसान पहुंचा रही है न ही आपके लिए कोई परेशानी खड़ी कर रही है लेकिन फिर भी उसका दिखाई ना देना आपके लिए कितना भयावह है…! भूत-प्रेत, पिशाच, आत्माएं इन सब से जुड़ी बातें जितनी ज्यादा रोमांचित करती हैं उतनी ही सिहरन और भय का माहौल भी बनाती हैं. रात के समय इन आत्माओं का अगर जिक्र भी छिड़ जाए तो भी चारों तरफ डर और भय का माहौल बन जाता है. बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो इस अंधेरी दुनिया और काले साये जैसी बातों पर भरोसा नहीं करते लेकिन एक सच यह भी है कि अच्छे के साथ-साथ बुरा भी होता है. अगर हम ईश्वर पर विश्वास करते हैं तो हमें पिशाचों पर भी विश्वास करना होगा, नहीं तो सत्य से मुंह फेरने वाली बात ही होगी. आपने ऐसे बहुत से लोगों को देखा या उनके बारे में सुना होगा जो इन्हीं काले सायों के जाल में फंस जाते हैं. 1. पारलौकिक शक्तियों को समझने वाले लोगों का कहना है कि अपनी इच्छाओं और अधूरी आंकाक्षाओं को पूरा करने के लिए कुछ लोग मरने के बाद भी वापिस आते हैं. इसके अलावा अगर अपने संबंधियों या परिचितों के साथ उनका कोई सौदा बकाया रह जाता है तो भी उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलती और वह उस लेन-देन को पूरा करने के लिए जीवित लोगों की दुनिया में कदम रखते हैं. 2. बिना शरीर के मृत आत्माएं अपनी इच्छाओं को पूरा नहीं कर सकतीं इसीलिए उन्हें एक शरीर की आवश्यकता पड़ती है. वह किसी व्यक्ति के शरीर में वास कर अपनी अधूरी इच्छाओं को पूरा करती हैं. यह उनकी इच्छा की गहराई और उसके पूरे होने की समय सीमा पर निर्भर करता है कि वह किसी व्यक्ति के शरीर में कितनी देर तक ठहरते हैं. यह अवधि कुछ घंटों या सालों की भी हो सकती है. कई बार तो जन्मों-जन्मों तक वह आत्मा उस शरीर का पीछा नहीं छोड़ती. 3. ऐसा माना जाता है कि जानवर किसी आत्मा या पिशाच की उपस्थिति को सबसे पहले भांप सकता है. अगर रात के समय कोई कुत्ता बिना किसी कारण के भौंकने लगे या अचानक शांत होकर बैठ जाए तो इसका मतलब है उसने किसी पारलौकिक शक्ति का अहसास किया है. 4. झगड़े या विवाद के पश्चात किसी भूमि या इमारत का अधिग्रहण किया जाता है और इस झगड़े के कारण किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो वह जगह हॉंटेड बन जाती है. निश्चित तौर पर वहां बुरी आत्माएं अपना डेरा जमा लेती हैं. 5. जीवित लोगों को बहुत चीजें प्यारी होती हैं. किसी को अपना मोबाइल प्यारा होता है तो कोई अपने कैमरे के बिना नहीं रह सकता. लेकिन अगर आप यह सोचते हैं कि मरने के बाद यह प्यार समाप्त हो जाता है तो आप गलत हैं. क्योंकि मरने के बाद भी चीजों के साथ यह लगाव बरकरार रहता है और जिन चीजों को मृत व्यक्ति अपने जीवन में बहुत प्यार करता था मरने के बाद भी उसे अपना ही समझता है. इसीलिए अगर कोई दूसरा व्यक्ति उस वस्तु को हाथ लगाए तो यह उन्हें बर्दाश्त नहीं होता.. भूत-प्रेत के बारे में 10 बातें भूत-प्रेत का नाम सुनते ही अचानक ही एक भयानक आकृति हमारे दिमाग में उभरने लगती है और मन में डर समाने लगता है। हमारे दैनिक जीवन में कहीं न कहीं हम भूत-प्रेत का नाम अवश्य सुनते हैं। कुछ लोग भूतों को देखने का दावा भी करते हैं जबकि कुछ इसे कोरी अफवाह मानते हैं। भूत-प्रेत से जुड़ी कई मान्यताएं व अफवाएं भी हमारे समाज में प्रचलित हैं। दुनिया के लगभग हर धर्म में भूत-प्रेतों के बारे में कुछ न कुछ बताया गया है। विभिन्न धर्म ग्रंथों में भी भूत-प्रेतों के बारे में बताया गया है। सवाल यह उठता है कि अगर वाकई में भूत-प्रेत होते हैं तो दिखाई क्यों नहीं देते या फिर कुछ ही लोगों को क्यों दिखाई देते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार जीवित मनुष्य का शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना होता है-पृथ्वी, जल, वायु, आकाश व अग्नि। मानव शरीर में सबसे अधिक मात्रा पृथ्वी तत्व की होती है और यह तत्व ठोस होता है इसलिए मानव शरीर आसानी से दिखाई देता है। जबकि भूत-प्रेतों का शरीर में वायु तत्व की अधिकता होती है। वायु तत्व को देखना मनुष्य के लिए संभव नहीं है क्योंकि वह गैस रूप में होता है इसलिए इसे केवल आभास किया जा सकता है देखा नहीं जा सकता। यह तभी संभव है जब किसी व्यक्ति के राक्षण गण हो या फिर उसकी कुंडली में किसी प्रकार का दोष हो। मानसिक रूप से कमजोर लोगों को भी भूत-प्रेत दिखाई देते हैं जबकि अन्य लोग इन्हें नहीं देख पाते। धर्म शास्त्रों के अनुसार भूत का अर्थ है बीता हुआ समय। दूसरे अर्थों में मृत्यु के बाद और नए जन्म होने के पहले के बीच में अमिट वासनाओं के कारण मन के स्तर पर फंसे हुए जीवात्मा को ही भूत कहते हैं। जीवात्मा अपने पंच तत्वों से बने हुए शरीर को छोडऩे के बाद अंतिम संस्कार से लेकर पिंड दान आदि क्रियाएं पूर्ण होने तक जिस अवस्था में रहती है, वह प्रेत योनी कहलाती है। गरूण पुराण के अनुसार व्यक्ति की मृत्यु के बाद पुत्र आदि जो पिंड और अंत समय में दान देते हैं, इससे भी पापी प्राणी की तृप्ति नहीं होती क्योंकि पापी पुरुषों को दान, श्रद्धांजलि द्वारा तृप्ति नहीं मिलती। इस कारण भूख-प्यास से युक्त होकर प्राणी यमलोक को जाते हैं इसके बाद जो पुत्र आदि पिंडदान नहीं देते हैं तो वे मर के प्रेत रूप होते हैं और निर्जन वन में दु:खी होकर भटकते रहते हैं। प्रत्येक नकारात्मक व्यक्ति की तरह भी भूत भी अंधेरे और सुनसान स्थानों पर निवास करते हैं। खाली पड़े मकान, खंडहर, वृक्ष व कुए, बावड़ी आदि में भी भूत निवास कर सकते हैं। हमें कई बार ऐसा सुनने में आता है कि किसी व्यक्ति के ऊपर भूत-प्रेत का असर है। ऐसा सभी लोगों के साथ नहीं होता क्योंकि जिन लोगों पर भूत-प्रेत का प्रभाव होता है उनकी कुंडली में कुछ विशेष योग बनते हैं जिनके कारण उनके साथ यह समस्या होती है। साथ ही यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा नीच का हो या दोषपूर्ण स्थिति में हो तो ऐसे व्यक्ति पर भी भूत-प्रेत का असर सबसे ज्यादा होता है। प्रेत बाधा से ग्रस्त व्यक्ति की आंखें स्थिर, अधमुंदी और लाल रहती है। शरीर का तापमान सामान्य से अधिक होता है। हाथ-पैर के नाखून काले पडऩे के साथ ही ऐसे व्यक्ति की भूख, नींद या तो बहुत कम हो जाती है या बहुत अधिक। स्वभाव में क्रोध, जिद और उग्रता आ जाती है। शरीर से बदबूदार पसीना आता है। हमारे आस-पास कई ऐसी अदृश्य शक्तियां