जानिए नवरात्र में कन्याओं का महत्व - jyotishacharya Dr Umashankar mishr 9415087711-9235722996 जिस प्रकार नवरात्र में कलश स्थापना व जौ का महत्व है उसी प्रकार कन्याओं का भी पूजन में विशेष स्थान है। जानिए नौ कन्याओं का महत्व देवी भागवत में नवकन्याओं को नवदुर्गा का प्रत्यक्ष विग्रह बताया गया है। उसके अनुसार नवकुमारियां भगवती के नव स्वरूपों की जीवंत मूर्तियां है। इसके लिए दो से दस वर्ष तक की कन्याओं का चयन को विशेष माना जाता है। दो वर्ष की कन्या ‘कुमारिका’ कहलाती है, जिनके पूजन से धन,आयु व बल की वृद्धि होती है। तीन वर्ष की कन्या ‘त्रिमूर्ति’ कही जाती है। इनके पूजन से घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। चार वर्ष की कन्या ‘कल्याणी’ के रूप में पूजने से विवाह आदि मंगल कार्य संपन्न होते हैं। पांच वर्ष की कन्या ‘रोहिणी’ की पूजा से स्वास्थ्य लाभ होता है। छह वर्ष की कन्या ‘कालिका’ के पूजन से शत्रु का दमन होता है। आठ वर्ष की कन्या ‘शाम्भवी’ के पूजन से दुःख-दरिद्रता का नाश होता है। नौ वर्ष की कन्या ‘दुर्गा’ रूप में पूजन से असाध्य रोगों का शमन और कठिन कार्य सिद्ध होते हैं। दस वर्ष की कन्या ‘सुभद्रा’ पूजन से मोक्ष की प्राप्ति होती है। देवी भागवत में इन नौ कन्या को कुमारी नवदुर्गा की साक्षात प्रतिमूर्ति माना गया है। दस वर्ष से अधिक आयु की कन्या को कुमारी पूजा में सम्मिलित नहीं करना चाहिए। कन्या पूजन से भगवती महाशक्ति भी प्रसन्न होती हैं। तभी पूरी होती है दुर्गापूजा कन्या पूजन के माध्यम से ऋषि-मुनियों ने हमें स्त्री वर्ग के सम्मान की ही शिक्षा दी है। नवरात्र में देवी भक्तों को यह संकल्प लेना चाहिए कि वे आजीवन बच्चियों और महिलाओं को सम्मान देंगे और उनकी सुरक्षा के लिए सदैव प्रयत्नशील रहेंगे। तभी सही मायनों में नवरात्र की शक्ति पूजा पूर्ण होगी। जौ को लेकर मान्‍यता नवरात्र में जौ को लेकर विशेष प्रकार की मान्‍यता है। नवरात्रि में जौ को उगाने से भविष्‍य के बारे में संकेत मिलते हैं। माना जाता है कि बोया हुआ जौ 2 से 3 दिन में ही अंकुरित हो जाता है। नवरात्र में जौ को बोने के लिए स्‍वच्‍छ मिट्टी का प्रयोग करना चाहिए। ब्रह्मा का रूप हैं जौ जौ को बोने के पीछे यह मान्‍यता है जौ को अन्‍न ब्रह्मा का रूप माना गया है और हमें अन्‍न का सम्‍मान करना चाहिए। पौराणिक काल से हवन में जौ की आहुति देने की परंपरा चली आ रही है। इसके अलावा पूजा पाठ में भी जौ को प्रयोग होता है और माना जाता है कि ऐसा करने से आपके घर में धन धान्‍य की कभी कमी नहीं होती है। हाथी पर सवार होकर आएंगी माता इस बार माता जी हाथी पर सवार होकर आएंगी व नोका की सवारी से वापस जाएंगी। इस नवरात्र में किसी भी तिथि का लोप नहीं है अतः सभी दिन 26 सितम्बर से पूर्ण रूप में चलेंगी। भगवान राम ने की थी शारदीय नवरात्र की पूजा शारदीय शक्ति पूजा को विशेष लोकप्रियता त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम चंद्र के अनुष्ठान से भी मिली। देवी भागवत में भगवान श्रीराम चंद्रजी द्वारा किए गए शारदीय नवरात्र के व्रत तथा शक्ति पूजन का सुविस्तृत वर्णन मिलता है। इसके अनुसार, श्रीराम की शक्ति-पूजा सम्पन्न होते ही जगदम्बा प्रकट हो गई थीं। शारदीय नवरात्र के व्रत का पारण करके दशमी के दिन श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई कर दी। कालान्तर में रावण का वध करके कार्तिक कृष्ण अमावस्या को श्रीरामचंद्र जी भगवती सीता को लेकर अयोध्या वापस लौट आए थे। देवी भगवती के प्रति अपार भक्ति को समर्पित करने का मुख्य पर्व है नवरात्र। अतःनिश्छल भाव से माँ को अपना प्रेम व श्रद्धा भेंट कर असीम ऊर्जामयी आशीर्वाद प्राप्त करने का समय आ गया है।