कल अर्थात 2 जून दिन मंगलवार निर्जला एकादशी, जानें इस एकादशी के नियम *ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा 94150 87711 92357 22996 गंगा दशहरा के बाद होने वाली एकादशी... हिन्दू धर्म में एकादशी को सबसे महत्वपूर्ण बताया जाता है। वहीं ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं, जो आज गंगा दशहरा के बाद होने वाली अर्थात कल एकादशी है। इस बार यह कल दिन मंगलवार यानि 02 जून 2020 को मनाई जाएगी। इसे सबसे महत्वपूर्ण एकादशी माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत करने से सभी बाधाएं दूर होती हैं। माना जाता है कि साल भर की सभी एकादशियों का फल केवल एक दिन के इस एकादशी व्रत को करने से मिलता है। ऐसी भी मान्यता है कि इसे महाभारत काल में पांडु पुत्र भीम ने किया था। इसलिए इसे भीम एकादशी भी कहते हैं। निर्जला एकादशी 2020 व्रत call arthat 2 जून ko है : निर्जला एकादशी व्रत कल अर्थात 2 जून को पड़ रही है। इस व्रत को हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। हिन्‍दू पंचांग के अनुसार एक साल में कुल 24 एकादशियां पड़ती हैं, जबकि अधिकमास होने पर इनकी संख्या 26 तक पहुंच जाती है। सभी एकादशियों में भगवान विष्‍णु की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है लेकिन निर्जला एकादशी करने से सभी एकादशियों का फल साधक को मिलता है। निर्जला एकादशी की पूजा विधि - 1. व्रत के दिन तड़के उठकर स्नान करें 2. स्नान के बाद भगवान विष्णु के सामने व्रत का संकल्प करें। 3. भगवान विष्णु को पीला रंग प्रिय है। ऐसे में उन्हें पीले फल, पीले फूल, पीले पकवान आदि का भोग लगाएं। 4. दीप जलाएं और आरती करें। 5. आप इस दौरान- 'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का भी जाप करें। 6. किसी गौशाला में धन या फिर प्याऊ में मटकी आदि या पानी का दान करें। 7. शाम को तुलसी के पास दीपक जलाएं और उनकी भी पूजा करें। 8. व्रत के बाद अगले दिन सुबह उठकर और स्नान करने के बाद एक बार फिर भगवान विष्णु की पूजा करें। 9. साथ ही गरीब, जरूरतमंद या फिर ब्राह्मणों को भोजन कराएं। 10. इसके बाद ही खुद भोजन ग्रहण करें। निर्जला एकदशी का महत्‍व - साल में पड़ने वाली सभी एकादशियों में निर्जला एकादशी का सबसे अधिक महत्व है। इसे पवित्र एकादशी माना जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से सालभर की समस्त एकादशियों के व्रत का फल मिल जाता है, इस वजह से इस एकादशी का व्रत बहुत महत्व रखता है। निर्जला एकादशी व्रत के दौरान इन बातों का रखें ध्यान निर्जला एकादशी व्रत करने वालों को साफ-सफाई और शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए आपको एक दिन पहले से ही तैयारी शुरू करनी चाहिए। एक दिन पहले से ही आप सात्विक भोजन करें और ब्रह्मचर्य का भी पालन अनिवार्य रूप से करें। निर्जला एकदशी के नियम - : दशमी के दिन मांस, लहसुन, प्याज, मसूर की दाल आदि निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। : रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए। : एकादशी के दिन प्रात: लकड़ी का दातुन न करें, नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और अंगुली से कंठ साफ कर लें, वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी ‍वर्जित है। अत: स्वयं गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें। : यदि यह संभव न हो तो पानी से बारह बार कुल्ले कर लें। फिर स्नानादि कर मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पुरोहितजी से गीता पाठ का श्रवण करें। : फिर प्रभु के सामने इस प्रकार प्रण करना चाहिए कि 'आज मैं चोर, पाखंडी़ और दुराचारी मनुष्यों से बात नहीं करूंगा और न ही किसी का दिल दुखाऊंगा। रात्रि को जागरण कर कीर्तन करूंगा।' : इसके बाद 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' ' इस द्वादश मंत्र का जाप करें। राम, कृष्ण, नारायण आदि विष्णु के सहस्रनाम को कंठ का भूषण बनाएं। : भगवान विष्णु का स्मरण कर प्रार्थना करें और कहे कि- हे त्रिलोकीनाथ! मेरी लाज आपके हाथ है, अत: मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करना। : यदि भूलवश किसी निंदक से बात कर भी ली, तो भगवान सूर्यनारायण के दर्शन कर धूप-दीप से श्री‍हरि की पूजा कर क्षमा मांग लेना चाहिए। : एकादशी के दिन घर में झाड़ू नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है। इस दिन बाल नहीं कटवाना चाहिए। न नही अधिक बोलना चाहिए। अधिक बोलने से मुख से न बोलने वाले शब्द भी निकल जाते हैं। : इस दिन यथा‍शक्ति दान करना चाहिए। किंतु स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न आदि कदापि ग्रहण न करें। दशमी के साथ मिली हुई एकादशी वृद्ध मानी जाती है। : वैष्णवों को योग्य द्वादशी मिली हुई एकादशी का व्रत करना चाहिए। त्रयोदशी आने से पूर्व व्रत का पारण करें। : एकादशी (ग्यारस) के दिन व्रतधारी व्यक्ति को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए। : केला, आम, अंगूर, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करें। : प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए। : द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्न, दक्षिणा देना चाहिए। : क्रोध नहीं करते हुए मधुर वचन बोलना चाहिए। *ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा सिद्धिविनायक ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र विभव खंड 2 गोमती नगर लखनऊ 94150 87711 92357 22996