शंखनाद का रहस्य
शंख बजाना - योग की एक अद्भुत प्रक्रिया!
Jyotishacharya . Dr Umashankar mishr-9415087711
शंख बजाना योग की प्रक्रियाओं का एक छुपा हुआ हिस्सा है, जिससे शरीर स्वस्थ रहता है, मन शांत होता है और ध्यान में प्रवेश करने का रास्ता आसान हो जाता है।
हमारे ऋषि-मुनि मनोवैज्ञानिक थे। वे अपनी हर बात को मनोवैज्ञानिक तरीके से कहते थे। उन्होंने शंख बजाने को पूजा-आरती से जोड़ दिया ताकि हम अनजाने ही रोजाना योग की प्रक्रियाओं से गुजरते हुए स्वास्थ्य और ध्यान को उपलब्ध हो सकें।
शंख बजाने से हमारे शरीर में आक्सीजन की कभी भी कोई कमी नहीं रह जाती है। हमारे शरीर में आक्सीजन की मात्रा बढ़ने लगती है और फेफड़ों से कार्बन डाई आक्साईड बाहर निकलने लगती है।
जब हम #शंखनाद के लिए श्वास भीतर भरते हैं, तो कुछ समय के लिए श्वास भीतर रुकती है, उस समय हम योगिक प्रक्रिया कुंभक वाली स्थिति में आ जाते हैं। हमारे भीतर स्वतः ही कुंभक घटने लगता है। कुंभक घटने के समय हमारी श्वास कुछ क्षणों के लिए भीतर रूकती है, इस दौरान हमारी श्वास के साथ आई सारी की सारी आक्सीजन हमारे फेफड़ों से होती हुई रक्त के माध्यम से पूरे शरीर में प्रवेश करने लगती है।
श्वास भीतर लेने के बाद ज्यों ही हम शंखनाद करने लगते हैं, तो धीरे-धीरे हमारी श्वास बाहर जाने लगती है, पेट सिकुड़ने लगता है और हम स्वतः ही रेचक वाली स्थिति में आने लगते हैं। रेचक, जो श्वास के बाहर जाने के बाद घटता है। श्वास के बाहर जाने से हमारे फेफड़े सिकुड़ने लगते हैं, जिससे फेफड़ों के छिद्रों में भरी कार्बन-डाई आक्साईड फेफड़ों की सतह पर आने लगती है और बाहर जाती श्वास के साथ बाहर जाने लगती है, जिससे हमारे फेफड़े शुद्ध होने लगते हैं। यानी कुंभक की प्रक्रिया हमारे शरीर में आक्सीजन की मात्रा को बढ़ाती है और रेचक की प्रक्रिया कार्बन डाई-आक्साइड को हमारे फेफड़ों से बाहर निकालती है।
जब हम शंखनाद करते हैं तो हमारी श्वास धीरे-धीरे बाहर जाने लगती है और ज्योंही सारी श्वास बाहर निकलती है हमारा गुदाद्वार भीतर की ओर सीकुड़ने लगता है और स्वतः ही हम मूलबंध की प्रक्रिया का हिस्सा बनने लगते हैं। यानी हमारा मूलबंध लगने लगता है। ज्योंही मूलबंध लगता है, नीचे का द्वार बंद हो जाता है, गुदाद्वार बंद हो जाता है और गुदाद्वार के बंद होते ही उर्जा उर्ध्वगामी होने लगती, ऊपर की ओर बहने लगती है।
जब हम शंखनाद करने के लिए श्वास को भीतर भरते हैं, तो श्वास हमारे पेट तक जाती है और श्वास के साथ आए प्राण तत्व नाभि पर इकत्रित होने लगते हैं। और जब हम शंखनाद करते हैं, श्वास बाहर जाने लगती और रेचक की प्रक्रिया में प्रवेश करते हैं, तो नाभि सिकुड़ने लगती है और नाभि के सिकुडते ही नाभि पर इकत्रित हुई हमारी सारी प्राणवायु मूलाधार चक्र को सक्रिय करने लगती है और मूलाधार के सक्रिय होते ही उर्जा रीढ़ के माध्यम से चक्रों पर गति करती हुई ऊपर सिर में जहां सहस्त्रार चक्र है, वहां पहुंचने लगती है और कुंडलिनी जागरण के लिए यात्रा पथ का निर्माण करने लगती है, साथ ही उर्जा मष्तिष्क में आकर मष्तिष्क के विकास में संलग्न हो जाती है। यानी मष्तिष्क के सोए हुए तंतुओं को सक्रिय करने लगती है, जिससे हमारे सोचने-समझने की शक्ति विकसित होती है। अर्थात हमारी समझ बढ़ने लगती है।
शंखनाद हमें विभिन्न प्रकार से स्वास्थ्य की ओर ले जाता है। शंखनाद से गला, छाती, पेट और गुदा से संबंधित सारे रोगों में लाभ होता है और इन संस्थानों से संबंधित सारी बिमारियों से हम बचे रहते हैं।
अतः शंखनाद हमें प्राणायम के साथ ही कुंभक, रेचक और मूलबंध में स्वतः ही प्रवेश करवाता है और अनजाने ही हम योग की इन प्रक्रियाओं से गुजरते हुए आध्यात्म और स्वास्थ्य दोनों को उपलब्ध होने लगते हैं।
शंख बजाने की प्रक्रिया हमारे तन-मन दोनों को स्वस्थ करते हुए हमें आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर करती है। यदि हम रोजाना शंखनाद करते हैं तो हम स्वतः ही योग की प्रक्रियाओं से गुजरते हुए स्वस्थ्य और आनंदपूर्ण जीवन में प्रवेश कर जाते हैं।
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