आदि कैलाश धाम: कैलाश मानसरोवर के समान ही दर्जा प्राप्त देश का ऐसा पर्वत, जहां के रहस्य आपको भी कर देंगे हैरान जानिए ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा
ज्योतिषाचार्य आकांक्षा
श्रीवास्तव से
- पंच कैदार में से एक है ये जगह
- मानसरोवर झील की तर्ज में पार्वती सरोवर
- ये हैं पंच कैलाश
अब तक हम मुख्य रुप से कैलाश मानसरोवर के बारें में सुनते या जानते आ रहे हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि एक और कैलाश है जो की भारत में ही है और उसे कैलाश के समान ही दर्जा प्राप्त है। यहां पहुंचना भी इतना मुश्किल नहीं और खर्चा भी श्री कैलाश मानसरोवर की अपेक्षा बेहद कम, और वह है आदि कैलाश। यह पंच कैलाश में से एक है...
माना जाता है कि जब महादेव कैलाश से बारात लेकर माता पार्वती से विवाह करने आ रहे थे तो यहां उन्होंने पड़ाव डाला था। कैलाश मानसरोवर यात्रा के बाद आदि कैलाश यात्रा को सबसे अधिक पवित्र यात्रा माना जाता है।
समुद्रतल से 6191 मीटर की ऊंचाई पर स्थित आदि कैलाश भारत देश के उत्तराखण्ड राज्य में तिब्बत सीमा के समीप है और देखने में यह कैलाश की प्रतिकृति ही लगता है। कैलाश मानसरोवर यात्रा की तरह ही आदि कैलाश यात्रा भी रोमांच और खूबसूरती से लबरेज है, इसमें भी 105 किमी की यात्रा पैदल करनी पड़ती है।
आदि कैलाश को छोटा कैलाश भी कहा जाता है। आदी कैलाश में भी कैलाश के समान ही पर्वत है। मानसरोवर झील की तर्ज में पार्वती सरोवर है। आदि कैलाश के पास गौरीकुंड है। कैलाश मानसरोवर की तरह ही आदी कैलाश की यात्रा भी अति दुर्गम यात्रा मानी जाती है।
आदि कैलाश जिसे छोटा कैलाश के नाम से भी जाना जाता है, तिब्बत स्थित श्री कैलाश मानसरोवर की प्रतिकृति है। विशेष रूप से इसकी बनावट और भौगोलिक परिस्थितियां इस कैलाश के समकक्ष ही बनाती हैं। प्राकृतिक सुंदरता इस क्षेत्र में पूर्ण रूप से फैली हुई है। लोग यहां आकर आपार शांति का अनुभव करते हैं।
यहां भी कैलाश मानसरोवर की भांति आदि कैलाश की तलहटी में पार्वती सरोवर है जिसे मानसरोवर भी कहा जाता है। इस सरोवर में कैलाश की छवि देखते ही बनती है। सरोवर के किनारे ही शिव और पार्वती का मंदिर है।
साधु - सन्यासी तो इस तीर्थ की यात्रा प्राचीन समय से करते रहे हैं, किन्तु आम जन को इसके बारे में तिब्बत पर चीनी कब्ज़े के बाद पता चला। पहले यात्री श्री कैलाश मानसरोवर की यात्रा करते थे, किन्तु जब तिब्बत पर चीन ने अधिकार जमा लिया तो कैलाश की यात्रा लगभग असंभव सी हो गयी।
तब साधुओं ने सरकार और आम जन को आदि कैलाश की महिमा के बारे में बताया और उन्हें इसकी यात्रा के लिए प्रेरित किया। इस क्षेत्र को ज्योलिंगकॉन्ग के नाम से भी जाना जाता है।
वैसे एक कथा यह भी है इस स्थान के बारे में की जब महादेव कैलाश से बारात लेकर माता पार्वती से विवाह करने आ रहे थे तो यहां उन्होंने पड़ाव डाला था। एक लम्बे सफ़र के बाद जब आप इस जादुई दुनिया में प्रवेश करते हैं तब आपको अनुभूति होगी की आखिर महादेव ने इस स्थान को अपने वास के लिये क्यों चुना।
आदि कैलाश का इतिहास-
प्रकृति की अनुपम कृति में भारत का मुकुट हिमालय, अपनी अदभुत सौन्दर्यता व रहस्यमय कृतियों का भंडार है। चारों दिशाओं में फैली भू-लोकि हरियाली और कल-कल छल-छल करते झरने, चहचहाती चिड़ियां और चमकती हुई हिमालय श्रृखंलाए सम्पूर्ण प्रकृति से परिपूर्ण हिमालय को सर्मपित है जो कैलाश वासी शिव का प्रिय स्थल है। यहां भगवान शिव व माता पार्वती निवास करते है। जिनके स्वरूप की, समस्त शास्त्रों व वेदों में यथावत पुष्टी की गयी है।