उपस्थित रहती है जिन्हें हम देख नहीं पाते। यह शक्तियां नकारात्मक भी होती है और सकारात्मक भी। सिर्फ कुछ लोग ही इन्हें देख या महसूस कर पाते हैं। राक्षस गण वाले लोगों को भी इन शक्तियों का अहसास तुरंत हो जाता है। ऐसे लोग भूत-प्रेत व आत्मा आदि शक्तियों को तुरंत ही भांप जाते हैं। राक्षस गण, यह शब्द जीवन में कई बार सुनने में आता है लेकिन कुछ ही लोग इसका मतलब जानते हैं। यह शब्द सुनते ही मन और मस्तिष्क में एक अजीब सा भय भी उत्पन्न होने लगता है और हमारा मन राक्षस गण वाले लोगों के बारे में कई कल्पनाएं भी करने लगता है। जबकि सच्चाई काफी अलग है। ज्योतिष शास्त्र के आधार पर प्रत्येक मनुष्य को तीन गणों में बांटा गया है। मनुष्य गण, देव गण व राक्षस गण। कौन सा व्यक्ति किस गण का है यह कुंडली के माध्यम से जाना जा सकता है। मनुष्य गण तथा देव गण वाले लोग सामान्य होते हैं। जबकि राक्षस गण वाले जो लोग होते हैं उनमें एक नैसर्गिक गुण होता है कि यदि उनके आस-पास कोई नकरात्मक शक्ति है तो उन्हें तुरंत इसका अहसास हो जाता है। कई बार इन लोगों को यह शक्तियां दिखाई भी देती हैं लेकिन इसी गण के प्रभाव से इनमें इतनी क्षमता भी आ जाती है कि वे इनसे जल्दी ही भयभीत नहीं होते। राक्षस गण वाले लोग साहसी भी होते हैं तथा विपरीत परिस्थिति में भी घबराते नहीं हैं। भारत की 5 भूतिया जगह …. 1.) भानगड़ किला, राजस्थान यहां सूरज ढलते ही इस किले में अगर कोई रुक पाता है, तो वो हैं वहां वास कर रहीं आत्माएं। यकीन मानिए, भानगड़ किला बाहर से दिखने में जितना सुंदर है, उसके अंदर काले जादू का आगोश है। इस किले की भूतिया कहानी के पीछे है वो शाप, जो तांत्रिक सिंघीया ने भानगड़ की राजकुमारी रत्नावती को दिया था। रत्नावती की वजह से ही इस तांत्रिक की मृत्यु हुई थी। दरअसल, राजकुमारी रत्नावती से सिंघीया नाम का व्यक्ति बहुत प्यार करता था। एक दिन राजकुमारी रत्‍नावती एक इत्र की दुकान पर पहुंची और वो इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खुशबू ले रही थी।सिंघीया उसी राज्‍य में रहता था और वो काले जादू का महारथी था। इसलिए उसने उस दुकान के पास आकर एक इत्र के बोतल जिसे रानी पसंद कर रही थी उसने उस बोतल पर काला जादू कर दिया जो राजकुमारी के वशीकरण के लिए किया था। लेकिन राजकुमारी रत्‍नावती ने उस इत्र के बोतल को उठाया, लेकिन उसे वही पास के एक पत्‍थर पर पटक दिया। पत्‍थर पर पटकते ही वो बोतल टूट गया और सारा इत्र उस पत्‍थर पर बिखर गया। इसके बाद से ही वो पत्‍थर फिसलते हुए उस तांत्रिक सिंघीया के पीछे चल पड़ा और तांत्रिक की मौके पर ही मौत हो गई। मरने से पहले तांत्रिक ने शाप दिया कि इस किले में रहने वालें सभी लोग जल्‍द ही मर जायेंगे और वो दोबारा जन्‍म नहीं ले सकेंगे और ताउम्र उनकी आत्‍माएं इस किले में भटकती रहेंगी। आज उस किले में मौत की चींखें गूंजती हैं। भारत की सरकार ने भी इस किले में शाम के बाद एंट्री बद की हुई है। 2.) दुमास बीच, गुजरात इस बीच पर हिंदुओं के शवों का दाह-संस्कार किया जाता है। लेकिन शाम के बाद यहां कोई नहीं रुक पाता। क्योंकि लोगों को अकसर यहां अजीब-गरीब आवाज़ें सुनाई देती हैं। यहां कई बार गतिविधियां भी महसूस होती हैं, मानो जैसे वहां कोई हो। जबकि आस-पास कोई नहीं होता। ऐसा माना जाता है कि यहां हर ओर मरे हुए लोगों की रूहें हर पल मौजूद रहती हैं। 3.) कुर्सियांग, पश्चिम बंगाल कुर्सियांग पश्चिम बंगाल में एक हिल स्टेशन है, जहां पर्यटकों का आना-जाना लगा ही रहता है। लेकिन कहते हैं कि यह हिल स्टेशन जितना ख़ूबसूरत है, उससे कई ज़्यादा यहां डरावनी हरकते होती हैं। यहां के लोगों को भयानक आवाज़े सुनाई देती हैं, उनके कमरों में हलचल होती रहती है और ख़ौफ के चलते, कईओं ने आत्महत्या भी कर ली। लोगों को लगता है कि कोई उनके पीछे चल रहा है। किसी ने तो एक कटे हुए सिर वाले लड़को को भी देखा, जो बाद में पेड़ों के पीछे कहीं छिप गया। 4.) राजकिरन होटल, लोनावाला, महाराष्ट्र पता : बी वार्ड, सी.एस. नंबर- 162, लोनावाला, मुंबई। मुंबई के इस गेस्ट हाउस में जो भी आता है, वो कोई न कोई किस्सा लेकर इस गेस्ट हाउस से बाहर ज़रूर निकलता है। किसी को लगता है कि रात को सोते समय कोई उसके कानों में कुछ-कुछ बोल रहा है, किसी की बेडशीट खुद ही सरकने लगती है, तो किसी को अजीब-गरीब आहट सुनाई देती है। ग्राउंड फ्लोर पर बने इस कमरे को अब वहां का मालिक भी रेंट पर नहीं देता। 5.) दिल्ली कैंट, दिल्ली, दिल्ली के सेक्टर- 9, द्वारका कहते हैं कि सेक्टर- 9 के मेट्रो स्टेशन के पास पीपल का एक पेड़ है जहां रूहों का वास है। और इसलिए लोगों ने वहां भगवान की मूर्तियां भी लगाई हुई हैं। इसके अलावा यह भी सुनने को मिला है कि इस जगह पर उन्‍होंने एक सफेद रंग के लिबास में औरत देखी है जो लोगों से लिफ्ट मांगती रहती है और जब वे उसे लिफ्ट देते हैं तो वह अपने आप ही गायब हो जाती है। लेकिन जो लिफ्ट देने से मना करता है, उसका क्या हाल होता है ?, यह किसी को नहीं पता। भूत प्रेत के बारे में सुनकर तो विश्वास नहीं होता है लेकिन जब सामना होता है तब लगते है की हाँ ये भी बिचारे इस दुनिया के ही बशिंदे है .. आपलोग भी इनसे मिलेगे तो इनका भी मन लगा रहेगा .. आखिर है तो ये भी उसी इश्वर के बनाये हुए .. दोस्ते के दोस्त और दुस्मनो के दुश्मन …वैसे भूत शब्द स्वयं में अत्यंत रहस्यमय है और उसी प्रकार उनकी दुनिया भी उतनीही रहस्यमयी है। आइये, इस लेख से जानें कि भूत-प्रेत कौन होते हैं और कैसे बनते हैं और उनके दुष्प्रभाव से बचने के लिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए और भूतग्रस्त व्यक्ति की पहचान और उपचार कैसे करें। भूत प्रेत कैसे बनते हैं: इस सृष्टि में जो उत्पन्न हुआ है उसका नाश भी होना है व दोबारा उत्पन्न होकर फिर से नाश होना है यह क्रम नियमित रूप से चलता रहता है। सृष्टि के इस चक्र से मनुष्य भी बंधा है। इस चक्र की प्रक्रिया से अलग कुछ भी होने से भूत-प्रेत की योनी उत्पन्न होती है। जैसे अकाल मृत्यु का होना एक ऐसा कारण है जिसे तर्क के दृष्टिकोण पर परखा जा सकता है। सृष्टि के चक्र से हटकर आत्मा भटकाव की स्थिति में आ जाती हैं। इसी प्रकार की आत्माओं की उपस्थिति का अहसास हम भूत के रूप में या फिर प्रेत के रूप में करते हैं। यही आत्मा जब सृष्टि के चक्र में फिर से प्रवेश करती