#वास्तुशास्त्र पर विशेष आपकी समस्या का कारण आपके घर का वास्तुदोष हो सकता है jyotishacharya . Dr Umashankar mishr.- 9415087711--9235722996 घर का वास्तु दोष कुछ न कुछ समस्याएं उत्पन्न करता है। यदि कोई समस्या आपको बार-बार घेर लेती है तो संभव है कि आपके घर में कोई वास्तु दोष है। हर समस्या का संबंध किसी विशेष वास्तु दोष को दर्शाता है। समस्या द्वारा यह जाना जा सकता है कि आपके घर में कौन सा वास्तु दोष होने की संभावना है। यह समस्या आपकी जन्मपत्री में स्थित ग्रह व उनपर गोचर व आपकी दशा के बारे में भी इंगित करती है। यदि वास्तु या ज्योतिषीय उपाय कर दिये जाएं तो समस्या का निदान हो सकता है। आइए जानें कौन सी समस्या के पीछे कौन सा वास्तु या ज्योतिषीय दोष है और उसका क्या निदान है। मानसिक चिंता: आप किसी न किसी चिंता से ग्रस्त रहते हैं। एक समस्या के हल होने पर कोई दूसरी समस्या खड़ी हो जाती है। वास्तु दोष व उपाय: आपके घर की उत्तर-दिशा कटी है। वहां पर पिलर या कोई भारी वस्तु है। वहां पर शीशा लगाएं ताकि उत्तर-पूर्व दिशा अर्थात् ईशान कोण बढ़ा हुआ लगे। यदि उत्तर-पूर्व की जमीन का भाग कटा हुआ है तो पिरामिड का उपयोग इस प्रकार से करें कि या तो उत्तर-पूर्व का भाग पूरा हो जाए या पिरामिड अथवा काॅपर वायर के द्वारा उत्तर -पूर्व दिशा का जमीन के शेष भाग से विभाजन दिखाया जाए। ज्योतिषीय कारण व निवारण: यदि आपकी कुंडली में लग्न, चतुर्थ, पंचम भाव व चंद्रमा क्रूर शनि या राहु के साथ है या पापकर्तरी योग से पीड़ित है तो ऊँ नमः शिवाय मंत्र का रूद्राक्ष की माला पर नित्यप्रति जप करने से समाधान हो जाता है। धन की बरकत न होना: आपके यहां धन की बरकत नहीं है या पैसा आने पर तुरंत ही खर्च हो जाता है या पैसा आने में बाधाएं आती हैं या अनायास ही धन हानि हो जाती है, आप ऋणग्रस्त रहते हंै आमदनी अधिक नहीं हो पाती है। 9415087711 वास्तुदोष व उपाय: 1. आपके घर के ईशान कोण में टाॅयलेट या कोई अन्य गंदगी है अथवा नैर्ऋत्य कोण में कोई गड्ढा है या इस क्षेत्र का लेवल नीचा है। 2. घर की ढलान उत्तर-पूर्व से ऊंची है व दक्षिण-पश्चिम की ओर नीची है। टाॅयलेट में एक नमक का कटोरा या पैकेट रख लें और हर महीने उसे बदलें। 3. यदि ईशान में गंदगी हो तो उसे हटा दें। 4. नैर्ऋत्य में यदि ढलान हो तो वहां पिरामिड लगाएं । 5. गड्ढा हो तो उसे भर दें। 6. घर की सीढ़ियां अगर वामवर्ती हैं तो उन्हें ठीक कर दें। 7. ज्योतिषीय कारण व निवारण: कुंडली में गुरु नीच राशिस्थ अथवा दुर्बल है अथवा लग्न व चंद्रमा से छठे, आठवें या 12वें भाव में स्थित है या द्वादश भाव में स्थित ग्रह की दशा/अन्तर्दशा चल रही हो अथवा गोचर में ग्रह 12वें भाव में जा रहे हों तो निवारण के लिए 12वें भाव में स्थित ग्रहों का दान करें। पत्नी रोगी आपकी पत्नी हमेशा रूग्ण रहती है और व्यर्थ का चिड़चिड़ापन रहता है। वास्तु दोष व उपाय: रसोई आग्नेय कोण में होने की अपेक्षा पूर्व या ईशान में बनी है। चूल्हा रसोई के प्रवेश द्वार के