देवशयनी एकादशी व्रत 🌷 Jyotish Aacharya Dr Uma Shankar Mishra 9415 087 711 92 357 22996 आज है 1 जुलाई 2020, बुधवार देवशयनी एकादशी व्रत एकादशी कथा:👇 वामन पुराण के मुताबिक असुरों के राजा बलि ने अपने बल और पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था. राजा बलि के आधिपत्‍य को देखकर इंद्र देवता घबराकर भगवान विष्‍णु के पास मदद मांगने पहुंचे. देवताओं की पुकार सुनकर भगवान विष्‍णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए. वामन भगवान ने बलि से तीन पग भूमि मांगी. पहले और दूसरे पग में भगवान ने धरती और आकाश को नाप लिया. अब तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा नहीं था तो राजा बलि ने कहा कि तीसरा पग उनके सिर पर रख दें. भगवान वामन ने ऐसा ही किया. इस तरह देवताओं की चिंता खत्‍म हो गई. वहीं भगवान राजा बलि के दान-धर्म से बहुत प्रसन्‍न हुए. उन्‍होंने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा तो बलि ने उनसे पाताल में बसने का वर मांग लिया. बलि की इच्‍छा पूर्ति के लिए भगवान को पाताल जाना पड़ा. भगवान विष्‍णु के पाताल जाने के बाद सभी देवतागण और माता लक्ष्‍मी चिंतित हो गए. अपने पति भगवान विष्‍णु को वापस लाने के लिए माता लक्ष्‍मी गरीब स्‍त्री बनकर राजा बलि के पास पहुंची और उन्‍हें अपना भाई बनाकर राखी बांध दी.... बदले में भगवान विष्‍णु को पाताल लोक से वापस ले जाने का वचन ले लिया. पाताल से विदा लेते वक्‍त भगवान विष्‍णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह आषाढ़ शुक्‍ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्‍ल पक्ष की एकादशी तक पाताल लोक में वास करेंगे. पाताल लोक में उनके रहने की इस अवधि को योगनिद्रा माना जाता है ! चातुर्मास काल :👇 चातुर्मास यानी साल के वो चार महीने जब इस दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्य को वर्जित माना जाता है। इस बार आज 1 जुलाई से चातुर्मास आरंभ हो रहे हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक का समय चार्तुमास का समय होता है। चातुर्मास के दौरान यानी 4 माह में विवाह संस्कार, संस्कार, गृह प्रवेश आदि सभी मंगल कार्य निषेध माने गए हैं। देवोत्थान /देवउठनी एकादशी के साथ शुभ कार्यों की शुरुआत दोबारा फिर से हो जाती है। ऐसी मान्यता है कि इन चार महीनों के दौरान सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम करने के लिए चले जाते हैं इसलिए सभी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य थम जाते हैं। इस बार चातुर्मास पांच महीने का होगा |इस बार अधिकमास पड़ेगा जिस कारण से आश्विन माह दो होंगे। अधिमास होने के कारण चातुर्मास चार महीने के बजाय पांच महीने का होगा। ऐसे में इसके बाद सभी तरह के त्योहार आम वर्षो के मुकाबले देरी से आएंगे। जहां श्राद्ध के खत्म होने पर तुरंत अगले दिन से नवरात्रि आरंभ हो जाते लेकिन अधिमास के होने से ऐसा नहीं हो पाएगा। 17 सितम्बर 2020 को श्राद्ध खत्म होंगे और अगले दिन से अधिकमास शुरू हो जाएगा जो 16 अक्टूबर 2020 तक चलेगा | इस बार जैसे ही श्राद्ध पक्ष खत्म होगा फिर अगले दिन से आश्विन मास का अधिमास आरंभ हो जाएगा। 