है तो उसके भूत होने का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है। अधिकांशतः आत्माएं अपने जीवन काल में संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को ही अपनी ओर आकर्षित करती हैं। इसलिए उन्हें इसका बोध होता है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है वैसे-वैसे जल में डूबकर, बिजली द्वारा, अग्नि में जलकर, लड़ाई-झगड़े में, प्राकृतिक आपदा से मृत्यु तथा अकस्मात होने वाली अकाल मृत्यु व दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं और भूत-प्रेतों की संख्या भी उसी रफ्तार से बढ़ रही है। भूत-प्रेत कौन है: अस्वाभाविक व अकस्मात होने वाली मृत्यु से मरने वाले प्राणियों की आत्मा भटकती रहती हैं, जब तक कि वह सृष्टि के चक्र में प्रवेश न कर जाए, तब तक ये भटकती आत्माएं ही भूत व प्रेत होते हैं। इनका सृष्टि चक्र में प्रवेश तभी संभव होता है जब वे मनुष्य रूप में अपनी स्वाभाविक आयु को प्राप्त करती है। क्या करें, क्या न करें यू किसी निर्जन, एकांत या जंगल आदि में मलमूत्र त्याग करने से पूर्व उस स्थान को भलीभांति देख लेना चाहिए कि वहां कोई ऐसा वृक्ष तो नहीं है जिसपर प्रेत आदि निवास करते हैं अथवा उस स्थान पर कोई मजार या कब्रिस्तान तो नहीं है। किसी नदी, तालाब, कुआं या जलीय स्थान में थूकना या मलमूत्र का त्याग करना किसी अपराध से कम नहीं है क्योंकि जल ही जीवन है। जल को दूषित करने से जल के देवता वरुण रुष्ट हो सकते हैं। घर के आस-पास पीपल का वृक्ष नहीं होना चाहिए क्योंकि पीपल पर प्रेतों का वास होता है। सूर्य की ओर मुख करके मलमूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए। गूलर, मोलसरी, शीशम, मेंहदी आदि के वृक्षों पर भी प्रेतों का वास होता है। इन वृक्षों के नीचे नहीं जाना चाहिए और न ही खुशबूदार पोधों के पास जाना चाहिए। सेव एकमात्र ऐसा फल है जिस पर क्रिया आसानी से की जा सकती है। इसलिए किसी का दिया सेव नहीं खाना चाहिए। पूर्णतया निर्वस्त्र होकर नहीं नहाना चाहिए। प्रतिदिन प्रातःकाल घर में गंगाजल का छिड़काव करें। प्रत्येक पूर्णमासी को घर में सत्यनारायण की कथा करवाएं। सूर्यदेव को प्रतिदिन जल का अघ्र्य दें। घर में गुग्गल की धूनी दें। क्या करें कि आप पर अथवा आपके स्थान पर भूत-प्रेतों का असर न हो पाए: .. अपनी, आत्मशुद्धि व घर की शुद्धि हेतु प्रतिदिन घर में गायत्री मंत्र से हवन करें। अपने इष्ट देवी-देवता के समक्ष घी का दीपक प्रज्वलित करें। हनुमान चालीसा या बजरंग बाण का प्रतिदिन पाठ करें। जिस घर में प्रतिदिन सुंदरकांड का पाठ होता है वहां ऊपरी हवाओं का असर नहीं होता। घर में पूजा करते समय कुशा का आसन प्रयोग में लाएं। मां महाकाली की उपासना करें। सूर्य को तांबे के लोटे से जल का अघ्र्य दें। संध्या के समय घर में धूनी अवश्य दें। रात्रिकालीन पूजा से पूर्व गुरु से अनुमति अवश्य लें। रात्रिकाल में 12 से 4 बजे के मध्य ठहरे पानी को न छूएं। यथासंभव अनजान व्यक्ति के द्वारा दी गई चीज ग्रहण न करें। प्रातःकाल स्नान व पूजा के पश्चात् ही कुछ ग्रहण करें। ऐसी कोई भी साधना न करें जिसकी पूर्ण जानकारी न हो या गुरु की अनुमति न हो। कभी किसी प्रकार के अंधविश्वास अथवा वहम में नहीं पड़ना चाहिए। इससे बचने का एक ही तरीका है कि आप बुद्धि से तार्किक बनें व किसी चमत्कार अथवा घटना आदि या क्रिया आदि को विज्ञान की कसौटी पर कसें, उसके पश्चात् ही किसी निर्णय पर पहुंचे। किसी आध्यात्मिक गुरु, साधु-संत, फकीर, पंडित आदि का अपमान न करें। अग्नि व जल का अपमान न करें। अग्नि को लांघें नहीं व जल को दूषित न करें। हाथ से छूटा हुआ या जमीन पर गिरा हुआ भोजन या खाने की कोई भी वस्तु स्वयं ग्रहण न करें। भूत-प्रेत आदि से ग्रसित व्यक्ति की पहचान कैसे करें… ऐसे व्यक्ति के शरीर से या कपड़ों से गंध आती है। ऐसा व्यक्ति स्वभाव से चिड़चिड़ा हो जाता है।ऐसे व्यक्ति की आंखें लाल रहती हैं व चेहरा भी लाल दिखाई देता है। ऐसे व्यक्ति को अनायास ही पसीना बार-बार आता है। ऐसा व्यक्ति सिरदर्द व पेट दर्द की शिकायत अक्सर करता ही रहता है। ऐसा व्यक्ति झुककर या पैर घसीट कर चलता है। कंधों में भारीपन महसूस करता है। कभी-कभी पैरों में दर्द की शिकायत भी करता है। बुरे स्वप्न उसका पीछा नहीं छोड़ते। जिस घर या परिवार में भूत-प्रेतों का साया होता है वहां शांति का वातावरण नहीं होता। घर में कोई न कोई सदस्य सदैव किसी न किसी रोग से ग्रस्त रहता है। अकेले रहने पर घर में डर लगता है बार-बार ऐसा लगता है कि घर के ही किसी सदस्य ने आवाज देकर पुकारा है जबकि वह सदस्य घर पर होता ही नहीं? इसे छलावा कहते हैं। भूत-प्रेत से ग्रसित व्यक्ति का उपचार कैसे करें: भूत-प्रेतों की अनेकानेक योनियां हैं। इतना ही नहीं इनकी अपनी-अपनी शक्तियां भी भिन्न-भिन्न होती हैं। इसलिए सभी ग्रसित व्यक्तियों का उपचार एक ही क्रिया द्वारा संभव नहीं है। योग्य व विद्वान व्यक्ति ही इनकी योनी व शक्ति की पहचान कर इनका उपचार बतलाते हैं। अनेक बार ऐसा भी होता है कि ये उतारा या उपचार करने वाले पर ही हावी हो जाते हैं इसलिए इस कार्य के लिए अनुभव व गुरु का मार्ग दर्शन अत्यंत अनिवार्य होता है। आइये जानते है कुछ सामान्य उपचार सामान्य उपचार भी ग्रसित व्यक्ति को ठीक कर देते हैं या भूत-प्रेतों को उनके शरीर से बाहर निकलने के लिए मजबूर कर देते हें। ये उपचार उतारा या उसारा के रूप में किया जाता है। इन्हें आजमाएं। * ग्रसित व्यक्ति के गले में लहसुन की कलियांे की माला डाल दें। (लहसुन की गंध अधिकांशतः भूत-प्रेत सहन नहीं कर पाते इसलिए ग्रसित व्यक्ति को छोड़कर भाग जाते हैं।) रात्रिकाल में ग्रसित व्यक्ति के सिरहाने लहसुन और हींग को पीसकर गोली बनाकर रखें। * ग्रसित व्यक्ति की शारीरिक स्वच्छता बनाए रखने का प्रयास करें। ग्रसित व्यक्ति के वस्त्र अलग से धोएं व सुखाएं। * ग्रसित व्यक्ति के ऊपर से बूंदी का लड्डू उतारकर चैराहे या पीपल के नीचे रखें (रविवार छोड़कर)। तीन दिन लगातार करें। किसी योग्य व्यक्ति से अथवा गुरु से रक्षा कवच या यंत्र आदि बनवाकर ग्रसित व्यक्ति को धारण कराना चाहिए। ग्रसित व्यक्ति को अधिक से अधिक गंगाजल पिलाना चाहिए व उस स्थान विशेष पर भी प्रतिदिन गंगाजल छिड़कना चाहिए। नवार्ण मंत्र (ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे) की एक माला जप