ठीक सामने है। खाना बनाने वाले का मुंह खाना बनाते समय पश्चिम दिशा की तरफ रहता है। यदि रसोई पूर्व या उत्तर-पूर्व में चली गई है तो चूल्हा रसोई के आग्नेय कोण में रखें व खाना बनाते समय खाना बनाने वाला मुंह पूर्व की तरफ रखे। घर का प्रवेश द्वार दक्षिण-पश्चिम में होने से भी रोग की समस्या बनी रहती है। इसे बंद करके उपयुक्त दिशा में प्रवेश द्वार बनाएं। ज्योतिषीय कारण व निवारण: शुक्र, सप्तम भाव व सप्तमेश के पीड़ित होने से पत्नी रूग्ण रहती है। निवारणार्थ महामृत्यंुजय का पाठ व रुद्राभिषेक करें। नित्यप्रति दुर्गापूजा करें। संतान संबंधी समस्या: आपकी संतान कहना नहीं मानती नियंत्रण से बाहर है, संतान प्राप्ति में बाधा है, बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता। वास्तुदोष व उपाय: घर में उत्तर व उत्तर-पूर्व का भाग बंद है, रोशनी कम है, सामने गड्ढा है तथा इस भाग में टाॅयलेट, सीढ़ियां, लिफ्ट अथवा ओवरहैड टैंक बना है, दक्षिण-पश्चिम भाग बढ़ा हुआ है या बच्चा घर के दक्षिण-पश्चिम दिशा में सोता है। उत्तर व उत्तर-पूर्व से टाॅयलेट, सीढ़ियां, लिफ्ट अथवा ओवरहैड टैंक हटाना संभव न हो तो पिरामिड द्वारा उपाय करें। रोशनी की व्यवस्था करें। गंदगी हटाएं। गड्ढे को भर दें। ईशान कोण में शिव की मूर्ति या शिवलिंग स्थापित करें। वहां पीला बल्ब जलता रहे। दक्षिण-पश्चिम भाग बढ़ा हो तो काॅपर वायर या पिरामिड से उसे शेष भाग से अलग कर दें। बच्चों को पूर्व दिशा के कमरे में सुलाएं। ज्योतिषीय कारण व निवारण: कुंडली में सूर्य व पंचम भाव कारक गुरु की खराब स्थिति से भी संतान संबंधी समस्याएं होती हैं। पुखराज धारण करें, सात्विक भोजन करें। निम्नांकित मंत्र की एक माला नित्यप्रति जपें- ऊं ह्रीं घृणि सूर्य आदित्य श्रीं ।। स्वयं का घर न होना: किराए के घर में रहते हैं। अपना घर नहीं है। वास्तु दोष व उपाय: घर पश्चिममुखी हो अथवा पश्चिम या आग्नेय कोण में कोई दोष है। किराये का पश्चिममुखी मकान न लें। पश्चिम दिशा व आग्नेय कोण के दोष दूर करें। ज्योतिषीय कारण एवं निवारण: आपकी कुंडली में चतुर्थ भाव, चतुर्थेश व शनि कमजोर है। प्रतिदिन शनि के निम्नांकित मंत्र का 108 बार जप करें - ऊँ शं शनैश्चराय नमः।। मुकद्दमेबाजी आपके ऊपर कोर्ट केस चलते रहते हैं। वास्तुदोष व उपाय: घर के पूर्व दिशा में दोष है, पूर्व दिशा कटी है, वहां टाॅयलेट है अथवा बंद है। पूर्व में खंभा, पेड़, ट्रांसफाॅर्मर, मंदिर, श्मशान घाट अथवा अन्य सार्वजनिक स्थल है। पश्चिम दिशा बढ़ी हो या वीथिशूल हो तो भी कोर्ट केस चलते रहते हैं। पूर्व, पश्चिम व दक्षिण दिशा के दोष दूर करें व घर में वास्तुदोष निवारण यंत्र व काली यंत्र स्थापित करें। ज्योतिषीय कारण व निवारण: लग्नेश व सूर्य, मंगल व शनि के अशुभ भाव में स्थित होने व पीड़ित होने से भी यह दोष होता है। उपाय के रूप में बगलामुखी मंत्र का नित्यप्रति जप करें। शत्रु भय: शत्रु हावी रहते हैं। भय रहता है। वास्तुदोष व उपाय: घर के दक्षिण दिशा में वास्तुदोष