17 अक्टूबर से नवरात्रि आरम्भ होगी | इस बार श्राद्ध और नवरात्रि के बीच एक महीने का समय रहेगा | दशहरा 26 अक्टूबर2020 को और दीपावली 14 नवम्बर 2020को मनाई जायेगी | 25 नवम्बर को देवउठनी एकादशी रहेगी और इस दिन चातुर्मास खत्म हो जाएगा | चातुर्मास का महत्व: चातुर्मास में संत एक ही स्थान पर रूककर तप और धयान करते है | चातुर्मास में यात्रा करने से बचते है क्योकि यह वर्षा ऋतू का समय रहता है , इस दौरान नदी नाले उफान पर होते है तथा कई छोटे छोटे कीट उत्पन्न होते है | इस समय में विहार करने से इन् छोटे छोटे कीटो को नुकसान होने की संभावना रहती है | इसी वजह से जैन धर्म में चातुर्मास में संत एक जगह रूककर तप करते है | चातुर्मास में भगवान् विष्णु विश्राम करते है और सृष्टि का संचालन भगवान् शिव करते है | देवउठनी एकादशी के बाद विष्णु जी फिर से सृष्टि का भार संभाल लेते है | चातुर्मास के दौरान यानी 4 माह में विवाह संस्कार, संस्कार, गृह प्रवेश आदि सभी मंगल कार्य निषेध माने गए हैं। देवोत्थान एकादशी के साथ शुभ कार्यों की शुरुआत दोबारा फिर से हो जाती है। क्या होता है अधिमास ❓👇 हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर तीन वर्ष में एक बार एक अतिरिक्त माह आता है। इसे ही अधिमास, मलमास और पुरुषोत्तम माह के नाम से जाना जाता है। क्यों आता है हर तीन साल में अधिमास❓👇 हिंदू कैलेंडर सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के आधार पर चलता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार एक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है। वहीं एक चंद्र वर्ष में 354 दिन होते हैं। इन दोनों का अंतर लगभग 11 दिनों का होता है। धीरे-धीरे तीन साल में यह एक माह के बराबर हो जाता है। इस बढ़े हुए एक महीने के अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक अतिरिक्त महीना आ जाता है। इसे ही अधिमास कहा जाता है। अधिमास का महीना आने से ही सभी त्योहार सही समय पर मनाए जाते हैं। अगर अधिमास नहीं होता तो हमारे त्योहारों की व्यवस्था बिगड़ जाती | अधिकमास को मलमास क्यों कहते है ❓ अधिकमास में सभी पवित्र करम वर्जित माने गये है | इस पुरे माह में सूर्य सक्रांति नहीं आती , इस वजह से ये माह मलीन हो जाता है | इसलिए इससे मलमास कहते है | मलमास में नामकरण, याग्योपवीत, विवाह, गृह प्रवेश, नयी बहुमूल्य वस्तुओ की खरीदारी जैसे शुभ कार्य नहीं किये जाते | अधिमास को पुरुषोत्तम मास भी कहते है | मान्यता है कि मलिन मास होने की वजह से कोई भी देवता इस मास का स्वामी होना नहीं चाहता था, तब मलमास ने भगवान् विष्णु से प्रार्थना की | मलमास की प्रार्थना सुनकर विष्णु जी ने इससे अपना श्रेष्ठ नाम पुरुषोत्तम प्रदान किया | श्रीहरि ने मलमास को वरदान दिया कि जो इस माह में भागवत कथा श्रवण , मनन, भगवान् शिव का पूजन , धार्मिक अनुष्ठान, दान करेगा उससे अक्षय पुण्य प्राप्त होगा | अधिकमास में आने वाले चार महीने जिसमें सावन, भादौ, आश्विन और कार्तिक का महीना आता है उसमें खान-पान और व्रत के नियम और संयम का पालन करना चाहिए। दरअसल इन 4 महीनो में व्यक्ति की पाचनशक्ति कमजोर हो जाती है इससे अलावा भोजन और जल में बैक्टीरिया की तादाद भी बढ़ जाती है। इन चार महीनों में सावन का महीना सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इस माह में जो व्यक्ति भागवत कथा, भगवान शिव का पूजन, धार्मिक अनुष्ठान, दान करेगा उसे अक्षय पुण्य प्राप्त होगा। अधिकमास में व्रत की विधि अधिक मास में व्रती को पुरे माह व्रत का पालन करना होता है | ज़मीन पर सोना, एक समय सात्विक भोजन, भगवान् श्री हरि यानी भगवान् श्री कृष्ण या विष्णु भगवान् की पूजा, मन्त्र जाप, हवन, हरिवंश पुराण, श्रीमद्भागवत , रामायण, विष्णु स्रोत, रुद्राभिषेक का पाठ आदि कर्म भी व्रती को करने चाहिए | अधिक मास के समापन पर स्नान, दान, ब्राह्मण भोज आदि करवाकर व्रत का उद्यापन करना चाहिए | शुद्ध घी के मालपुआ का दान करने का काफी महत्त्व इस मास में माना जाता है | 🙏 astroexpertsolutions.com 🙏 Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra Siddhi Vinayak Jyotish Vastu Anusandhan Kendra Vibhav khand 2 Gomti Nagar Lucknow 9415 087 711 923 5722 996 🙏