करके जल को अभिमंत्रित कर लें व पीड़ित व्यक्ति को पिलाएं। *हर मंगल और शनि के दिन श्री हनुमान जी के मंदिर में जाये और उनके चरणों में से सिन्दूर लेकर माथे पर लगाये .. बेकार के जादू-टोने -टोटको से दूर रहे अन्यथा ये लाभ की बजाय भयंकर नुकसान भी कर सकते है .. अतः किसी योग्य जानकर से परामर्श लेकर और समाज कल्याण के लिए ही इन सबका प्रयोग करे .. किसी को अनायास परेशान न करे । भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। ज्योतिष के अनुसार राहु की महादशा में चंद्र की अंतर्दशा हो और चंद्र दशापति राहु से भाव ६, ८ या १२ में बलहीन हो, तो व्यक्ति पिशाच दोष से ग्रस्त होता है। वास्तुशास्त्र में भी उल्लेख है कि पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, ज्येष्ठा, अनुराधा, स्वाति या भरणी नक्षत्र में शनि के स्थित होने पर शनिवार को गृह-निर्माण आरंभ नहीं करना चाहिए, अन्यथा वह घर राक्षसों, भूतों और पिशाचों से ग्रस्त हो जाएगा। इस संदर्भ में संस्कृत का यह श्लोक द्रष्टव्य है : ”अजैकपादहिर्बुध्न- ्यषक्रमित्रानिला्तकैः। समन्दैर्मन्दवारे स्याद् रक्षोभूतयुंतगद्यम॥ भूतादि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान उसके स्वभाव एवं क्रिया में आए बदलाव से की जा सकती है। इन विभिन्न आसुरी शक्तियों से पीड़ित होने पर लोगों के स्वभाव एवं कार्यकलापों में आए बदलावों का संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है। भूत पीड़ा : भूत से पीड़ित व्यक्ति किसी विक्षिप्त की तरह बात करता है। मूर्ख होने पर भी उसकी बातों से लगता है कि वह कोई ज्ञानी पुरुष हो। उसमें गजब की शक्ति आ जाती है। क्रुद्ध होने पर वह कई व्यक्तियों को एक साथ पछाड़ सकता है। उसकी आंखें लाल हो जाती हैं और देह में कंपन होता है। यक्ष पीड़ा : यक्ष प्रभावित व्यक्ति लाल वस्त्र में रुचि लेने लगता है। उसकी आवाज धीमी और चाल तेज हो जाती है। इसकी आंखें तांबे जैसी दिखने लगती हैं। वह ज्यादातर आंखों से इशारा करता है। पिशाच पीड़ा : पिशाच प्रभावित व्यक्ति नग्न होने से भी हिचकता नहीं है। वह कमजोर हो जाता है और कटु शब्दों का प्रयोग करता है। वह गंदा रहता है और उसकी देह से दुर्गंध आती है। उसे भूख बहुत लगती है। वह एकांत चाहता है और कभी-कभी रोने भी लगता है। शाकिनी पीड़ा : शाकिनी से सामान्यतः महिलाएं पीड़ित होती हैं। शाकिनी से प्रभावित स्त्री को सारी देह में दर्द रहता है। उसकी आंखों में भी पीड़ा होती है। वह अक्सर बेहोश भी हो जाया करती है। वह रोती और चिल्लाती रहती है। वह कांपती रहती है। प्रेत पीड़ा : प्रेत से पीड़ित व्यक्ति चीखता-चिल्लाता है, रोता है और इधर-उधर भागता रहता है। वह किसी का कहा नहीं सुनता। उसकी वाणी कटु हो जाती है। वह खाता-पीता नही हैं और तीव्र स्वर के साथ सांसें लेता है। चुडैल पीड़ा : चुडैल प्रभावित व्यक्ति की देह पुष्ट हो जाती है। वह हमेशा मुस्कराता रहता है और मांस खाना चाहता है। भूत प्रेत कैसे बनते हैं:- इस सृष्टि में जो उत्पन्न हुआ है उसका नाश भी होना है व दोबारा उत्पन्न होकर फिर से नाश होना है यह क्रम नियमित रूप से चलता रहता है। सृष्टि के इस चक्र से मनुष्य भी बंधा है। इस चक्र की प्रक्रिया से अलग कुछ भी होने से भूत-प्रेत की योनी उत्पन्न होती है। जैसे अकाल मृत्यु का होना एक ऐसा कारण है जिसे तर्क के दृष्टिकोण पर परखा जा सकता है। सृष्टि के चक्र से हटकर आत्मा भटकाव की स्थिति में आ जाती है। इसी प्रकार की आत्माओं की उपस्थिति का अहसास हम भूत के रूप में या फिर प्रेत के रूप में करते हैं। यही आत्मा जब सृष्टि के चक्र में फिर से प्रवेश करती है तो उसके भूत होने का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है। अधिकांशतः आत्माएं अपने जीवन काल में संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को ही अपनी ओर आकर्षित करती है, इसलिए उन्हें इसका बोध होता है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है वे सैवे जल में डूबकर बिजली द्वारा अग्नि में जलकर लड़ाई झगड़े में प्राकृतिक आपदा से मृत्यु व दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं और भूत प्रेतों की संख्या भी उसी रफ्तार से बढ़ रही है। इस तरह भूत-प्रेतादि प्रभावित व्यक्तियों की पहचान भिन्न-भिन्न होती है। इन आसुरी शक्तियों को वश में कर चुके लोगों की नजर अन्य लोगों को भी लग सकती है। इन शक्तियों की पीड़ा से मुक्ति हेतु निम्नलिखित उपाय करने चाहिए। जिस प्रकार चोट लगने पर डाक्टर के आने से पहले प्राथमिक उपचार की तरह ही प्रेत बाधा ग्रस्त व्यक्ति का मनोबल बढ़ाने का उपाय किया जाता है और कुछ सावधानियां वरती जाती हैं। ऐसा करने से प्रेत बाधा की उग्रता कम हो जाती है। इस लेख में भूत-प्रेत बाधा निवारण के यंत्र-मंत्र आधारित उपायों की जानकारी दी गयी है। लाभ प्राप्त करने के लिए इनका निष्ठापूर्वक पालन करें। जब भी किसी भूत-प्रेतबाधा से ग्रस्त व्यक्ति को देखें तो सर्वप्रथम उसके मनोबल को ऊंचा उठायें। उदाहरणार्थ यदि वह व्यक्ति मन में कल्पना परक दृश्यों को देखता है तथा जोर-जोर से चिल्लोता है कि वह सामने खड़ी या खड़ा है, वह लाल आंखों से मुझे घूर रही या रहा है, वह मुझे खा जाएगा या जाएगी। हालांकि वह व्यक्ति सच कह रहा है पर आप उसे समझाइए- वह कुछ नहीं है, वह केवल तुम्हारा वहम है। लो, हम उसे भगा देते हैं। उसे भगाने की क्रिया करें। कोई चाकू, छूरी या कैंची उसके समीप रख दे और उसे बताएं नहीं। देवताओं के चित्र हनुमान दुर्गा या काली का टांग दें। गंगाजल छिड़ककर लोहबान, अगरबत्ती या गूग्गल धूप जला दें। इससे उसका मनोबल ऊंचा होगा। प्रेतात्मा को बुरा भला कदापि न कहें। इससे उसका क्रोध और बढ़ जाएगा। इसमें कोई बुराई नहीं। घर के बड़े-बुजुर्ग भूत-प्रेत से अनजाने अपराध के लिए क्षमा मांग लें। निराकारी योनियों के चित्र बनाना कठिन होता है। यह मृदु बातों तथा सुस्वादुयुक्त भोगों के हवन से शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं। इसके पश्चात आप पीपल के पांच अखंडित स्वच्छ पत्ते लेकर उन पर पांच सुपारी, दो लौंग रख दे तथा गंगाजल में चंदन घिसकर पत्तों पर (रामदूताय हनुमान) दो-दो बार लिख दें। अब उनके सामने धूप-दीप और अगरबत्ती जला दें। इसके बाद बाधाग्रस्त व्यक्ति को छोड़ देने की प्रार्थना करें। ऐसा करने से प्रेतबाधा नष्ट