है। उन्हें सुधारने हेतु हनुमान यंत्र स्थापित करें। ज्योतिषीय कारण व निवारण: लग्न व पराक्रम भाव के स्वामी कमजोर हैं। हनुमान चालीसा का नित्यप्रति पाठ करें। - स्वास्थ्य संबंधी समस्या: घर में किसी न किसी को हमेशा ही स्वास्थ्य संबंधी समस्या बनी रहती है। आपको प्रायः नजर लगती है। हाॅस्पिटल के खर्चे बढ़े रहते हैं। वास्तुदोष व उपाय: आपके घर की पूर्व दिशा में वास्तु दोष है। घर के अंदर सूर्य की रोशनी आने व हवा प्रवाह में बाधा है, पूर्व दिशा का हिस्सा खुला रखने का प्रयास करें तथा सूर्य की रोशनी के आने की बाधाओं को हटायें। घर का प्रवेश द्वार दक्षिण-पश्चिम दिशा में न हो या वहां ढलान, गड्ढा या टाॅयलेट होने जैसे वास्तु दोषों का सुधार करने से रोग व नज़रदोष का निदान हो जायेगा। ज्योतिषीय कारण व निवारण: कुंडली में सूर्य नीच राशिस्थ अथवा दुर्बल है तथा चंद्रमा छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है अथवा राहु से युक्त व दृष्ट है। लग्न, चंद्रमा व शुक्र पर राहु का प्रभाव है। दुर्गापूजा करें सूर्य व शिवलिंग को नित्य जल दें तथा ‘ऊं नमः शिवाय या महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। - विवाह बाधा: आपके घर में कोई अविवाहित है। वास्तुदोष व उपाय: घर के ईशान व आग्नेय कोण के वास्तुदोषों को दूर करें। कन्या अविवाहित है तो उत्तर-पश्चिम में और यदि लड़का अविवाहित है तो वह उत्तर-पूर्व में सोये। ज्योतिषीय कारण व निवारण: आपकी कुंडली में गुरु व शुक्र दोनों शुभ ग्रहों की स्थिति अशुभ है। निवारण के लिए गुरुवार का व्रत करें। घर में सफाई, पवित्रता व शुद्धि का ध्यान रखें। सात्विक आहार करें। मांस मदिरा का सेवन न करें तथा नित्यप्रति श्रीसूक्त व लक्ष्मी सूक्त का पाठ करें। घर में कलह रहना: घर में कलह रहती है। वास्तुदोष व उपाय: ब्रह्म स्थान या आग्नेय कोण में वास्तु दोष हैं। ब्रह्म स्थान से भारी वस्तु, आग्नेय कोण से पानी की टंकी व ईशान कोण से इलेक्ट्रिक मीटर व रसोई हटाएं। ज्योतिषीय कारण व निवारण: कुंडली में पीड़ित सूर्य व शुक्र का उपाय करें। प्रातः जल्दी उठकर सूर्य को अघ्र्य दें। प्रत्येक शुक्रवार कन्या पूजन करें व व्रत के दिन खट्टा न खाएं। - नौकर संबंधी समस्या: आपके घर में नौकर नहीं टिकते और आप हमेशा नौकरों से परेशान रहते हैं। वास्तुदोष व उपाय: घर के पश्चिम दिशा में वीथिशूल है, पश्चिम दिशा बढ़ी हुई है, घर-पश्चिममुखी है या वहां कोई गड्ढा है। वास्तु दोष को ठीक करें व शनि यंत्र स्थापित करें। ज्योतिषीय कारण व निवारण: आपकी कुंडली में शनि नीच अथवा पीड़ित है। शनि मंत्र का जप करें तथा शनिवार को गुड़ चने का प्रसाद सहित कुछ धन राशि नौकरों को उपहार स्वरूप दें। उपरोक्त समस्याएं कई बार वास्तु दोष के कारण न होकर केवल जन्मकुंडली में विशेष दशा या गोचर के कारण भी हो सकती हैं। अतः यह जान लेना भी आवश्यक है कि कहीं यह समस्या वास्तु दोष के कारण न होकर कुंडली के कारण तो नहीं है। स्त्री रोगों का ज्योतिष एवं वास्तु