ओम पर्वत –
पृथ्वी पर आठ पर्वतों पर प्राकृतिक रूप से ॐ अंकित हैं जिनमे से एक को ही खोजा गया हैं और वह यही ॐ पर्वत हैं, इस पर्वत पर बर्फ इस तरह पड़ती हैं की ओम का आकार ले लेती हैं आदि कैलाश यात्रियों को पहले गूंजी पहुचना पड़ता हैं। यहां से वे ॐ पर्वत के दर्शन करने जाते हैं। उसके बाद वापस गूंजी आकर, आदि कैलाश की ओर प्रस्थान करते हैं। ॐ पर्वत की इस यात्रा के दौरान हिमालय के बहुत से प्रसिद्ध शिखरों के दर्शन होते हैं।
कैलाश यात्रा : आदि कैलाश यानि छोटा कैलाश-
आदि कैलाश को छोटा कैलाश के नाम से जाना जाता है और पार्वती सरोवर को गौरी कुंड के नाम से जाना जाता है। इन दोनों तीर्थस्थलों को कैलाश पर्वत और तिब्बत की मानसरोवर झील के समतुल्य माना जाता है। कैलाश मानसरोवर यात्रा के बाद आदि कैलाश यात्रा को सबसे अधिक पवित्र यात्रा माना जाता है।
इसके रास्ते में मनमोहक ओम पर्वत पड़ता है। इस पर्वत की विशेषता यह है कि यह गौरी कुंड जितना ही सुन्दर है और इस पर्वत पर जो बर्फ जमी हुई है वह ओम के आकृति में है। इस स्थान मे वह शक्ति है जो यहां आने वाले नास्तिक को भी आस्तिक में बदल देती है। गुंजी तक इस तीर्थस्थल का रास्ता भी कैलाश मानसरोवर जैसा ही है। गुंजी पहुंचने के बाद तीर्थ यात्री लिपू लेख पास पहुंच सकते हैं।
इसके बिल्कुल पीछे चीन पडता है। आदि कैलाश यात्रा करने के लिए परमिट की आवश्यकता होती है. इस परमिट को धारचुला के न्यायधीश के कार्यालय से प्राप्त किया जा सकता है। परमिट प्राप्त करने के लिए पहचान-पत्र और अपने गंतव्य स्थलों की सूची न्यायधीश को देनी होती है। आदि कैलाश यात्रा के लिए बहुत सारी औपचारिकताएं पूरी करनी होती है, जिनमें बहुत सारी पासपोर्ट साइज फोटो की आवश्यकता होती है।
परमिट प्राप्त करने के बाद बुद्धि के रास्ते गुंजी पहुंचना होता है. इसके बाद जौलिंगकोंग के लिए आगे की यात्रा शुरू की जा सकती है। जौलिंगकोंग से आदि कैलाश और पार्वती सरोवर थोडी ही दूर पर है, वहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। यह आदि कैलाश तीर्थस्थल कुमांउ के पिथौरागढ जिले में है.,यह तिब्बत की सीमा के निकट है।
ऐसे पहुंचे आदि कैलाश-
आदि कैलाश यात्रा का शुभारंभ दिल्ली से होता है। दूसरे दिन यात्रा दिल्ली से काठगोदाम पहुंचते हैं, उसी दिन अल्मोड़ा में रात्रि विश्राम कर तीसरे रोज यात्रा वाया सेराघाट होते हुए धारचूला के लिए पातालभुवनेश्वर मंदिर के दर्शन कर यात्री विश्राम डीडीहाट में करते है।
अगले दिन डीडीहाट से धारचूला पहुंचते हैं, यात्रा का धारचूला तक का सफर केएमवीएन बस से होता है। जबकि इससे आगे का सफर चालीस किमी कच्ची सड़क में छोटी टैक्सियों से लखनपुर तक की जाती है। इस बीच तवाघाट, मांगती, गर्भाधार जैसे कई पड़ाव पड़ते है, लखनपुर के बाद का यात्रा रूट पैदल ही है।
इससे आगे बुद्धि, छियालेक, गुंजी, कुट्टी होते हुए ज्योलिंगकांग पहुंचते हैं। ज्योलिंगकांग से आदि कैलाश के दर्शन होते हैं। आदि कैलाश से 2 किमी आगे खूबसूरत पार्वती सरोवर है, आदि कैलाश पर्वत की जड़ में गौरीकुंड स्थापित है।
पार्वती सरोवर और गौरीकुंड में स्नान का विशेष महत्व बताया जाता है। पार्वती सरोवर में यात्रियों द्वारा स्नान करने के बाद यात्री गौरी कुंड पहुंचकर यात्रा वापसी करती हैं। वापसी के वक्त यह यात्री दल नांभी में एक होम स्टे कर कालापानी नांभीडांग होते हुए ओम पर्वत के दर्शन करने पहुंचता है। फिर इसी रूट से दल रिटर्न होकर धारचूला पहुंचता है।
ऐसे समझें कितने दिन में पहुंचा जा सकता है आदि कैलाश?
