देवशयनी एकादशी 2020 : हरिशयनी एकादशी का महत्व,पूजा विधि व चातुर्मास में क्या करें, क्या ना करें…
इस एकादशी को आषाढ़ी एकादशी,देवशयनी एकादशी, हरिशयनी और पद्मनाभा एकादशी आदि नाम से भी जाना जाता है...
1 जुलाई से चतुर्मास प्रारंभ
एकादशी चंद्र मास में आने वाली ग्यारहवीं तिथि होती है। हर चंद्र मास में दो एकादशी होती हैं एक शुक्ल पक्ष की एकादशी और कृष्ण पक्ष की एकादशी। प्रदोष व त्रियोदशी तिथि जहां भगवान शिव को समर्पित मानी गई हैं, वहीं एकादशी व पूर्णमासी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित हैं।
आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को आषाढ़ी एकादशी कहते हैं। इसे देवशयनी एकादशी, हरिशयनी और पद्मनाभा एकादशी आदि नाम से भी जाना जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ी एकादशी जून या जुलाई के महीने में आती है।
इस वर्ष यानि 2020 में ये एकादशी 01 जुलाई, 2020 (बुधवार) को पड़ रही है।
ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा
ज्योतिषाचार्य आकांक्षा
श्रीवास्तव के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक का चार माह का समय हरिशयन का काल समझा जाता है। वर्षा के इन चार माहों का संयुक्त नाम चातुर्मास दिया गया है।
इसके दौरान जितने भी पर्व, व्रत, उपवास, साधना, आराधना, जप-तप किए जाते हैं, उनका विशाल स्वरूप एक शब्द में 'चातुर्मास्य' कहलाता है। चातुर्मास से चार मास के समय का बोध होता है और चातुर्मास्य से इस समय के दौरान किए गए सभी व्रतों-पर्वों का समग्र बोध होता है।
भगवान विष्णु का शयन काल...
यह भगवान विष्णु का शयन काल होता है। पुराणों के अनुसार इस दिन से भगवान विष्णु चार मास के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं, इसलिए इसे हरिशयनी एकादशी कहा जाता है। इसी दिन से चातुर्मास प्रारंभ हो जाते हैं।
पुराणों में विशेष रूप से वर्णन...
पुराणों में इस चौमासे का विशेष रूप से वर्णन किया गया है। भागवत में इन चार माहों की तपस्या को एक यज्ञ की संज्ञा दी गई है। वराह पुराण में इस व्रत के बारे में कुछ खास बातें भी बताई गई हैं।
ऐसे समझें: इस व्रत को आषाढ़ शुक्ल एकादशी के स्थान पर द्वादशी (बारस) या आषाढ़ी पूर्णिमा से भी शुरू किया जा सकता है और चार माह पूर्ण करने के लिए इसका समापन उधर कार्तिक शुक्ल द्वादशी या कार्तिक पूर्णिमा तक किया जा सकता है।
आषाढ़ी एकादशी का महत्व और चातुर्मास ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा
ज्योतिषाचार्य आकांक्षा
श्रीवास्तव के अनुसार आषाढ़ी एकादशी या देवशयनी एकादशी भगवान विष्णु का शयन काल होता है। इसी दिन से चौमासे का आरंभ माना जाता है। क्योंकि भगवान विष्णु चार मास के लिए निद्रा में रहते हैं इसलिए इस समय में विवाह समेत कई शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
इन दिनों में तपस्वी भ्रमण नहीं करते हैं, वे एक स्थान पर रहकर तपस्या करते हैं। इन दिनों में केवल ब्रज की यात्रा की जा सकती है। क्योंकि इन चार महीनों में पृथ्वी के समस्त तीर्थ ब्रज में आकर निवास करते हैं। आषाढ़ी एकादशी के चार माह बाद भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं, इस तिथि को प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी कहते हैं।
शास्त्रों व पुराणों में इन चार माहों के लिए कुछ विशिष्ट नियम बताए गए हैं। इसमें चार महीनों तक अपनी रुचि व अभीष्ठानुसार नित्य व्यवहार की वस्तुएं त्यागना पड़ती हैं। कई लोग खाने में अपने सबसे प्रिय व्यंजन का इन माहों में त्याग कर देते हैं। चूंकि यह विष्णु व्रत है, इसलिए चार माहों तक सोते-जागते, उठते-बैठते 'ॐ नमो नारायणाय' के जप करना चाहिए।