हो जाती है। फिर भी अगर लाभ न हो तो नीचे दिए गए कुछ उपाय व टोटके सिद्ध करके काम में लें। यदि बच्चा बाहर से खेलकर, पढ़कर, घूमकर आए और थका, घबराया या परेशान सा लगे तो यह उसे नजर या हाय लगने की पहचान है। ऐसे में उसके सर से ७ लाल मिर्च और एक चम्मच राई के दाने ७ बार घूमाकर उतारा कर लें और फिर आग में जला दें। यदि बेवजह डर लगता हो, डरावने सपने आते हों, तो हनुमान चालीसा और गजेंद्र मोक्ष का पाठ करें और हनुमान मंदिर में हनुमान जी का श्रृंगार करें व चोला चढ़ाएं। व्यक्ति के बीमार होने की स्थिति में दवा काम नहीं कर रही हो, तो सिरहाने कुछ सिक्के रखे और सबेरे उन सिक्कों को श्मशान में डाल आए। व्यवसाय बाधित हो, वांछित उन्नति नहीं हो रही हो, तो ७ शनिवार को सिंदूर, चांदी का वर्क, मोतीचूर के पांच लड्डू, चमेली का तेल, मीठा पान, सूखा नारियलऔर लौंग हनुमान जी को अर्पित करें। किसी काम में मन न लगता हो, उचाट सा रहता हो, तो रविवार को प्रातः भैरव मंदिर में मदिरा अर्पित करें और खाली बोतल को सात बार अपने सरसे उतारकर पीपल के पेड़ के नीचे रख दें। शनिवार को नारियल और बादाम जल में प्रवाहित करें। अशोक वृक्ष के सात पत्ते मंदिर में रख कर पूजा करें। उनके सूखने पर नए पत्ते रखें और पुराने पत्ते पीपल के पेड़ के नीचे रख दें। यह क्रिया नियमित रूप से करें, घर भूत-प्रेत बाधा, नजर दोष आदि से मुक्त रहेगा। एक कटोरी चावल दान करें और गणेश भगवान को एक पूरी सुपारी रोज चढ़ाएं। यह क्रिया एक वर्ष तक करें, नजर दोष व भूत-प्रेत बाधा आदि के कारण बाधित कार्य पूरे होंगे। इस तरह ये कुछ सरल और प्रभावशाली टोटके हैं, जिनका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता। ध्यान रहे, नजर दोष, भूत-प्रेत बाधा आदि से मुक्ति हेतु टोटके या उपाय ही करवाने चाहिए, टोना नहीं। भूत-प्रेत बाधाओं, जादू-टोनों आदि के प्रभाव से भले-चंगे लोगों का जीवन भी दुखमय हो जाता है। ज्योतिष तथा शाबर ग्रंथों में इन बाधाओं से मुक्ति के अनेकानेक उपाय उपाय बताए गए हैं। इस प्रकार की बाधा निवारण करने से पूर्व स्वयं की रक्षा भी आवश्यक हें.इसलिए इन मन्त्रों द्वारा अपनी तथा अपने आसन की सुरक्षा कर व्यवस्थित हो जाएँ… जब भी हम पूजन आदि धार्मिक कार्य करते हैं वहां आसुरी शक्तियां अवश्य अपना प्रभाव दिखाने का प्रयास करती हैं। उन आसुरी शक्तियों को दूर भगाने के लिए हम मंत्रों का प्रयोग कर सकते हैं। इसे रक्षा विधान कहते हैं। नीचे रक्षा विधान के बारे में संक्षिप्त में लिखा गया है। रक्षा विधान का प्रयोग करने से बुरी शक्तियां धार्मिक कार्य में बाधा नहीं पहुंचाती तथा दूर से ही निकल जाती हैं। रक्षा विधान- रक्षा विधान का अर्थ है जहाँ हम पूजा कर रहे है वहाँ यदि कोई आसुरी शक्तियाँ, मानसिक विकार आदि हो तो चले जाएं, जिससे पूजा में कोई बाधा उपस्थित न हो। बाएं हाथ में पीली सरसों अथवा चावल लेकर दाहिने हाथ से ढंक दें तथा निम्न मंत्र उच्चारण के पश्चात सभी दिशाओं में उछाल दें। मंत्र—– ओम अपसर्पन्तु ते भूता: ये भूता:भूमि संस्थिता:। ये भूता: बिघ्नकर्तारस्तेन नश्यन्नु शिवाज्ञया॥ अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचा: सर्वतो दिशम। सर्वेषामविरोधेन पूजा कर्मसमारभ्भे॥ देह रक्षा मंत्र:—- ऊँ नमः वज्र का कोठा, जिसमें पिंड हमारा बैठा। ईश्वर कुंजी ब्रह्मा का ताला, मेरे आठों धाम का यती हनुमन्त रखवाला। इस मंत्र को किसी भी ग्रहण काल में पूरे समय तक लगातार जप करके सिद्ध कर लें। किसी दुष्ट व्यक्ति से अहित का डर हो, ग्यारह बार मंत्र पढ़कर शरीर पर फूंक मारे तो आपका शरीर दुश्मन के आक्रमण से हर प्रकार सुरक्षित रहेगा। उल्टी खोपड़ी मरघटिया मसान बांध दें, बाबा भैरो की आन। इस मंत्र को श्मशान में भैरोजी की पूजा, बलि का भोग देकर सवा लाख मंत्र जपे तथा आवश्यकता के समय चाकू से अपने चारों तरफ घेरा खींचे तो अचूक चैकी बनती है। इससे किसी भी प्रकार की मायावी शक्ति साधना में विघ्न नहीं डाल सकती। होली, दीपावली या ग्रहण काल में इस मंत्र को सिद्ध कर लें 11 माला जपकर। ऊँ नमः श्मशानवासिने भूतादिनां पलायन कुरू-कुरू स्वाहा। इस मंत्र से 108 बार अभिमंत्रित करके लहसुन, हींग को पीसकर इसके अर्क को बाधाग्रस्त रोगी के नाक व आंख में लगायें, भूत तुरंत शरीर छोड़कर चला जाएगा। बहेड़े के पत्ते या जड़ को घर लाकर धूप, दीप, नैवेद्य और पंचोपचार पूजा के बाद 1 माला यानि 108 बार इस मंत्र से 21 दिन अभिमंत्रित करने से सिद्ध हो जाएगा। ऊँ नमः सर्वभूताधिपतये ग्रसग्रस शोषय भैरवी चाजायति स्वाहा।’ इस पत्ते को जहां स्थापित किया जाता है, वहां किसी भी प्रकार से भूत प्रेतबाधा व जादू टोने का प्रभाव नहीं पड़ता तथा सिद्ध जड़ को बच्चे या बड़े के गले में ताबीज बनाकर पहनाया जा सकता है। प्रेतबाधा निवारण भूत, प्रेत, डाकिनी, शाकिनी तथा पिशाच, मशान आदि तामसी शक्तियों से रक्षा के लिए यह साधना सर्वोत्तम तथा सरल उपाय वाली है। इसके लिए साधक को चाहिए कि किसी शुभ घड़ी में रविपुष्य योग अथवा शनिवार को) उल्लू लेकर, उसके दाएं डैने के कुछ पंख निकाल लें तथा उल्लू को उड़ा दें। इसके बाद उस पंख को गंगाजल से धोकर स्नानादि करके पूर्वाभिमुख होकर लाल कंबल के आसन पर बैठकर 2100 बार मंत्र पढकर प्रत्येक पंख पर फूंक मारे। इस प्रकार से अभिमंत्रित करके, जलाकर उन पंखों की राख बना लें । मंत्र: ऊँ नमः रूद्राय, नमः कालिकायै, नमः चंचलायै नमः कामाक्ष्यै नमः पक्षिराजाय, नमः लक्ष्मीवाहनाय, भूत-प्रेतादीनां निवारणं कुरू-कुरू ठं ठं ठं स्वाहा। इस मंत्र से सिद्ध भभूति को कांच के चैड़े पात्र में सुरक्षित रख लें। जब भी किसी स्त्री या पुरुष को ऊपरी बाधा हो, इसे निकालकर चुटकी भर विभूति से 108 बार मंत्र पढ़कर झाड़ देने से जो अला बला हो, वह भाग जाती है। अधिक शक्तिशाली आत्मा हो तो इसे ताबीज में रखकर पुरुष की दाहिनी भुजा पर, स्त्री की बाई भुजा पर बांधने से दुबारा किसी आत्मा या दुरात्मा का प्रकोप नहीं होता। भूतबाधा से रक्षा हेतु यंत्र इस यंत्र को मंगलवार, या शनिवार की रात 12 बजे पीपल के पेड़ के नीचे लिखे। यह यंत्र श्मशान की राख में अष्टगंध मिलाकर अनार की कलम से लिखें। स्वच्छ अखंडित भोजपत्र को लिखने से पहले गंगाजल से धोकर सुखा लें, और यंत्र बनाएं। स्वप्न में भूत दिखाई दे तो यह यंत्र बनाएं। इस यंत्र को केवड़े के रस या आक के दूध से भोजपत्र