अधिकमास के कारण इस बार देवशयन काल पांच महीने का होगा, 20 से 25 दिन तीज त्योहार में होगी देरी
देवशयनी एकादशी से देव प्रबोधिनी एकादशी तक देव शयन काल,चातुर्मास होता है। जो 1 जुलाई से 25 नवम्बर तक अर्थात 148 दिनों तक रहेगा।
सार
🌼अधिकमास के चलते देवशयन काल चार नहीं पांच माह का होगा।
🌼श्री हरि सोएंगे तो शिव जागेंगे।
🌼1 जुलाई से चातुर्मास प्रारंभ सभी तीर्थ ब्रज में करेंगे निवास।
🌼श्राद्ध पक्ष के बाद के सभी तीज त्योहार 20 से 25 दिन विलम्ब से होंगे।
🌼160 वर्ष पश्चात लीप ईयर व अधिकमास एक साथ एक ही वर्ष में।
ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा 9415 087 711 से जानते हैं विस्तार में
Cal 1 जुलाई, बुधवार को देवशयनी आषाढ़ी एकादशी से श्री हरि (विष्णु ) योगनिद्रा में जाएंगे और चातुर्मास प्रारम्भ होगा। इस वर्ष दो आश्विन (अधिक मास) होने से श्रीहरि चार नही पांच माह सोएंगे। चातुर्मास भी चार नहीं पांच माह का होगा। सभी शुभ कार्य वर्जित होंगे। देवशयनी एकादशी से देव प्रबोधिनी एकादशी तक देव शयन काल,चातुर्मास होता है। जो 1 जुलाई से 25 नवम्बर तक अर्थात 148 दिनों तक रहेगा।
इस वर्ष 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक आश्विन अधिक मास भी रहेगा। अर्थात दो आश्विन। इसके चलते श्राद्ध पक्ष के बाद के सभी त्यौहार जैसे नवरात्रि, दशहरा ,दीपावली आदि 20 से 25 दिन बाद से प्रारम्भ होंगे। श्राद्ध व नवरात्रि में लगभग एक माह का अंतर होगा। दशहरा 26 अक्टूबर तो दीपोत्सव 14 नवंबर को मनाया जाएगा। देव प्रबोधिनी एकादशी 25 नवंबर को है। 19 वर्ष बाद पुनः आश्विन अधिमास के रूप में आया है, आगे फिर 19 वर्ष बाद 2039 में आश्विन अधिकमास के रूप में आएगा , किन्तु लीप ईयर व अधिकमास 160 वर्षों के बाद एक साथ आये है। इसके पूर्व यह संयोग सन 1860 में बना था।
हर तीन वर्ष में अधिक मास
अधिकमास एक वैज्ञानिक प्रक्रिया के तहत है,यदि अधिक मास नहीं हो तो तीज त्योहारों का गणित गड़बड़ा जाता है। अधिक मास की व्यवस्था के चलते हमारे सभी तीज त्योहार सही समय पर होते है। Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra ने बताया कि हर तीन वर्ष में अधिक मास चांद्र व सौर वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने हेतु हर तीसरे वर्ष पंचांगों में एक चांद्र मास की वृद्धि कर दी जाती है। इसी को अधिक,मल व पुरुषोत्तम मास कहा जाता है। सौर वर्ष का मान 365 दिनों से कुछ अधिक व चांद्र मास 354 दिनों का होता है। दोनों में करीब 11 दिनों के अंतर को समाप्त करने के लिए 32 माह में अधिक मास की योजना की गई है,जो पूर्णतः विज्ञान सम्मत भी है।
देवशयन,चातुर्मास में क्या करें
चातुर्मास में सत्संग,जप,तप व ध्यान साधना का विशेष महत्व है। इस समयावधि में संत महापुरुष एक ही स्थान पर रुककर सत्संग आदि धार्मिक कार्य करते है। वर्षा ऋतु के चलते आना जाना दुःसाध्य होता है। Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra ने बताया कि देव शयन,चतुर्मास में प्रजा पालक भगवान विष्णु शयन करते है तो देवाधिदेव भगवान शिव सृष्टि का भार वहन कर जागरण करते हैं। देवशयन काल में तपस्वी भ्रमण नहीं करते वे एक ही स्थान पर रहते हैं। पुराणों की मानें तो चातुर्मास में सभी तीर्थ ब्रज में आकर निवास करते हैं? इन महीनों में श्री हरि की प्रसन्नता हेतु ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जप करना चाहिए व चातुर्मास के नियमों का पालन भी।
मंगल कार्य नहीं होंगे
सामान्यतः विवाह आदि मंगल कार्य देव शयन काल में वर्जित होंगे। इस प्रकार देव शयनी एकादशी से देव प्रबोधिनी एकादशी तक आश्विन अधिक मास के चलते श्री हरि चार नहीं पांच माह (147 दिन ) तक योग निद्रा में रहेंगे फिर देव प्रबोधिनी एकादशी को जागेंगे। देव शयनी एकादशी को हरिशयनी, पद्मा,आषाढ़ी आदि नामों से भी जाना जाता है। इस वर्ष देव शयन काल में दो आश्विन होने से अधिक मास का भी लाभ प्राप्त होगा।
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*ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा *94 15 0877 11 923 5722 996
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