अस्त ग्रहों का फल और निवारण
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Jyotishacharya. Dr Umashankar mishr 9415 087711 923572 2996
दोस्तो नमस्कार,
आज हम बात करेंगे अस्त ग्रह के बारे में अस्त ग्रह हमें आखिर क्या फल देते हैं?
कोई भी ग्रह जब अस्त होता है जब उसकी पावर न्यून हो जाती है और कुण्डली के जिस भाव में अस्त ग्रह बैठा होता उससे सम्बन्धित फल में कमी आती है।
आईये जानते है सूर्य के कितना समीप आने पर कौन सा ग्रह अस्त होता है एंव उसका मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है..
चन्द्रमा जब सूर्य से 12 अंश या इससे अधिक समीप आता है तो अस्त हो जाता है।
गुरू जब सूर्य से 11 अंश या इससे अधिक समीप पर आने पर स्वतः अस्त हो जाता है।
सूर्य से 13 अंश या इससे अधिक समीप आने पर बुध ग्रह अस्त हो जाता है।
किन्तु यदि बुध वक्री है तो वह सूर्य से 11 अंश के आस-पास आने पर अस्त हो जाता है।
सूर्य से 09 अंश या इससे अधिक समीप आने पर शुक्र ग्रह अस्त हो जाता है।
यदि शुक्र वक्री चल रहा है तो वह सूर्य से 7 अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जायेगी।
सूर्य से 15 अंश या इससे अधिक समीप आने पर शनि ग्रह अस्त हो जाता है।
सूर्य से 7 अंश या इससे अधिक समीप आने पर मंगल ग्रह अस्त हो जाता है।
राहु-केतु छाया ग्रह होने के कारण कभी भी अस्त नहीं होते है।
वैसे मेरे विचार से किसी ग्रह को अस्त तभी माना जाना चाहिए जब कोई ग्रह सूर्य से 3 अंश या इससे कम अंश की दूरी पर हो।
* चन्द्र ग्रह-जब किसी व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्रमा अस्त हो जाता है तो उसके जीवन में अशान्ति बनी रहती है। मॉ रिश्ते अच्छे नहीं रहते है, माता का स्वास्थ खराब रहता है। यदि अस्त चन्द्र अष्टम भाव या अष्टमेश के साथ हो तो व्यक्ति काफी समय तक अवसाद ग्रस्त रहता है। चन्द्रमा के अस्त होने पर विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होते है जैसे-एनीमिया, फेफड़ों के रोग, मानसिक तनाव व अस्थमा आदि।
* मंगल ग्रह-कुण्डली में मंगल के अस्त होने पर पराक्रम व साहस में कमी, क्रोध में वृद्धि, भाईयों से तनाव, भूमि व प्रापर्टी में विवाद, नसों में दर्द, दुर्घटना, मुकदमें बाजी, पत्नी को शारीरिक कष्ट व फोर्स से जुड़े लोगों को विशेष कष्टों को सामना करना पड़ता है। यदि मंगल षष्ठेश होकर पापी ग्रहों से दृष्ट है तो दुर्घटना व रोग की ज्यादा सम्भावना रहती है। अगर मंगल द्वादशेश होकर अस्त है तो व्यक्ति नशीले पदार्थो का सेंवन करने लग जाता है।
* बुध ग्रह-बुध ग्रह अस्त होने से व्यक्ति में विश्वास की कमी, शरीर में ऐंठन, श्वास, चर्म रोग व गले आदि के रोग हो जाते है। जब बुध अस्त होता है तो युवाओं का दिमाग भ्रमित हो जाता है, उनका किसी काम में मन नहीं लगता है। बुध जब द्वादशेश के साथ सम्बन्ध बनाता है तो युवा नशे का आदी होकर अपना अधिकांश धन नशेबाजी में खर्च कर देता है।
* बृहस्पति ग्रह-यदि आपकी कुण्डली में बृहस्पति की अन्तर्दशा चल रही है और बृहस्पति आपकी पत्री में अस्त होकर बैठा है तो विभिन्न प्रकार की समस्यायें उत्पन्न हो सकती है जैसे-लीवर का रोग, बच्चों का पढ़ाई में मन न लगना, टाइफाइड ज्वर, मधमेह, गुरू से विरोध, साइनस की समस्या, मुकदमों में फॅसना आदि। गुरू के अस्त होने से सन्तान उत्पन्न में बाधा आती है, बुर्जुगों को कष्ट होगा, शिक्षा में रूकावटें आयेंगी व ईश्वर के प्रति श्रद्धा में कमी आयेगी।
* शुक्र ग्रह-किसी भी कुण्डली में जब शुक्र ग्रह अस्त होता है तो स्त्रियों को गर्भाशय के रोग, नेत्र रोग, किडनी रोग, गुप्त रोग हावी रहते है। अस्त शुक्र जब राहु-केतु के प्रभाव में आता है तब जातक के मान-सम्मान में कमी आ जाती है। किसी के कारण कुछ लोगों को अपमान भी सहना पड़ सकता है। अस्त शुक्र षष्ठेश के साथ होता है तो किडनी, मू़त्राशय व यौनांगों के विकार उत्पन्न हो जाते है। शुक्र के अस्त होने पर विवाह में बाधायें भी आती है।
* शनि ग्रह-जब किसी की पत्री में शनि ग्रह अस्त होकर बैठा होता है तो कमर दर्द, पैरांे में दर्द, स्नायु तन्त्र के रोग आदि होते है। अस्त शनि अगर षष्ठेश के साथ संग्रस्त है तो बैकबोन की समस्या आने की अधिक सम्भावना रहती है। रोजागर में बाधायें, नौकरी में बॉस से तनाव, सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी, नशीले पदार्थो का आदी होना आदि समस्यायें शनि के अस्त होने पर ही उत्पन्न होती है।
इसके अतिरिक्त राहु केतु कभी अस्त नहीं होते क्योंकि वो दोनों छाया ग्रह हैं।
अस्त ग्रहों के उपाय-
अस्त ग्रह यदि शुभ हों या शुभ भावों के स्वामी हों तो ऐसे में उन्हें पावर देनी चाहिए, इसके लिए उनका पूजन हवन करवाना अच्छा रहता है इसके सिवा अस्त ग्रह का जप करना भी अच्छा रहता है। यदि योगकारक या लग्नेश अस्त हो तो कुंडली दिखाकर रत्न पहना भी शुभ रहता है जिससे उन्हें बल मिलता है।
यदि कुंडली में कोई ग्रह मारक, बाधक और अशुभ होकर अस्त हो तो उसके उपाय भूलकर भी न करें या उसे बल नहीं देना चाहिए अन्यथा वह अशुभ फलों में वृद्धि ही करेगा। यदि ऐसा ग्रह परेशान कर रहा हो तो फिर उसका जप करवाना ही बेहतर रहता है।
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