पुराणों के अनुसार चार माहों के लिए विष्णु भगवान क्षीरसागर में शयन के लिए चले जाते हैं। तीनों लोकों के स्वामी होने की वजह से भगवान का शयनकाल संपूर्ण संसार का शयनकाल माना जाता है।
इन चार माहों के दौरान शादी-विवाह, उपनयन संस्कार व अन्य मंगल कार्य वर्जित बताए गए हैं। चार मास की अवधि के पश्चात देवोत्थान एकादशी को भगवान जागते हैं।
आषाढ़ी एकादशी पूजा विधि
एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। आषाढ़ी एकादशी या देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु का शयन प्रारंभ होने से पहले विधि-विधान से पूजन करने का बड़ा महत्व है। इस दिन श्रद्धालु व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।
: वे श्रद्धालु जो देवशयनी एकादशी का व्रत रखते हैं, उन्हें प्रात:काल उठकर स्नान करना चाहिए।
: पूजा स्थल को साफ करने के बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर विराजमान करके भगवान का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए।
: भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला चंदन चढ़ाएं। उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित करें।
: भगवान विष्णु को पान और सुपारी अर्पित करने के बाद धूप, दीप और पुष्प चढ़ाकर आरती उतारें और इस मंत्र द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति करें…
‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्।
विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।'
अर्थात हे जगन्नाथ जी! आपके निद्रित हो जाने पर संपूर्ण विश्व निद्रित हो जाता है और आपके जाग जाने पर संपूर्ण विश्व तथा चराचर भी जाग्रत हो जाते हैं।
: इस प्रकार भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन या फलाहार ग्रहण करें।
: देवशयनी एकादशी पर रात्रि में भगवान विष्णु का भजन व स्तुति करना चाहिए और स्वयं के सोने से पहले भगवान को शयन कराना चाहिए।
चातुर्मास में क्या करें, क्या ना करें…
1. मधुर स्वर के लिए गुड़ नहीं खायें।
2. दीर्घायु अथवा पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति के लिए तेल का त्याग करें।
3. वंश वृद्धि के लिए नियमित दूध का सेवन करें।
4. पलंग पर शयन ना करें।
5. शहद, मूली, परवल और बैंगन नहीं खायें।
6. किसी अन्य के द्वारा दिया गया दही-भात नहीं खायें।
आषाढ़ी एकादशी का पौराणिक महत्व
सतयुग में मान्धाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट राज्य करते थे। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुख और आनंद से रहती थी। एक समय राज्य में लगातार 3 वर्ष तक बारिश नहीं होने से भयंकर अकाल पड़ा। प्रजा व्याकुल हो गई और चारों ओर हाहाकार मच गया। प्रजा की दयनीय स्थिति देखकर राजा समाधान खोजने के लिए जंगल की ओर निकल पड़े।
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इस दौरान विचरण करते हुए राजा मान्धाता अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुंचे। राजा की बातें सुनकर अंगिरा ऋषि ने कहा कि, आप राज्य में जाकर देवशयनी एकादशी का व्रत रखो। इस व्रत के प्रभाव से राज्य में अवश्य ही वर्षा होगी। अंगिरा ऋषि की बात मानकर राजा मान्धाता राज्य में वापस लौट आए। राजा ने विधि विधान से देवशयनी एकादशी का व्रत किया, इसके प्रभाव से अच्छी वर्षा हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।
देवशयनी एकादशी 2020 : हरिशयनी एकादशी का महत्व,पूजा विधि व चातुर्मास में क्या करें, क्या ना करें जानिए ज्योतिषाचार्यडॉउमाशंकरमिश्रा*
ज्योतिषाचार्यआकांक्षाश्रीवास्तव से
इस एकादशी को आषाढ़ी एकादशी,देवशयनी एकादशी, हरिशयनी और पद्मनाभा एकादशी आदि नाम से भी जाना जाता है...