द्वारा आकलन स्त्रियों के रोग, सूर्य आदि ग्रहों के साथ, चंद्रमा से अधिक प्रभावित होते हैं। मासिक धर्म, ल्यूकोरिया, मानसिक चिंताएं, बेचैनी, रक्तचाप आदि रोग स्त्रियों की कुंडली में चंद्रमा की पाप ग्रहों के साथ उपस्थिति, अथवा दृष्टि संबंध की ही उपज हैं। अतः ग्रहों की स्थिति का अध्ययन कर रोगों का उपचार किया जाए, तो अच्छी सफलता मिल सकती है और निरोगी समाज की स्थापना हो सकती है। स्त्रियां स्वभाव से ही भावुक होती हैं तथा उन पर परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ अधिक होता है। पुरुषप्रधान समाज में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को आराम और मनोरंजन का समय कम ही मिलता है, जिसका प्रभाव उनकी मनः स्थिति पर प्रतिकूल होता है। चंद्रमा ही मन और विचारों का प्रतिनिधित्व करता है। कुछ ग्रहों की सामान्य स्थिति का उल्लेख निम्नानुसार है, जो रोग उत्पन्न करते हैं: 1- जन्मकुंडली में पाप ग्रह शनि, राहु, मंगल, केतु चंद्रमा के साथ स्थित हों, तो स्त्रियों को मासिक धर्म में कष्ट पहुंचाते हैं तथा उन्हें क्रोधित, झंझलाहटपूर्ण, चिंताग्रस्त बनाते हैं। 2- चंद्रमा पर पाप ग्रह की दृष्टि, या मंगल पर शनि की दृष्टि रक्त विकार, रक्तचाप पैदा करती हैं। 3- स्त्री की कुंडली में पंचम भाव पर सूर्य, केतु, राहु, शनि, मंगल आदि ग्रहों की दृष्टि हो और कोई शुभ ग्रह पंचम भाव को नही देखता हो, तो गर्भपात की शिकायत होती है। जितने पाप ग्रह पंचम भाव पर दृष्टि रखते हैं, उतने ही गर्भपात होंगे। 4- अष्टम भाव में मेष, कर्क, वृश्चिक में स्थित शनि, मंगल, राहु, केतु चोट, दुर्घटना के योग पैदा करते हैं और स्त्रियों की कुंडली में अत्यधिक रक्तस्राव संबंधी रोग देते हैं। 6- स्त्रियों की कुंडली में द्वादश भाव स्थित किसी भी राशि का चंद्रमा अनावश्यक शंकाएं पैदा करता है और, चिंतित रखता है। 7- स्त्रियों की जन्मकुंडली में छठे भाव में स्थित चंद्रमा उन्हें परिवार की सेविका बनाता है। ऐसी स्त्रियां परिवार के वृद्धजनों की अच्छी सेवा करती हैं, किंतु स्वयं चिंतित रहती हैं। \ 8- स्त्रियों की जन्मकुंडली में सप्तम भाव में जितने पाप ग्रह स्थित होंगे, अथवा सप्तम भाव पर जितने पाप ग्रह दृष्टि डालेंगे, दांपत्य जीवन उतना ही कष्टकर तथा उदासीन होगा और वे निश्चित ही विभिन्न रोगकारक होंगे। ज्योतिष शास्त्र में अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए मंत्र, यंत्र, रत्न, औषधि उपचार की व्यवस्था प्रस्तुत की गयी है। आयुर्वेद के अनुसार विभिन्न जड़ी-बूटियों को जंगल से, विशेष नक्षत्र में, विशेष मूहुर्त और दिन को, मंत्र पढ़ कर लाया जाता है तथा उसकी औषधि का प्रयोग रोगी पर किया जाता है, तो उसके चमत्कारिक प्रभाव नज़र आते हैं। विभिन्न प्रकार के रत्नों की भस्म का उपयोग भी आयुर्वेद में किया जाता है और बाल्य अरिष्ठ में ग्रह योगों की विवेचना की जाती है। अनेक बार यह देखा गया है कि चिकित्सकों द्वारा बीमारी का सर्वोत्तम उपचार करने के पश्चात भी