ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र 94150 87711 64 योगिनी चौंसठ योगिनियों के बारे में सुना होगा।
64 योगिनियों के भारत में चार प्रमुख मंदिर है। दो ओडिशा में तथा तीन मध्यप्रदेश में।उड़ीसा में भुवनेश्वर के निकट हीरापुर तथा बोलनगीर के निकट रानीपुर में हैं।मध्यप्रदेश में एक मुरैना जिले के थाना थाना रिठौराकलां में ग्राम पंचायत मितावली में है। इसे 'इकंतेश्वर महादेव मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। दूसरा मंदिर खजूराहो में स्थित है। 875-900 ई. के आसपास बना यह मंदिर खजुराहो के मंदिरों के पश्चिमी समूह में आता है। तीसरा जबलपुर के निकट भेड़ाघाट में हैं।
आपने अष्ट या चौंसठ योगिनियों के बारे में सुना होगा। कुछ लोग तो इनके बारे में जानते भी होंगे। दरअसल ये सभी आदिशक्ति मां काली का अवतार है। घोर नामक दैत्य के साथ युद्ध करते हुए माता ने ये अवतार लिए थे। यह भी माना जाता है कि ये सभी माता पर्वती की सखियां हैं। इन चौंसठ देवियों में से दस महाविद्याएं और सिद्ध विद्याओं की भी गणना की जाती है। ये सभी आद्या शक्ति काली के ही भिन्न-भिन्न अवतारी अंश हैं। कुछ लोग कहते हैं कि समस्त योगिनियों का संबंध मुख्यतः काली कुल से हैं और ये सभी तंत्र तथा योग विद्या से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती हैं।
ये मंदिर लम्बे वक्त से परित्यक्त हैं जिनके कारण आज भी रहस्य बने हुए हैं।
कहीं शिव जी तथा भगवान विष्णु के प्रति श्रद्धा बढऩे से इन मंदिरों में सहज रूप से अवनति तो नहीं आ गई थी? इसका कारण ब्रह्मचारी पुरुषों के वर्चस्व वाले वेदांतिक आश्रमों का दबाव तो नहीं था? कहीं ऐसा मुस्लिम आक्रमणकारियों की वजह से तो नहीं हुआ था? इनमें अफगान सेनापति काला पहाड़ भी एक था जिसने उड़ीसा पर हमला करके इसके अधिकतर स्मारकों को तबाह कर दिया था। असलियत न जाने क्या थी क्योंकि इन कारणों के बारे में हम कल्पना ही कर सकते हैं।
हालांकि, पुरातत्वविदों ने इन मंदिरों की खोज और जीर्णोद्धार गत एक सदी के दौरान ही किया।
इन मंदिरों के देवी-देवताओं के बारे में संस्कृत लेख अस्पष्ट हैं। इनमें नामों की कई सूचियां, अनुष्ठानों का जिक्र है लेकिन पौराणिक कथाएं नहीं हैं, केवल युद्ध पर निकलीं दुर्गा और काली मां की कहानियां हैं।
आमतौर पर हिन्दू मंदिर वर्गाकार होते हैं और इनका विन्यास रेखीय होता है। अधिकतर मंदिरों में ईश्वर का मुख पूर्व दिशा की ओर होता है। दूसरी ओर गोलाकार योगिनी मंदिरों में ईश्वर का मुंह हर दिशा की ओर होता है। हालांकि, कुएं जैसी इन संरचनाओं का प्रवेश द्वार पूर्व की ओर ही है। मंदिरों की आम पहचान गुम्बद या विमान इनमें नहीं हैं। वास्तव में इन मंदिरों की तो छत ही नहीं है। उड़ीसा के हीरापुर तथा रानीपुर के योगिनी मंदिरों की अंदरूनी दीवारों पर योगिनियों की प्रतिमाएं हैं, सभी का मुंह केंद्र में बने मंदिर की ओर है।