आदि कैलाश तक पहुचने के लिए लगभग 17 या 18 दिन लगते हैं वहां पहुचे से स्वर्ग जैसा अनुभव होता हैं| लम्बी पैदल यात्रा, आध्यामिकता के लिए अक्सर, पर्यटकों को अपनी महिमा का आनन्द लेने के लिए आकर्षित करता हैं।
आदि कैलाश जाने के लिए देवभूमि उत्तराखंड के कुमाउं मंडल के धारचूला से 17 किमी तवाघाट, तवाघाट से 17 किमी पांगू, पांगू से 18 किमी दूर नारायण आश्रम तक वाहन से जाया जा सकता है। वहां से 11 किमी सिर्खा, सिर्खा से 14 किमी गाला, गाला से 23 किमी बूंदी, बूंदी से 9 किमी गर्ब्यांग, गर्ब्यांग से 10 किमी गुंजी, गुंजी से 29 किमी कुटि, कुटि से 9 किमी चलकर ज्योलिंकांग पहुंचा जा सकता है।
ज्योलिंगकांग से आदी कैलाश के दर्शन होते हैं। आदी कैलाश से 2 किमी आगे खूबसूरत पार्वती सरोवर है। आदी कैलाश पर्वत की जड़ में गौरीकुंड स्थापित है। पार्वती सरोवर और गौरीकुंड में स्नान का विशेष महत्व बताया जाता है।
आदि कैलाश, उत्तराखंड राज्य के तिब्बत सीमा की काफी प्रभावशाली ऊंचाई पर स्थित है। आदि कैलाश को माउंट कैलाश की एक प्रतिकृति के रूप में जाना जाता है। यह भारत- तिब्बती सीमा के निकट भारतीय क्षेत्र में स्थित है। आदि कैलाश की ऊंचाई समुद्रतल से लगभग 6191 मीटर है।
आध्यात्म का केन्द्र...
आदि कैलाश शान्तपूर्ण एवं आध्यात्म का केन्द्र माना जाता है। यह हिन्दू भक्तों की एक लोकप्रिय तीर्थ यात्रा है। आदि कैलाश, जिसे छोटा कैलाश के नाम से भी जाना जाता है तिब्बत स्थित श्री कैलाश मानसरोवर की प्रतिकृति है।
प्राकृतिक सुंदरता इस क्षेत्र में पूर्ण रूप से फैली हुई है। यहां आकर शान्ति का अनुभव होता है। यहां भी कैलाश मानसरोवर की भांति आदि कैलाश की तलहटी में पर्वतीय सरोवर है, जिसे मानसरोवर भी कहा जाता है। इस सरोवर में कैलाश की छवि देखते ही बनती है।
सरोवर के किनारे ही शिव और पार्वती का मंदिर है। साधु-सन्यासी तो इस तीर्थ की यात्रा प्राचीन समय से करते रहे है। लेकिन आम जनता को इसके बारे में तिब्बत पर चीनी कब्जे के बाद पता चला। इससे पहले यात्री मानसरोवर की यात्रा करते थे।
पंच कैलाश का महत्व (PANCH KAILASH);-
सनातनधर्मियों यानि हिंदुओं के जीवन में पंच कैलाश दर्शन का बहुत बड़ा महत्व है...पूर्ण रूप से महादेव शिव का निवास स्थान 'कैलाश पर्वत' जो तिब्बत में स्थित है को ही माना जाता है और इसके साथ ही महादेव शिव के प्रमुख चार निवास और भी हैं, जिन्हें उप कैलाश भी कहा जाता है
1-कैलाश मानसरोवर TIBET - CHINA)
2- श्रीखंड (HIMACHAL PRADESH)
3-किन्नौर कैलाश (HIMACHAL PRADESH)
4-मणिमहेश, (HIMACHAL PRADESH)
5-ओम पर्वत /आदि कैलाश (UTTRAKHAND)
: पंच कैलाश-
आदि कैलाश, कैलाश मानसरोवर, मणिमहेश, श्रीखंड, किन्नौर कैलाश.... इन सबकी यात्रा करने से धार्मिक यात्रा पूर्ण मानी जाती है। जिनमे 'श्रीखंड कैलाश' हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में, 'मणिमहेश कैलाश' हिमाचल प्रदेश के चम्बा में, 'किन्नौर कैलाश' हिमाचल के किन्नौर में, तथा 'आदि कैलाश' उत्तराखंड में तिब्बत व् नेपाल की सीमा पर जोंगलीकोंग में विराजमान है। इन पांचो कैलाशों को एक रूप में पंचकैलाश' भी कहते है।
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*ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा
ज्योतिषाचार्य आकांक्षा
श्रीवास्तव*
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