मित्रों आज रविवार है, भगवान सुर्यनारायण का दिन है, आज हम जगतनेत्र भगवान सूर्यनारायण की महिमा का गुणगान करेगें!!!!!! जगत्पालक भगवान श्री विष्णु के गुणानुवाद करने वाली पद्मपुराण में कथा है कि वैशम्पायन मुनि ने अपने सर्वज्ञ गुरु महामति वेदव्यास से पूछा- गुरुदेव नित्य पूर्व दिशा से उदित होकर जगत को अंधकारमुक्त करने वाले, आकाश चारी ये कौन हैं, क्योंकि मैं देखता हूँ कि देवता, ऋषि, सिद्धमुनि, चारण, दैत्य, राक्षस, ब्राह्मण और जनसामान्य सभी उनका पूजन-वंदन-आराधन करते हैं- इसका क्या प्रभाव और फल है। वेदव्यास ने उत्तर दिया- वैशम्पायन, ये ब्रह्म तेज के साक्षात स्वरूप, स्वयं ब्रह्ममय समस्त सृष्टि के जीवनाधार भगवान सूर्यनारायण हैं। इनके पूजन-वंदन से सामान्य मनुष्य भी सहज ही धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्राप्त करता है। संज्ञाकांत भगवान सूर्य साक्षात देवता हैं। चर्मनेत्रों से भी बिना किसी कठिन तप या अनुष्ठान के, जिनके दर्शन किए जा सकते हैं। उनके आकाश मार्गीरथ में सात श्वेत अश्व हैं, एक ही पहिया है जिसमें बारह आरे हैं। वर्षभर के बारह माहों में भगवान सूर्य अपने विभिन्न नामों, आदित्य स्वरूपों व संख्याओं में अपनी रश्मियों से आकाश में भ्रमण करते और तीनों लोकों को प्रकाशित और प्रभासित करते हैं। वैशम्पायन, ये ब्रह्म तेज के साक्षात स्वरूप, स्वयं ब्रह्ममय समस्त सृष्टि के जीवनाधार भगवान सूर्यनारायण हैं। इनके पूजन-वंदन से सामान्य मनुष्य भी सहज ही धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्राप्त करता है। संज्ञाकांत भगवान सूर्य साक्षात देवता हैं। * चैत्र- धाता नाम के आदित्य, आठ हजार रश्मियाँ। * वैशाख- अर्यमानाम के आदित्य, दस हजार रश्मियाँ। * ज्येष्ठ- मित्र नाम के आदित्य, सात हजार किरणें। * आषाढ़- अरुण नाम के आदित्य, पाँच हजार किरणें। * श्रावण- इन्द्र नाम के आदित्य, सात हजार किरणों से प्रकाशित। * भाद्रपद मास- विवस्वान नाम के आदित्य, दस हजार रश्मियों से प्रकाशित होते हैं। * आश्विन मास- पूषा नाम के आदित्य, स्वर्णमयी रथ में बिराजे छः हजार किरणों से आलोकित होते हैं। * कार्तिक मास- पर्जन्य नाम के आदित्य, नौ हजार किरणों से प्रकाशित। * मार्गशीर्ष (अगहन)- अंशुमान नाम के आदित्य, अपने रथों में नौ हजार किरणों से सुशोभित। * पौष मास- भग नाम के आदित्य,ग्यारह हजार किरणों से जगत प्रकाशित करते हैं। * माघ मास- त्वष्टा नाम के आदित्य, आठ हजार किरणों से रथारूढ़ होते हैं। * फाल्गुन- विष्णु नाम के आदित्य, छः हजार किरणों से आलोकित स्वर्णमयी रथ पर आकाश में विचरण करते हैं। भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए उन्हें प्रातःकाल जल का अर्घ्य देकर- 'नमस्सविते, सूर्याय, भास्कराय, विवस्वतै, आदित्यादिभूताय, देवांनीनाम नमस्तुते' ब्रह्मतेज भगवान सूर्य के बारे में एक रोचक आख्यान भविष्य पुराण में प्राप्त होता है, उत्पत्ति के समय भगवान सूर्य एक विशाल गोलाकार तेजपुंज ही थे। देवशिल्पी विश्वकर्मा ने अपनी प्रिय पुत्री संज्ञा का विवाह सूर्य से किया, जिनसे भगवान सूर्य को यम, यमुना, वैवस्वत तीन अमित तेजस्वी संतानें प्राप्त हुईं। देवी संज्ञा को एक ही दुःख था कि वे अपने परम तेजस्वी पति का प्रेम तो प्राप्त करती थीं, पर उनका स्वरूप दर्शन नहीं कर पाती थीं। अतः उनका तेज सहन करने एवं स्वरूप दर्शन करने के लिए 'मैं तप करूँ' ऐसा संकल्प कर देवी संज्ञा ने अपने शरीर से अपनी 'छाया' प्रकट की जो बिलकुल उन्हीं का प्रतिरूप थी। उन्हें अपने पति की सेवा में छोड़कर वे स्वयं उत्तरकुरु क्षेत्र में तपस्या करने चली गईं। ईश्वर-लीला समझकर भगवान ने छाया को भी पत्नी स्वरूप में ग्रहण किया और यह बात रहस्य ही रहने दी। छाया से भी भगवान सूर्य को सावर्णिमनु, शनि, तपती और भद्रा चार संतानें प्राप्त हुईं। देवी संज्ञा अपने पतिव्रत की रक्षा के लिए अश्विनी बनी उत्तरकुरु में कठोर तप कर रही हैं, यह जानकर भगवान सूर्य ने देवोपम तेजस्वी अश्व का स्वरूप ग्रहण कर उत्तरकुरु जाकर अपनी प्रिय पत्नी का साहचर्य प्राप्त किया। व्रत भंग होने के भय से देवी संज्ञा ने भगवान सूर्य का वहतेज अपने नथुनों से पृथ्वी पर फेंक दिया जिससे देव चिकित्सक अश्विनी कुमारों का जन्म हुआ। भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए उन्हें प्रातःकाल जल का अर्घ्य देकर- ' नमस्सविते, सूर्याय, भास्कराय, विवस्वतै, आदित्यादिभूताय, देवांनीनाम नमस्तुते' मंत्र का जाप करना चाहिए।