मध्यप्रदेश के भेड़ाघाट और मितावली मंदिरों में सभी योगिनियों के अलग-अलग मंदिर हैं जिनकी छतें तो हैं परंतु वे सभी गोलाकार प्रांगण की ओर खुलते हैं। योगिनियों की प्रतिमाएं हीरापुर, रानीपुर तथा जबलपुर के मंदिरों में अच्छी हालत में हैं। खजुराहो के मंदिर में केवल तीन प्रतिमाएं बची हैं जबकि मौरेना के मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है। कहीं उन्हें हटा कर शिवलिंगों से तो नहीं बदल दिया गया? शायद कोई नहीं जानता।
हीरापुर में योगिनी प्रतिमाओं में महिलाओं को विभिन्न दशाओं में प्रदर्शित किया गया है। कुछ नृत्य कर रही हैं, कुछ धनुष-बाण से शिकार कर रही हैं, कुछ संगीत वादन कर रही हैं, कुछ खून अथवा मदिरा पी रही हैं, कुछ हाथों में छानना लेकर घरेलू कामकाज कर रही हैं। अधिकतर ने खूब आभूषण पहने हैं और उनके केश भी सुंदर सज्जित हैं। अन्यों के सिर सर्प, भालू, शेर या हाथी के हैं जो इंसानी मस्तक, नर देहों, कौओं, मुर्गों, मोरों, बैलों, भैंसों, गधों, शूकरों, बिच्छुओं, केकड़ों, ऊंटों, कुत्तों, जल पर अथवा अग्नि के मध्य खड़ी हैं।
इनमें से कुछ पहचानी जा सकती हैं जैसे चामुंडा, वीणाधारी सरस्वती, कलश धारी लक्ष्मी और नरसिम्ही व वाराही जैसे विष्णु भगवान के स्त्री रूप के अलावा इंद्राणी। इतना तो स्पष्ट है कि योगिनियां जीवन से परिपूर्ण हैं। यदि योगी जीवन से दूर होते हैं तो योगिनी जीवन को अपनाती है। योगी अमरता की चाह रखता है तो योगिनी को मृत्यु से भय नहीं। यदि योगी इच्छाओं पर काबू पाना चाहता है तो योगिनी सभी इच्छाओं को आजाद करने में विश्वास रखती है।
चौंसठ ही क्यों?
अहम प्रश्न उठता है कि चौंसठ ही क्यों? इसके बारे में भी हम कल्पना ही कर सकते हैं। शायद यह उन चौंसठ कलाओं की ओर इशारा हो जिनमें अप्सराएं व प्राचीन काल की गणिकाएं पारंगत थीं। हो सकता है कि इनका अर्थ और भी गूढ़ हो और ये दिन के आठ प्रहरों को प्रदर्शित करते हों या भारत में इजाद किए गए शतरंज के खेल की आठ दिशाओं को।
इन सभी गोलाकार संरचनाओं के बीचों-बीच केंद्रीय मंदिर हैं। हीरापुर में केंद्रीय संरचना एक मंडप जैसी है जो आकाश की ओर खुली है। इसकी चार दीवारों पर चार भैरवों तथा चार योगिनियों की प्रतिमाएं हैं।
रानीपुर में केंद्रीय मंदिर में शिव के क्रोधी स्वरूप भैरव की तीन मस्तक वाली प्रतिमा है। मोरैना में लिंग बना है। भेड़ाघाट वाले मंदिर के केंद्र में असाधारण रूप से नंदी पर बैठे शिव-पार्वती की प्रतिमा है। कहीं इसे वहां बाद में तो नहीं रखा गया क्योंकि आमतौर पर शिव मंदिरों में शिव जी के सम्पूर्ण स्वरूप नहीं, उनके प्रतीकों (शिवलिंग) की ही पूजा की जाती है।
