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ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र 94 150 87711 923 57 22996
जिंदगी में बांसुरी बन
जाओ
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बाँसुरी बनाने वाले बताते हैं कि, इसके लिए आवश्यक बाँस को तिथि के अनुसार तोड़ा जाता है।
पंचमी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी इन तिथियों पर अगर बाँस तोड़ा गया तो उसमें कीड़े लग जाते हैं। इसका कारण ये है कि, इन तिथियों का अंतिम अक्षर " मी " है जो " मैं " अथवा अहंकार का परिचायक है और अहंकार से कार्यनाश होकर बाँसुरी अधिक समय तक नहीं चलती, ऐंसी मान्यता है।
कृष्ण भगवान का पसंदीदा वाद्य बाँसुरी है।
एक बार कृष्ण के सभी सखा और गोपियों ने बाँसुरी से कहा कि, हम कृष्ण के इतने करीबी हैं, उनकी भक्ति करते, उनका गुणगान करते हैं, उनके आसपास घूमते रहते हैं, लेकिन वे हमें उतना भाव नहीं देते और तुम इतनी साधारण, ना रूप ना और कुछ, फिर भी भगवान तुम्हें होंठों से लगाए रहते हैं। आखिर तुमने ऐंसा कौनसा जादू किया है उनपर ??
बाँसुरी ने हँसकर कहा---" तुम मेरी तरह बनो फिर कृष्ण तुम्हें भी अपने करीब रखेंगे। मैं एकदम सीधी हूँ, ना कोई गाँठ और ना ही कोई मोड़ या घुमाव। मैं अंदर से पोली हूँ और उसी पोलेपन से मेरा सारा अहंकार निकल गया है।
मेरे शरीर के 6 छिद्रों द्वारा काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, अहंकार सब मैंने बाहर फेंक दिए हैं।
मेरी खुद की कोई आवाज नहीं है। मुझमें फूँक मारने पर ही मैं बोलती हूँ।
जो जैंसी फूँक मारता है, मैं वैसा ही बोलती हूँ। "
बाँसुरी का प्यारा उत्तर सुन सखा और गोपियाँ सभी निरुत्तर हो गए।
अहंकार रहित शरीर ही, श्री हरी की बाँसुरी है
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