बीमारी से मुक्ति नहीं मिलती। इसके लिए चिकित्सक दोषी नहीं हो सकते। व्यक्ति के अपने पाप ग्रहों का पूर्व संचित कर्म है, जो बंधन से मुक्त नहीं होने देता। इसके लिए श्रेष्ठ होगा कि व्यक्ति की जन्मकुंडली से ग्रह स्थिति का सूक्ष्म अध्ययन कर मंत्र और रत्न का उपचार किया जावे तथा अच्छे वैद्य से औषधि ली जावे, तो चमत्कारी परिणाम मिल सकते हैं। आज के भौतिक युग में अर्थ संग्रह की दौड़ के कारण अच्छे ज्योतिषियों और वास्तुविदों का अभाव है। फलस्वरूप मकानों/आवासों का निर्माण वास्तु शास्त्र के अनुरूप न होने से अनेक व्याधियां उत्पन्न होती हैं, जिनकी जानकारी जन सामान्य को नहीं होती। क्योंकि स्त्रियां अधिक समय घर में ही व्यतीत करती हैं, इस कारण वे ही सबसे अधिक प्रभावित होती हैं। उपचार 1. कुडली में चंद्रमा की स्थिति कमजोर होने से पांच से सात रत्ती का मोती दाये हाथ की अनामिका, अथवा कनिष्ठा अंगुली में सोमवार को शुभ चैघड़िये में धारण करें। 2. कुंडली में चंद्रमा कमजोर हो, तो शयन कक्ष में शैया के नीचे चांदी के पात्र में घुटी हुई केशर सहित जल भर कर रखना चाहिए। इससे परिवार के असाध्य रोगी ठीक होते हैं। 3. यदि दांपत्य जीवन में कुंठा और तनाव हो, तो गृहस्थ को अपने कक्ष में शुद्ध गाय के घी का दीपक प्रज्ज्वलित करना चाहिए। 4. यदि कोई स्त्री सूर्य ग्रह से पीड़ित है, तो लाल चंदन का टुकड़ा तकिये के नीचे हमेशा रखना चाहिए। 5. अपने शयन कक्ष में अंगीठी, चिमटा, कड़ाही, तवा, छलनी, छांजला, मूसल, इमाम दस्ता आदि नहीं रखने चाहिएं। 6. घर के अंदर कंटीले और दूध झरने वाले पेड़, जैसे कैक्टस के पौधे, कांटों का गुलदस्ता, बरगद, रबर का पेड़ आदि नहीं रखने चाहिएं। कंटीले पौधे गृहस्थ जीवन में कांटे ही पैदा करते हैं। ​7. घर में रसोई आग्नेय कोण (पूर्व-दक्षिण कोना) में होनी चाहिए और खाना बनाने वाली स्त्री का मुख पूर्व दिशा में होना चाहिए। 8. पूजा गृह ईशान कोण (उत्तर-पूर्व का कोना) में होना चाहिए। इससे परिवार में शांति रहती है और स्वामी की ख्याति बढ़ती है। 9. शौचालय ईशान में कदापि न हो, वर्ना परिवार में रोगियों की संख्या अधिक होगी तथा हमेशा अशांति बनी रहेगी। 10. यदि परिवार में स्त्रियों के घुटनों में दर्द हो, तो निश्चित ही पानी की टंकी की दिशा गलत होगी। पानी की टंकी भूतल में उत्तर में और भवन के ऊपरी भाग में दक्षिण-पश्चिम की ओर होनी चाहिए। 11. शयन कक्ष में मादक द्रव्य न रखे जावें और न सेवन किये जावें। 12. सोते समय व्यक्ति का सिर दक्षिण दिशा, अथवा पूर्व दिशा में ही होना चाहिए, अन्यथा कई रोग हो सकते हैं। 13. सोते समय पांव की तरफ दरवाजा नहीं होना चाहिए। 14. मकान का मुख्य द्वार भूखंड के किसी भी कोने को काट कर तिरछा नहीं बनाना चाहिए। इससे परिवार के सदस्यों के लिए दुर्घटना होने के योग रहते हैं। उपर्युक्त सामान्य सावधानियांे से निरोगी रहा जा सकता है। अन्य गंभीर रोगों को दूर करने के लिए श्रेष्ठ चिकित्सक एवं ज्योतिषी से परामर्श कर के ही औषधि तथा रत्न धारण करे