तांत्रिक परम्पराओं में जब समूह रूप में देवी प्रदर्शित होती हैं, चाहे पंक्ति में हों या गोलाकार, उनके साथ एक मर्द यानी भैरव को अक्सर उग्र रूप में दिखाया जाता है। एक रक्षक तथा प्रेमी के रूप में वह उनके साथ होते हैं। महिलाएं उन्हें गोल घेरे होती हैं।
क्यों? क्या दुनिया को त्याग देने वाले योगी पर स्त्रीत्व को स्वीकार करने का जोर डाला जा रहा है? कहीं यह प्रकृति का चित्रण तो नहीं है जहां प्रत्येक कोख पवित्र है और नरों में केवल प्रथम का महत्व होता है, अन्य सभी को उपभोग के बाद फैंका जा सकता है? हम ऐसी कोई भी कल्पना कर सकते हैं।
अगर आपको लगने लगा है कि भारत ने सच में योगिनियों को पूर्णत: भुला दिया तो जान लीजिए कि मितावली के गोलाकार योगिनी मंदिर ने उन अंग्रेज वास्तुविदों को खासा प्रभावित किया था जिन्होंने संसद भवन का निर्माण किया। संसद भवन गोलाकार है, इसमें गोलाकार प्रांगण है और एक केंद्रीय कक्ष (सैंट्रल हॉल) भी है। गौरतलब है कि संसद में आज ‘भैरवों’ की संख्या बहुत ज्यादा है, वहां भी शायद अब ज्यादा ‘योगिनियों’ की जरूरत है।
समस्त योगिनियां अलौकिक शक्तिओं से सम्पन्न हैं तथा इंद्रजाल, जादू, वशीकरण, मारण, स्तंभन इत्यादि कर्म इन्हीं की कृपा द्वारा ही सफल हो पाते हैं। प्रमुख रूप से आठ योगिनियां हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं:- 1.सुर-सुंदरी योगिनी, 2.मनोहरा योगिनी, 3. कनकवती योगिनी, 4.कामेश्वरी योगिनी, 5. रति सुंदरी योगिनी, 6. पद्मिनी योगिनी, 7. नतिनी योगिनी और 8. मधुमती योगिनी।
चौंसठ योगिनियों के नाम :- 1.बहुरूप, 3.तारा, 3.नर्मदा, 4.यमुना, 5.शांति, 6.वारुणी 7.क्षेमंकरी, 8.ऐन्द्री, 9.वाराही, 10.रणवीरा, 11.वानर-मुखी, 12.वैष्णवी, 13.कालरात्रि, 14.वैद्यरूपा, 15.चर्चिका, 16.बेतली, 17.छिन्नमस्तिका, 18.वृषवाहन, 19.ज्वाला कामिनी, 20.घटवार, 21.कराकाली, 22.सरस्वती, 23.बिरूपा, 24.कौवेरी, 25.भलुका, 26.नारसिंही, 27.बिरजा, 28.विकतांना, 29.महालक्ष्मी, 30.कौमारी, 31.महामाया, 32.रति, 33.करकरी, 34.सर्पश्या, 35.यक्षिणी, 36.विनायकी, 37.विंध्यवासिनी, 38. वीर कुमारी, 39. माहेश्वरी, 40.अम्बिका, 41.कामिनी, 42.घटाबरी, 43.स्तुती, 44.काली, 45.उमा, 46.नारायणी, 47.समुद्र, 48.ब्रह्मिनी, 49.ज्वाला मुखी, 50.आग्नेयी, 51.अदिति, 51.चन्द्रकान्ति, 53.वायुवेगा, 54.चामुण्डा, 55.मूरति, 56.गंगा, 57.धूमावती, 58.गांधार, 59.सर्व मंगला, 60.अजिता, 61.सूर्यपुत्री 62.वायु वीणा, 63.अघोर और 64. भद्रकाली।
ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा सिद्धिविनायक ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र विभव खंड 2 गोमती नगर एवं वेदराज कांप्लेक्स पुराना आरटीओ चौराहा लाटूश रोड लखनऊ 94150 87711 92357 22996
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