महाविद्या की दीक्षा
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साधनाओं की बात आते ही दस महाविद्या का नाम सबसे ऊपर आता है। क्योंकि वैदिकधर्म , तंत्रमार्ग , वाममार्ग , अघोरपंथ , नवधाभक्ति या योगमार्ग इन सबमे महाविद्या उपासना सर्वोत्तम है । जब वेद भी नही लिखे गए थे तब सप्त ऋषियों को दक्षिणामूर्ति महादेव द्वारा महाविद्या का ज्ञान प्राप्त हुवा था । महाविद्याओ की सिद्ध साधनाओ द्वाराही महान सनातन परंपरा की रचना हमारे उन गोत्र ऋषियो द्वारा स्थापित की गई थी । प्रत्येक महाविद्या का अपने आप में अलग ही महत्त्व है। लाखों में कोई एक ही ऐसा होता है जिसे सदगुरू से महाविद्या दीक्षा प्राप्त हो पाती है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद सिद्धियों के द्वार एक के बाद एक कर साधक के लिए खुलते चले जाते है।
महाविद्या की उपासना मुलह तो भगवती की कृपा प्राप्त करके शिव की प्रसन्नता प्राप्त करना और जीव का शिव बन जाना , शिवमे विलीन हो जाना ही मुख्य लक्ष्य होता है । सृष्टि के हरेक जीव को शिव प्राप्त करने का अधिकार है , इसलिए महाविद्या की दीक्षा हरकोई प्राप्त कर सकता है । ज्ञाति - जाती , उच्च - नीच , धर्म - विधर्म का कोई भेदभाव नही होता । बस महाविद्या उपासना केलिए स्वयं को लायक बनाना होता है । दश महाविद्या उपासना वो एक के बाद एक पड़ाव सिद्ध करते हुवे अंतिम चरण तक जानेकी प्रक्रिया है । ये कोई एक मंत्र की उपासना नही है । सदगुरु के मार्गदर्शन तले सालो तक विविध आवरण देवी देवताओं की उपासना करते हुवे आगे के चरणमे उपासना करवाई जाती है ।
हमे अनेक साधक ऐसे मिले जो कहते है उन्हें उनके गुरुने एक मंत्र दिया और इनको ही वो महाविद्या की दीक्षा समझते है , ये सरासर गलत है । वो सिर्फ एक मंत्र की दीक्षा है । महाविद्या की उपासना नही है । गुरु , गुरु परंपरा सहित तमाम आवरण देवी देवताओं की उपासना , यंत्र पूजा , याग होम करते हुवे उनके प्रमाण सह आगे का क्रम होता है । जो साधक निष्काम भावसे शिवकृपा प्राप्त करने हेतु जीवन पर्यंत साधना कर सके उन्हें महाविद्या की दीक्षा लेनी चाहिए । जो अपने गुरु की प्रसन्नता प्राप्त कर सके वो सफल होते है । गुरुआज्ञा का पालन , सद्गुरु की सेवा और गुरु ही शिवस्वरूप भाव हो तब सद्गुरु के आशीर्वचन प्रसन्नता प्राप्त होती है ।
दशमहाविद्याओं का सम्बन्ध भगवान् शिव की आद्या शक्ति भगवती पार्वती से है। उन्हीं की स्वरूपा शक्तियाँ काली, तारा,छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, वगलामुखी, मातंगी और कमला नाम से प्रसिद्ध दशमहाविद्याएँ हैं ।
प्रत्येक महाविद्या दीक्षा अपने आप में ही अद्वितीय है, साधक अपने पूर्व जन्म के संस्कारों से प्रेरित होकर या गुरुदेव से निर्देश प्राप्त कर इनमें से कोई भी दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं। प्रत्येक दीक्षा के महत्त्व का एक प्रतिशत भी वर्णन स्थानाभाव के कारण यहां नहीं हुआ है, वस्तुतः मात्र एक महाविद्या साधना सफल हो जाने पर ही साधक के लिए सिद्धियों का मार्ग खुल जाता है, और एक-एक करके सभी साधनों में सफल होता हुआ वह पूर्णता की ओर अग्रसर हो जाता है।
यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य है, कि दीक्षा कोई जादू नहीं है, कोई मदारी का खेल नहीं है, कि बटन दबाया और उधर कठपुतली का नाच शुरू हो गया।
दीक्षा तो एक संस्कार है, जिसके माध्यम से कुस्नास्कारों का क्षय होता है, अज्ञान, पाप और दारिद्र्य का नाश होता है, ज्ञान शक्ति व् सिद्धि प्राप्त होती है और मन में उमंग व् प्रसन्नता आ पाती है। दीक्षा के द्वारा साधक की पशुवृत्तियों का शमन होता है … और जब उसके चित्त में शुद्धता आ जाती है, उसके बाद ही इन दीक्षाओं के गुण प्रकट होने लगते हैं और साधक अपने अन्दर सिद्धियों का दर्शन कर आश्चर्य चकित रह जाता है।
जब कोई श्रद्धा भाव से दीक्षा प्राप्त करता है, तो गुरु को भी प्रसनता होती है, कि मैंने बीज को उपजाऊ भूमि में ही रोपा है। वास्तव में ही वे सौभाग्यशाली कहे जाते है, जिन्हें जीवन में योग्य गुरु द्वारा ऐसी दुर्लभ महाविद्या दीक्षाएं प्राप्त होती हैं, ऐसे साधकों से तो देवता भी इर्ष्या करते हैं।
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