पर बनाकर फिर जिस स्त्री पुरुष को स्वप्न में भूत दिखते हैं उसके सिरहाने रख दें। यहां कुछ प्रमुख शाबर मंत्रों का विवरण प्रस्तुत है। ये मंत्र सहज और सरल हैं, जिनके जप अनुष्ठान से उक्त बाधाओं तथा जादू-टोनों के प्रभाव से बचाव हो सकता है। निम्नलिखित मंत्र को सिद्ध करने के लिए उसका २१ दिनों तक एक माला जप नियमित रूप से करें। हनुमान मंदिर में अगरबत्ती जलाएं। २१ वें दिन मंदिर में एक नारियल और लाल वस्त्र की ध्वजा चढ़ाएं। यह मंत्र भूत, प्रेत, डाकिनी, शाकिनी नजर दोष, जादू-टोने आदि से बचाव एवं शरीर की रक्षा के लिए अत्यंत उपयोगी है। मंत्र : ॐ हनुमान पहलवान, बरस-बारह का जवान, हाथ में लड्डू, मुंह में पान। खेल-खेल कर लंका के चौगान। अंजनी का पूत, राम का दूत। छिण में कीलौं, नौ खंड का भूत। जाग-जाग हनुमान हुङ्काला, ताती लोहा लङ्काला। शीश जटा डग डेंरू उमर गाजे, वृज की कोटडी वृज का ताला। आगे अर्जुन पीछे भीम, चोर नार चम्पे न सीव। अजरा, झरे, भरमा भरे। ईंघट पिंड की रक्षा, राजा रामचंद्र जी, लक्ष्मण, कुंवर हनुमान करें। किसी बुरी आत्मा के प्रभाव अथवा किसी ग्रह के अशुभ प्रभाव के फलस्वरूप संतान सुख में बाधा से मुक्ति हेतु श्री बटुक का उतारा करना चाहिए। यह क्रिया निम्नलिखित विधि से रविवार, सोमवार, मंगलवार तीन दिन लगातार करें। विधि : उतारे के स्थान पर एक पात्र में सरसों के तेल में बने उड़द के ११ बड़े, उड़द की दाल भरी ११ कचौड़ियां, ७ प्रकार की मिठाइयां, लाल फूल, सिंदूर, ४ बत्तियों का दीपक, 1 नींबू और 1 कुल्हर जल रखें। सिंदूर को चार बत्तियों वाले दीपक के तेल में डालें। फिर फूल, कचौड़ी, बड़े, मिठाइयां सभी सामग्री एक पत्तल पर रखें तथा मन ही मन यह कहें कि ”यह भोग हम श्री बटुक भैरव जी को दे रहे हैं, वे अपने भूत- प्रेतादिकों को खिला दें और संकट ग्रस्त व्यक्ति के ऊपर जो बुरी आत्मा या ग्रहों की कुदृष्टि है, उसका शमन कर दें।” समस्त सामग्री को पीड़ित व्यक्ति के सिर के ऊपर ७ बार उतारा करके किसी चौराहे पर रखवा दें। सामग्री रखवाकर लौट आएं। ध्यान रहे, लौटते समय पीछे न देखें। उतारा परिवार के सदस्य करें। यह क्रिया यदि अपने लिए करनी हो, तो स्वयं करें। कृत्या निवारण के लिए एक नींबू को चार टुकड़ों में चीरें। चारों टुकड़ों पर ४-४ बार निम्नलिखित मंत्र पढ़कर उन्हें चारों कोनों में फेंक दें। मंत्र : आई की, माई की, आकाश की, परेवा पाताल की। परेवा तेरे पग कुनकुन। सेवा समसेर जादू गीर समसेर की भेजी। ताके पद को बढ़ कर, कुरु-कुरु स्वाहा। राई, लाल चंदन, राल, जटामंसी, कपूर, खांड, गुग्गुल और सफेद चंदन का चूरा क्रमानुसार दो गुना लें और सबको मिलाकर अच्छी तरह कूट लें। फिर उस मिश्रण में इतना गोघृत मिलाएं कि पूरी सामग्री अच्छी तरह मिश्रित हो जाए। इस सामग्री से प्रेत बाधा से ग्रस्त घर में धूनी दें, प्रेत बाधा, क्लेशादि दूर होंगे और परिवार में शांति और सुख का वातावरण उत्पन्न होगा। व्यापार स्थल पर यह सामग्री धूनी के रूप में प्रयोग करें, व्यापार में उन्नति होगी। कोई मकान भूत-प्रेत, पिशाच, तांत्रिक, ओझा, डाकिनी या शाकिनी के अभिचार कर्म ग्रस्त हो, तो उसमें भोजपत्र पर अष्टगंध की स्याही और अनार की कलम से निम्नलिखित शाबरी यंत्र लिखकर लगा दें। यंत्र लेखन के समय निम्न मंत्र का मन ही मन उच्चारण करते रहें एवं मंत्र के ऊपर यह मंत्र भी लिख दें—– मंत्र :ॐ ह्रांक ह्रींक क्लींक व्यक ह्योंक हेः। भूत छुड़ाने का मंत्र : भूत छुड़ाने के भी अनेकानेक शाबर मंत्र हैं, जिनमें एक इस प्रकार है। तेल नीर, तेल पसार चौरासी सहस्र डाकिनीर छेल, एते लरेभार मुइ तेल पडियादेय अमुकार (नाम) अंगे अमुकार (नाम) भार आडदन शूले यक्ष्या-यक्षिणी, दैत्या-दैत्यानी, भूता-भूतिनी, दानव-दानिवी, नीशा चौरा शुचि-मुखा गारुड तलनम वार भाषइ, लाडि भोजाइ आमि पिशाचि अमुकार (नाम) अंगेया, काल जटार माथा खा ह्रीं फट स्वाहा। सिद्धि गुरुर चरण राडिर कालिकार आज्ञा। विधि : ऊपर वर्णित मंत्र को पहले किसी सिद्ध मुहूर्त में १०,००० बार जप कर सिद्ध कर लें। फिर सरसों तेल को २१ बार अभिमंत्रित कर भूत बाधाग्रस्त व्यक्ति पर छिड़कें, तो भूत उतर जाता है। जादू-टोना निवारण—– निम्नलिखित मंत्र को किसी सिद्ध मुहूर्त में १००८ बार सिद्ध करके प्रयोग के समय उसका जप करते हुए मोर पंख से पीड़ित व्यक्ति को सात बार झाड़ें। मंत्र : ॐ नमो आदेश गुरु को। लूना चमारीज गत की बिजुरी, मोती हेल चमके। अमुक के पिंड में डमान करे विडमान करे, तो उस लण्डी के ऊपर पारो। दुहाई तुरंत सुलेमान पैगंबर की फिरे, मेरी भकित, गुरु की शकित। फुरो मंत्र ईश्वरी वाचा। कोई मकान भूत-प्रेत, पिशाच, तांत्रिक, ओझा, डाकिनी या शाकिनी के अभिचार कर्म ग्रस्त हो, तो उसमें भोजपत्र पर अष्टगंध की स्याही और अनार की कलम से निम्नलिखित शाबरी यंत्र लिखकर लगा दें। यंत्र लेखन के समय निम्न मंत्र का मन ही मन उच्चारण करते रहें एवं यंत्र के ऊपर यह मंत्र भी लिख दें। नजर दोष, टोना व प्रेत बाधा निवारक प्रयोग—- शुभ नक्षत्र में अनार की कलम और केसर व लाल चंदन से यह यंत्र लिखें। यंत्र लिखते समय मंत्र क्रम से पढ़ें जैसे पहली लाइन के पहले खाने में ६ लिखें तो पढ़ें ‘सत्ती पत्ती शारदा’। फिर दूसरे खाने में १२ लिखें तो पढ़ें ‘बारह बरस कुवारी’। इसी प्रकार ९ लिखने पर ‘ऐ को माई परमेश्वरी’, १४ लिखने पर ‘चौदह भुवन निवास’, २ पर ‘दोई पक्खी निर्मली’, १३ पर ‘तेरह देवी देश’, ८ पर ‘अष्टभुजा परमेश्वरी’, ११ पर ‘ग्यारह रुद्र सैनी’, १६ पर ‘सोलह कला संपूर्ण’, ३ पर ‘त्रा नयन भरपूर’, १० पर ‘दसे द्वार निर्मली’, ५ ‘पंच करे कल्याण’, ९ पर ‘नव दुर्गा’, ६ पर ‘षट् दर्शनी’, १५ पर ‘पंद्रह तिथि जान’ और ४ लिखने पर ‘चाऊ कूठ प्रधान’। इस तरह यंत्र निर्माण करके पीड़ित के गले में बांध दें, नजर दोष, टोने, प्रेत बाधा आदि से मुक्ति मिलेगी। भूत प्रेत बाधा नाशक मन्त्र—– भूत-प्रेत बाधा निवारक हनुमत मन्त्र इस प्रकार हैं :- ऊँ ऐं हीं श्रीं हीं हूं हैं ऊँ नमो भगवते महाबल पराक्रमाय भूत-प्रेत पिशाच-शाकिनी-डाकिन- ी यक्षणी-पूतना-मारी-हामारी, यक्ष राक्षस भैरव बेताल ग्रह राक्षसादिकम क्षणेन हन हन भंजय भंजय मारय मारय शिक्षय शिक्ष्य महामारेश्रवर रूद्रावतार हुं फट स्वाहा। उक्त मंत्र को श्रद्वा, विश्वास के साथ जप कर मन्त्र से अभिमनित्रत जल पीडि़त जातक या जातिका को पिलाने या छींटे मारने से इस प्रकार