जीवित्पुत्रिका व्रत
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आश्विन कृष्ण अष्टमी/व्रत
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हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत होता है. इस दिन माताएं विशेषकर पुत्रों के दीर्घ, आरोग्य और सुखमय जीवन के लिए यह व्रत रखती हैं. जिस प्रकार पति की कुशलता के लिए निर्जला व्रत तीज रखा जाता है, ठीक वैसे ही जीवित्पुत्रिका व्रत निर्जला रहा जाता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत एवं पूजा मुहूर्त
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यह व्रत Aaj 18 सितम्बर की रात से प्रारंभ और 19 सितम्बर तक चलेगा. इस वर्ष 17 सितम्बर को दोपहर ०2 बजकर 56 मिनट पर अष्टमी तिथि आरम्भ है और 18 सितम्बर दोपहर 04 बजकर 39 मिनट पर समाप्त हो जायेगी. उदय तिथि को आधार मानते हुए यह व्रत Aaj 18 सितम्बर को रखा जायेगा और इसका पारण १९ सितम्बर २०२२ को subah 9:00 baje se pahle Kiya जायेगा.
जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा महाभारत से जुड़ी है. अश्वत्थामा ने बदले की भावना से उत्तरा के गर्भ में पल रहे पुत्र को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया. उत्तरा के पुत्र का जन्म लेना आवश्यक था. तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों के फल से उस बच्चे को गर्भ में ही पुनः जीवन दिया. गर्भ में मृत्यु को प्राप्त कर पुन: जीवन मिलने के कारण उसका नाम जीवित पुत्रिका रखा गया. वह बालक बाद में राजा परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
जीवित्पुत्रिका व्रत कठिन व्रतों में से एक है. इस व्रत में बिना पानी पिए कठिन नियमों का पालन करते हुए व्रत पूर्ण किया जाता है. संतान की सुरक्षा माताओं के लिए पहली प्राथमिकता होती है, इस लिए वे ऐसा कठिन व्रत करती हैं.
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