निर्जला एकादशी व्रत कल अर्थात 2 जून को रखा जाएगा। हर साल यह व्रत ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति सच्ची श्रद्धा के साथ यह व्रत करता है उसे समस्त एकादशी व्रत से मिलने वाले पुण्यफल के समान ही फल मिलता है। शास्त्रों में निर्जला एकादशी को लेकर यह वर्णन मिलता है कि इस व्रत का महत्व महर्षि वेदव्यास जी ने भीम को बताया था। अतः इसे भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।  ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र 94150 87711 92357 22996 इस व्रत को करने से व्यक्ति को समस्त प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। उसके सभी प्रकार के पाप धुल जाते हैं। यह व्रत निर्जल रखा जाता है यानि व्रती को बिना पानी का सेवन किए रहना होता है। ज्येष्ठ माह में बिना पानी के रहना बहुत बड़ी बात होती है। इस कारण यह व्रत काफी कठिन माना जाता है। यह व्रत एकादशी तिथि के दिन सूर्योदय से लेकर द्वादशी के दिन व्रत पारण मुहूर्त तक रखा जाता है। आइए जानते हैं निर्जला एकादशी की व्रत विधि। निर्जला एकादशी व्रत विधि निर्जला एकादशी व्रत को करने वाले व्यक्ति को दशमी तिथि की शाम से ही इसकी तैयारी करनी चाहिए। इस दिन व्रत में प्रयोग होने वाली सामग्री को एकत्रित कर लें। इसके बाद दशमी तिथि की शाम को सात्विक भोजन करके सो जाएं। एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें और शौचादि से निवृत्त होकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें। घर के मंदिर में साफ-सफाई करें। भगवान विष्णु जी की प्रतिमा को गंगा जल से नहलाएं। अब दीपक जलाकर उनका स्मरण करें।  भगवान विष्णु की पूजा में उनकी स्तुति करें। पूजा में तुलसी के पत्तों का भी प्रयोग करें। पूजा के अंत में विष्णु आरती करें। शाम को भी भगवान विष्णु जी के समक्ष दीपक जलाकर उनकी आराधना करें। इस समय विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।  अगले दिन यानि द्वादशी के समय शुद्ध होकर व्रत पारण मुहूर्त के समय व्रत खोलें। सबसे पहले भगवान विष्णु जी को भोग लगाएं। भोग में अपनी इच्छानुसार कुछ मीठा भी शामिल करें। लोगों में प्रसाद बांटें और ब्राह्मणों को भोजन कर कराकर उन्हें दान-दक्षिणा दें। ध्यान रहे, व्रत खोलने के बाद ही आपको जल का सेवन करना है।