की बाधा से मुकित मिलती है। कौन बनता है भूत, कैसे रहें भूतों से सुरक्षित.. जिसका कोई वर्तमान न हो, केवल अतीत ही हो वही भूत कहलाता है। अतीत में अटका आत्मा भूत बन जाता है। जीवन न अतीत है और न भविष्य वह सदा वर्तमान है। जो वर्तमान में रहता है वह मुक्ति की ओर कदम बढ़ाता है। आत्मा के तीन स्वरुप माने गए हैं- जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, उस उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं। भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि कहा जाता है। भूतों के प्रकार : हिन्दू धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया है- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। उक्त सभी के उप भाग भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है। इसी तरह जब कोई स्त्री मरती है तो उसे अलग नामों से जाना जाता है। माना गया है कि प्रसुता, स्त्री या नवयुवती मरती है तो चुड़ैल बन जाती है और जब कोई कुंवारी कन्या मरती है तो उसे देवी कहते हैं। जो स्त्री बुरे कर्मों वाली है उसे डायन या डाकिनी करते हैं। इन सभी की उत्पति अपने पापों, व्याभिचार से, अकाल मृत्यु से या श्राद्ध न होने से होती है। 84 लाख योनियां : पशुयोनि, पक्षीयोनि, मनुष्य योनि में जीवन यापन करने वाली आत्माएं मरने के बाद अदृश्य भूत-प्रेत योनि में चले जाते हैं। आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। ऐसी 84 लाख योनियां है, जिसमें कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, वृक्ष और मानव आदि सभी शामिल हैं। प्रेतयोनि में जाने वाले लोग अदृश्य और बलवान हो जाते हैं। लेकिन सभी मरने वाले इसी योनि में नहीं जाते और सभी मरने वाले अदृश्य तो होते हैं लेकिन बलवान नहीं होते। यह आत्मा के कर्म और गति पर निर्भर करता है। बहुत से भूत या प्रेत योनि में न जाकर पुन: गर्भधारण कर मानव बन जाते हैं। पितृ पक्ष में हिन्दू अपने पितरों का तर्पण करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि पितरों का अस्तित्व आत्मा अथवा भूत-प्रेत के रूप में होता है। गरुड़ पुराण में भूत-प्रेतों के विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है। श्रीमद्*भागवत पुराण में भी धुंधकारी के प्रेत बन जाने का वर्णन आता है। अतृप्त आत्माएं बनती है भूत : जो व्यक्ति भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं लेकर मरा है अवश्य ही वह भूत बनकर भटकता है। और जो व्यक्ति दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या आदि से मरा है वह भी भू*त बनकर भटकता है। ऐसे व्यक्तियों की आत्मा को तृप्त करने के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। जो लोग अपने स्वजनों और पितरों का श्राद्ध और तर्पण नहीं करते वे उन अतृप्त आत्माओं द्वारा परेशान होते हैं। यम नाम की वायु : वेद अनुसार मृत्युकाल में ‘यम’ नामक वायु में कुछ काल तक आत्मा स्थिर रहने के बाद पुन: गर्भधारण करती है। जब आत्मा गर्भ में प्रवेश करती है तब वह गहरी सुषुप्ति अवस्था में होती है। जन्म से पूर्व भी वह इसी अवस्था में ही रहती है। जो आत्मा ज्यादा स्मृतिवान या ध्यानी है उसे ही अपने मरने का ज्ञान होता है और वही भूत बनती है। जन्म मरण का चक्र : जिस तरह सुषुप्ति से स्वप्न और स्वप्न से आत्मा जाग्रति में जाती हैं उसी तरह मृत्युकाल में वह जाग्रति से स्वप्न और स्वप्न से सु*षुप्ति में चली जाती हैं फिर सुषुप्ति से गहन सुषुप्ति में। यह चक्र चलता रहता है। भूत की भावना : भूतों को खाने की इच्छा अधिक रहती है। इन्हें प्यास भी अधिक लगती है, लेकिन तृप्ति नहीं मिल पाती है। ये बहुत दुखी और चिड़चिड़ा होते हैं। यह हर समय इस बात की खोज करते रहते हैं कि कोई मुक्ति देने वाला मिले। ये कभी घर में तो कभी जंगल में भटकते रहते हैं। भूत की स्थिति : ज्यादा शोर, उजाला और मंत्र उच्चारण से यह दूर रहते हैं। इसीलिए इन्हें कृष्ण पक्ष ज्यादा पसंद है और तेरस, चौदस तथा अमावस्या को यह मजबूत स्थिति में रहकर सक्रिय रहते हैं। भूत-प्रेत प्रायः उन स्थानों में दृष्टिगत होते हैं जिन स्थानों से मृतक का अपने जीवनकाल में संबंध रहा है या जो एकांत में स्थित है। बहुत दिनों से खाली पड़े घर या बंगले में भी भूतों का वास हो जाता है। भूत की ताकत : भूत अदृश्य होते हैं। भूत-प्रेतों के शरीर धुंधलके तथा वायु से बने होते हैं अर्थात् वे शरीर-विहीन होते हैं। इसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं। आयुर्वेद अनुसार यह 17 तत्वों से बना होता है। कुछ भूत अपने इस शरीर की ताकत को समझ कर उसका इस्तेमाल करना जानते हैं तो कुछ नहीं। कुछ भूतों में स्पर्श करने की ताकत होती है तो कुछ में नहीं। जो भूत स्पर्श करने की ताकत रखता है वह बड़े से बड़े पेड़ों को भी उखाड़ कर फेंक सकता है। ऐसे भूत यदि बुरे हैं तो खतरनाक होते हैं। यह किसी भी देहधारी (व्यक्ति) को अपने होने का अहसास करा देते हैं। इस तरह के भूतों की मानसिक शक्ति इतनी बलशाली होती है कि यह किसी भी व्यक्ति का दिमाग पलट कर उससे अच्छा या बुरा कार्य करा सकते हैं। यह भी कि यह किसी भी व्यक्ति के शरीर का इस्तेमाल करना भी जानते हैं। ठोसपन न होने के कारण ही भूत को यदि गोली, तलवार, लाठी आदि मारी जाए तो उस पर उनका कोई प्रभाव नहीं होता। भूत में सुख-दुःख अनुभव करने की क्षमता अवश्य होती है। क्योंकि उनके वाह्यकरण में वायु तथा आकाश और अंतःकरण में मन, बुद्धि और चित्त संज्ञाशून्य होती है इसलिए वह केवल सुख-दुःख का ही अनुभव कर सकते हैं। अच्छी और बुरी आत्मा : वासना के अच्छे और बुरे भाव के कारण मृतात्माओं को भी अच्छा और बुरा माना गयाहै। जहां अच्छी मृतात्माओं का वास होता है उसे पितृलोक तथा बुरी आत्मा का वास होता है उसे प्रेतलोक आदि कहते हैं। अच्छे और बुरे स्वभाव की आत्माएं ऐसे लोगों को तलाश करती है जो उनकी वासनाओं की पूर्ति कर सकता है। बुरी आत्माएं उन लोगों को तलाश करती हैं जो कुकर्मी, अधर्मी, वासनामय जीवन जीने वाले लोग हैं। फिर वह आत्माएं उन लोगों के गुण-कर्म, स्वभाव के अनुसार अपनी इच्छाओं की पूर्ति करती है। जिस मानसिकता, प्रवृत्ति, कुकर्म, सत्कर्मों आदि के लोग होते हैं उसी के अनुरूप आत्मा उनमें प्रवेश करती है। अधिकांशतः लोगों को इसका पता नहीं चल पाता। अच्छी आत्माएं अच्छे कर्म करने वालों