- ये है भगवान विष्णु का शयन काल,चातुर्मास प्रारंभ
एकादशी चंद्र मास में आने वाली ग्यारहवीं तिथि होती है। हर चंद्र मास में दो एकादशी होती हैं एक शुक्ल पक्ष की एकादशी और कृष्ण पक्ष की एकादशी। प्रदोष व त्रियोदशी तिथि जहां भगवान शिव को समर्पित मानी गई हैं, वहीं एकादशी व पूर्णमासी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित हैं।
आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को आषाढ़ी एकादशी कहते हैं। इसे देवशयनी एकादशी, हरिशयनी और पद्मनाभा एकादशी आदि नाम से भी जाना जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ी एकादशी जून या जुलाई के महीने में आती है।
इस वर्ष यानि 2020 में ये एकादशी 01 जुलाई, 2020 (बुधवार) को पड़ रही है।
ज्योतिषाचार्यडॉउमाशंकरमिश्रा*
ज्योतिषाचार्यआकांक्षाश्रीवास्तव के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक का चार माह का समय हरिशयन का काल समझा जाता है। वर्षा के इन चार माहों का संयुक्त नाम चातुर्मास दिया गया है।
इसके दौरान जितने भी पर्व, व्रत, उपवास, साधना, आराधना, जप-तप किए जाते हैं, उनका विशाल स्वरूप एक शब्द में 'चातुर्मास्य' कहलाता है। चातुर्मास से चार मास के समय का बोध होता है और चातुर्मास्य से इस समय के दौरान किए गए सभी व्रतों-पर्वों का समग्र बोध होता है।
भगवान विष्णु का शयन काल...
यह भगवान विष्णु का शयन काल होता है। पुराणों के अनुसार इस दिन से भगवान विष्णु चार मास के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं, इसलिए इसे हरिशयनी एकादशी कहा जाता है। इसी दिन से चातुर्मास प्रारंभ हो जाते हैं।
पुराणों में विशेष रूप से वर्णन...
पुराणों में इस चौमासे का विशेष रूप से वर्णन किया गया है। भागवत में इन चार माहों की तपस्या को एक यज्ञ की संज्ञा दी गई है। वराह पुराण में इस व्रत के बारे में कुछ खास बातें भी बताई गई हैं।
ऐसे समझें: इस व्रत को आषाढ़ शुक्ल एकादशी के स्थान पर द्वादशी (बारस) या आषाढ़ी पूर्णिमा से भी शुरू किया जा सकता है और चार माह पूर्ण करने के लिए इसका समापन उधर कार्तिक शुक्ल द्वादशी या कार्तिक पूर्णिमा तक किया जा सकता है।
आषाढ़ी एकादशी का महत्व और चातुर्मास ज्योतिषाचार्यडॉउमाशंकरमिश्रा*
ज्योतिषाचार्यआकांक्षाश्रीवास्तव के अनुसार आषाढ़ी एकादशी या देवशयनी एकादशी भगवान विष्णु का शयन काल होता है। इसी दिन से चौमासे का आरंभ माना जाता है। क्योंकि भगवान विष्णु चार मास के लिए निद्रा में रहते हैं इसलिए इस समय में विवाह समेत कई शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
इन दिनों में तपस्वी भ्रमण नहीं करते हैं, वे एक स्थान पर रहकर तपस्या करते हैं। इन दिनों में केवल ब्रज की यात्रा की जा सकती है। क्योंकि इन चार महीनों में पृथ्वी के समस्त तीर्थ ब्रज में आकर निवास करते हैं। आषाढ़ी एकादशी के चार माह बाद भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं, इस तिथि को प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी कहते हैं।
शास्त्रों व पुराणों में इन चार माहों के लिए कुछ विशिष्ट नियम बताए गए हैं। इसमें चार महीनों तक अपनी रुचि व अभीष्ठानुसार नित्य व्यवहार की वस्तुएं त्यागना पड़ती हैं। कई लोग खाने में अपने सबसे प्रिय व्यंजन का इन माहों में त्याग कर देते हैं। चूंकि यह विष्णु व्रत है, इसलिए चार माहों तक सोते-जागते, उठते-बैठते 'ॐ नमो नारायणाय' के जप करना चाहिए।
पुराणों के अनुसार चार माहों के लिए विष्णु भगवान क्षीरसागर में शयन के लिए चले जाते हैं। तीनों लोकों के स्वामी होने की वजह से भगवान का शयनकाल संपूर्ण संसार का शयनकाल माना जाता है।
इन चार माहों के दौरान शादी-विवाह, उपनयन संस्कार व अन्य मंगल कार्य वर्जित बताए गए हैं। चार मास की अवधि के पश्चात देवोत्थान एकादशी को भगवान जागते हैं।
आषाढ़ी एकादशी पूजा विधि
एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। आषाढ़ी एकादशी या देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु का शयन प्रारंभ होने से पहले विधि-विधान से पूजन करने का बड़ा महत्व है। इस दिन श्रद्धालु व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।
: वे श्रद्धालु जो देवशयनी एकादशी का व्रत रखते हैं, उन्हें प्रात:काल उठकर स्नान करना चाहिए।
: पूजा स्थल को साफl करने के बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर विराजमान करके भगवान का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए।
: भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला चंदन चढ़ाएं। उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित करें।
: भगवान विष्णु को पान और सुपारी अर्पित करने के बाद धूप, दीप और पुष्प चढ़ाकर आरती उतारें और इस मंत्र द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति करें…
‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्।
विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।'
अर्थात हे जगन्नाथ जी! आपके निद्रित हो जाने पर संपूर्ण विश्व निद्रित हो जाता है और आपके जाग जाने पर संपूर्ण विश्व तथा चराचर भी जाग्रत हो जाते हैं।
: इस प्रकार भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन या फलाहार ग्रहण करें।
: देवशयनी एकादशी पर रात्रि में भगवान विष्णु का भजन व स्तुति करना चाहिए और स्वयं के सोने से पहले भगवान को शयन कराना
चातुर्मास में क्या करें, क्या ना करें…
1. मधुर स्वर के लिए गुड़ नहीं खायें।
2. दीर्घायु अथवा पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति के लिए तेल का त्याग करें।
3. वंश वृद्धि के लिए नियमित दूध का सेवन करें।
4. पलंग पर शयन ना करें।
5. शहद, मूली, परवल और बैंगन नहीं खायें।
6. किसी अन्य के द्वारा दिया गया दही-भात नहीं खायें।
आषाढ़ी एकादशी का पौराणिक महत्व
सतयुग में मान्धाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट राज्य करते थे। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुख और आनंद से रहती थी। एक समय राज्य में लगातार 3 वर्ष तक बारिश नहीं होने से भयंकर अकाल पड़ा। प्रजा व्याकुल हो गई और चारों ओर हाहाकार मच गया। प्रजा की दयनीय स्थिति देखकर राजा समाधान खोजने के लिए जंगल की ओर निकल पड़े।
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इस दौरान विचरण करते हुए राजा मान्धाता अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुंचे। राजा की बातें सुनकर अंगिरा ऋषि ने कहा कि, आप राज्य में जाकर देवशयनी एकादशी का व्रत रखो। इस व्रत के प्रभाव से राज्य में अवश्य ही वर्षा होगी। अंगिरा ऋषि की बात मानकर राजा मान्धाता राज्य में वापस लौट आए। राजा ने विधि विधान से देवशयनी एकादशी का व्रत किया, इसके प्रभाव से अच्छी वर्षा हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।
पुराणों में आषाढ़ी एकादशी का विशेष महत्व मिलता है। मान्यता है कि, इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है और भगवान प्रसन्न होते हैं।
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