के माध्यम से तृप्त होकर उसे भी तृप्त करती है और बुरी आत्माएं बुरे कर्म वालों के माध्यम से तृप्त होकर उसे बुराई के लिए और प्रेरित करती है। इसीलिए धर्म अनुसार अच्छे कर्म के अलावा धार्मिकता और ईश्वर भक्ति होना जरूरी है तभी आप दोनों ही प्रकार की आत्मा से बचे रहेंगे। कौन बनता है भूत का शिकार : धर्म के नियम अनुसार जो लोग तिथि और पवित्रता को नहीं मानते हैं, जो ईश्वर, देवता और गुरु का अपमान करते हैं और जो पाप कर्म में ही सदा रत रहते हैं ऐसे लोग आसानी से भूतों के चंगुल में आ सकते हैं। इनमें से कुछ लोगों को पता ही नहीं चल पाता है कि हम पर शासन करने वाला कोई भूत है। जिन लोगों की मानसिक शक्ति बहुत कमजोर होती है उन पर ये भूत सीधे-सीधे शासन करते हैं। जो लोग रात्रि के कर्म और अनुष्ठान करते हैं और जो निशाचारी हैं वह आसानी से भूतों के शिकार बन जाते हैं। हिन्दू धर्म अनुसार किसी भी प्रकार का धार्मिक और मांगलिक कार्य रात्रि में नहीं किया जाता। रात्रि के कर्म करने वाले भूत, पिशाच, राक्षस और प्रेतयोनि के होते हैं। हिन्दू धर्म में भूतों से बचने के अनेकों उपाय बताए गए हैं। पहला धार्मिक उपाय यह कि गले में ॐ या रुद्राक्ष का लाकेट पहने, सदा हनुमानजी का स्मरण करें। चतुर्थी, तेरस, चौदस और अमावस्य को पवि*त्रता का पालन करें। शराब न पीएं और न ही मांस का सेवन करें। सिर पर चंदन का तिलक लगाएं। हाथ में मौली (नाड़ा) अवश्य बांधकर रखें। घर में रात्रि को भोजन पश्चात सोने से पूर्व चांदी की कटोरी में देवस्थान पर कपूर और लौंग जला दें। इससे आकस्मिक, दैहिक, दैविक एवं भौतिक संकटों से मुक्त मिलती है। प्रेत बाधा दूर करने के लिए पुष्य नक्षत्र में धतूरे का पौधा जड़ सहित उखाड़कर उसे ऐसा धरती में दबाएं कि जड़ वाला भाग ऊपर रहे और पूरा पौधा धरती में समा जाए। इस उपाय से घर में प्रेतबाधा नहीं रहती। आत्माओँ के विभिन्न प्रकार भारत देश मेँ , 1.भूत :- सामान्य भूत जिसके बारे में आप अक्सर सुनते है 2.प्रेत :- परिवार के सताए हुए बिना क्रियाकर्म के मरे आदमी 3.हाडल :- बिना नुक्सान पहुचाये प्रेतबाधित करने वाली आत्माए 4.चेतकिन :- चुडेले जो लोगो को प्रेतबाधित कर दुर्घटनाए करवाती है 5.मुमिई :- मुंबई के कुछ घरो में प्रचलित प्रेत 6.विरिकस:- घने लाल कोहरे में छिपी और अजीबोगरीब आवाजे निकलने वाला 7.मोहिनी या परेतिन : -प्यार में धोका खाने वाली आत्माए 8.शाकिनी:- शादी के कुछ दिनों बाद दुर्घटना से मरने वाली औरत की आत्मा | कम खतरनाक 9.डाकिनी :- मोहिनी और शाकिनी का मिला जुला रूप | किन्ही कारणों से हुई मौत से बनी आत्मा 10.कुट्टी चेतन :- बच्चे की आत्मा जिसपर तांत्रिको का नियंत्रण होता है 11.ब्रह्मोदोइत्यास :- बंगाल में प्रचलित | शापित ब्राह्मणों की आत्माए 12.सकोंधोकतास :- बंगाल में प्रचलित | रेल दुर्घटना में मरे लोगो की सर कटी आत्मा 13.निशि :- बंगाल में प्रचलित | अँधेरे में रास्ता दिखाने वाली आत्मा 14.कोल्ली देवा :- कर्नाटक में प्रचलित | जंगलो में हाथो में टोर्च लिए घुमती आत्माए 15.कल्लुर्टी ,:-कर्नाटक में प्रचलित | आधुनिक रीती रिवाजो से मरे लोगो की आत्मा 16.किचचिन:- बिहार में प्रचलित | हवस की भूखी आत्मा 17.पनडुब्बा:- बिहार में प्रचलित | नदी में डूबकर मरे लोगो की आत्मा 18.चुड़ैल:- उत्तरी भारत में प्रचलित | राहगीरों को मारकर बरगद के पेड़ पर लटकाने वाली आत्मा 19.बुरा डंगोरिया :- आसाम में प्रचलित | सफ़ेद कपडे और पगड़ी पहने घोड़े पसर सवार आत्मा 20.बाक :- आसाम में प्रचलित | झीलों के पास घुमती आत्माए 21.खबीस :- पाकिस्तान ,गुल्फ देशो और यूरोप में प्रचलित |जिन्न परिवार से ताल्लुक रखने वाली आत्मा 22.घोडा पाक :- आसाम में प्रचलित | घोड़े के खुर जैसे पैर बाकी मनुष्य 23.बीरा :- आसाम में प्रचलित परिवार को खो देने वाली आत्माए 24.जोखिनी :-आसाम में प्रचलित पुरुषो को मारने वाली आत्मा 25.पुवाली भूत :-आसाम में प्रचलित छोटे घर के सामनो को चुराने वाली आत्माए 26.रक्सा :- छतीसगढ़ मे प्रचलित कुँवारे मरने वालो की खतरनाक आत्मा , 27. मसान:- छतीसगढ़ की प्रचलित पाँच छै सौ साल पुरानी प्रेत आत्मा नरबलि लेते हैँ , जिस घर मेँ निवास करेँ पुरे परिवार को धीरे धीरे मार डालते हैँ , 28.चटिया मटिया :- छतीसगढ़ मेँ प्रचलित बौने भुत जो बचपन मेँ खत्म हो जाते हैँ वो बनते हैँ बच्चो को नुकसान नहीँ पहुँचाते । आँखे बल्ब की तरह हाथ पैर उल्टे काले रंग के ,, मक्खी के स्पीड मेँ भागने वाले चोरी करने वाली आत्मा , 29. बैताल:- पीपल पेड़ मेँ निवास करते हैँ एकदम सफेद रंग वाले ,, खतरनाक आत्मा 30. चकवा या भुलनभेर :- रास्ता भटकाने वाली आत्मा महाराष्ट्र ,एमपी आदि मेँ पाया जाता हैँ ,, 31. उदु:- तलाब या नहर मेँ पाये जाने वाली आत्मा जो आदमियोँ को पुरा खा जाऐँ , छतीसगढ़ मेँ प्रचलित ,, 32. गल्लारा :- अकाल मरे लोगो की आत्मा धमाचौकडी मचाने वाली आत्मा छतीसगढ़ मेँ प्रचलित , 34. भंवेरी :- नदी मेँ पायी जाने वाली आत्मा जो पानी मेँ डुब कर मरते हैँ पानी मेँ भंवर उठाकर नाव या आदमी को डूबा देने वाली आत्मा ,, छतीसगढ़ मेँ प्रचलित 35. गरूवा परेत:- बिमारी या ट्रेन से कटकर मरने वाले गांयो और बैलो की आत्मा जो कुछ समय के लिए सिर कटे रूप मेँ घुमते दिखतेँ हैँ नुकसान नही पहुचातेँ ! छतीसगढ मेँ प्रचलित , 36. हंडा :- धरती मेँ गडे खजानोँ मेँ जब जीव पड़ जाता हैँ याने प्रेत का कब्जा तो उसे हंडा परेत कहते हैँ , ये जिनके घर मेँ रहते हैँ वे हमेशा अमीर रहते हैँ , हंडा का अर्थ हैँ कुंभ , जिसके अंदर हीरे सोने आदि भरे रहते हैँ ,, जो लालच वश हंडा को चुराने का प्रयास करेँ उसे ये खा जाते हैँ , ये चलते भी हैँ ! छतीसगढ़ मेँ प्रचलित 37. सरकट्टा:-छत्तीसगढ़ में प्रचलित एक प्रेत जिसका सिर कटा होता है,बहुत ही खतरनाक 38.मरीद- ये बडे खतरनाक व ताकतवर माने गए है। अलादीन का चिराग कहानी में देखा जा सकता है। ये गुलाम तो हो सकतेँ हैँ पर धोखेबाज होते हैँ। 39.अफरीत-इस प्रजाती का अपना लोक होता है,मित्र सहज बन जाते है। अच्छे व बुरे दोनो स्वभाव के होते हैं इन पर विश्वास करना घातक हो सकता है। 40.सिला-ये स्त्री प्रजाती है। सुन्दर व आकर्षक होती है। इस लोक मे आती जाती है पर मानव समाज से दूरी रखती है। 41.घूल-मानव मांस खाने वाली खौफनाक प्रजाती है। कब्रस्तान के पास पाऐ जाते है। व्यवहार क्रूर तथा शैतान की तरह होता